हिम्मत सिंह नेगी
हिम्मत सिंह नेगी देश के उन कुछ चुनिन्दा युवा रंगकर्मियों में से एक हैं जिन्होने अपनी मेहनत और लगन से हिन्दी रंगमंच की दुनिया में एक अलग पहचान बनाई है। हिम्मत सिंह नेगी का जन्म 29 दिसम्बर, 1985 को दिल्ली में हुआ।
हिंदुस्तान में रंगकर्मी होना वाकई लोहा होने के बराबर है। तपना, पिघलना, अनवरत चोट सहना और तब कहीं आकार लेना। शायद यही कारण है कि इस रंगकर्म की भट्टी में कूदते तो बहुत हैं लेकिन सँवरकर निकलते बहुत कम हैं। हिन्दी रंगमंच की दुनिया में युवा रंगकर्मी हिम्मत सिंह नेगी आज ऐसा ही लोहा है जिसपर नाटक की दुनिया गर्व कर सकती है।
कई साल पहले जब हिम्मत ने अपना सफर शुरू करना चाहा था तो रंगमंच के अनुभव और विरासत के नाम पर उनके पास कहने के लिए भी कुछ नहीं था। दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज में ग्रेजुएशन के दिनों में जब वे कॉलेज की ड्रामा सोसाइटी में प्रवेश के लिए लगातार कोशिश कर रहे थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि उनकी ये शुरुआत कितनी दूर तक जाने वाली है। कॉलेज के अंतिम वर्षों तक भी हिम्मत बैक स्टेज का काम देखते रहे। कॉलेज के आखिरी साल में हिम्मत ने कॉलेज के स्टेज पर स्टैंड अप कॉमेडी और मिमिक्री आर्टिस्ट के भी जौहर दिखाये।
हिम्मत की प्रतिभा को सबसे बड़ा स्टेज मिला दिल्ली विश्वविद्यालय के आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज में, जहां उन्होने हिन्दी में एम ए करने के लिए दाखिला लिया था। इस कॉलेज की रंगमंच संस्था ‘रंगायन’ दिल्ली के विश्वविद्यालयों में अपनी गंभीरता और प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध होती जा रही थी। रंगायन को डॉ॰जयदेव तनेजा जैसे रंगमंच के पारखी और अदध्येता का मार्गदर्शन प्राप्त था। हिम्मत की प्रतिभा को यहीं से पंख मिले। पहले ही साल में हिम्मत ने कॉलेज द्वारा श्री राम सेंटर में बड़े स्तर पर प्रदर्शित किए गए नाटक ‘ताजमहल का टेंडर’ में शाहजहाँ का मुख्य किरदार निभाया जिसके लिए उन्हें चारों ओर ख्याति प्राप्त हुई। हिन्दी रंगमंच के दरवाजे पर हिम्मत की यह पहली प्रामाणिक दस्तक थी। रंगायन की अगली दो बड़ी नाट्य प्रस्तुतियों ‘दो कौड़ी का खेल’ और ‘दिल्ली चलो’ से उनके भीतर का रंग कलाकार उभर कर सामने आया।
कुछ समय बाद हिम्मत की मुलाक़ात प्रसिद्ध रंग अभिनेता हेमंत मिश्रा से हुई। हेमंत जी के साथ रहते हुए उन्होने अभिनय व रंगमंच की कई बारीकियों को गहराई से समझा। फिर उन्होने कुछ समय तक प्रसिद्ध रंगकर्मी सतीश आनंद के साथ भी काम किया और उनसे भी रंगमंच का अनुभव हासिल किया। आगे के वर्षों में हिम्मत रंगमंच की कई प्रसिद्ध हस्तियों जैसे दया प्रकाश सिन्हा, जे पी सिंह, अखिलेश खन्ना, भानु भारती, लोकेन्द्र त्रिवेदी, चित्रा सिंह से लेकर दानिश इकबाल और रवि तनेजा आदि के संपर्क में रहते हुए रंगमंच को निरंतर समझते व सीखते रहे। इस तरह उनकी झोली में कोर्ट मार्शल, कोणार्क, ताजमहल का टेंडर, मायाराम की माया, किस्सा मौजपुर का, उत्तर प्रश, तुगलक, अर्जेंट मीटिंग, गोगे की मिठाई, बोल कि लब आजाद हैं तेरे - सरीखे कई बेहतरीन नाटक शामिल होते चले गए। हिम्मत इस बीच बाल रंगमंच की दुनिया में भी सक्रिय रहे। उन्होने दिल्ली के कई स्कूलों में बतौर थिएटर प्रशिक्षक लंबे समय तक काम किया।