हम साथ साथ हैं

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हम साथ साथ हैं
चित्र:हम साथ साथ हैं.jpg
हम साथ साथ हैं का पोस्टर
निर्देशक सूरज बड़जात्या
निर्माता अजीत कुमार बड़जात्या
कमल कुमार बड़जात्या
राजकुमार बड़जात्या
लेखक सूरज बड़जात्या (संवाद)
पटकथा सूरज बड़जात्या
कहानी सूरज बड़जात्या
अभिनेता सलमान ख़ान,
करिश्मा कपूर,
सैफ़ अली ख़ान,
तबु,
सोनाली बेंद्रे,
मोहनीश बहल,
महेश ठाकुर,
नीलम,
आलोक नाथ,
सतीश शाह,
सदाशिव अमरापुरकर,
राजीव वर्मा,
शक्ति कपूर,
अजीत वाच्छानी,
दिलीप धवन,
संगीतकार रामलक्ष्मण
प्रदर्शन साँचा:nowrap 5 नवंबर, 1999
देश भारत
भाषा हिन्दी

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हम साथ साथ हैं 1999 की सूरज बड़जात्या द्वारा निर्देशित और लिखित हिन्दी भाषा की फिल्म है। राजश्री प्रोडक्शन्स द्वारा इसे निर्मित किया गया है। फिल्म में सलमान खान, सैफ अली खान, मोहनीश बहल, तबु, सोनाली बेंद्रे और करिश्मा कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं। जबकि आलोक नाथ, रीमा लागू, नीलम कोठारी और महेश ठाकुर सहायक भूमिका में हैं। यह साल 1999 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी।[१]

संक्षेप

रामकिशन (आलोक नाथ) एक सम्मानित और धनी उद्योगपति हैं। उनका परिवार आधुनिक होते हुए भी परम्परागत एकता तथा परस्पर प्रेम का अनूठा उदाहरण है। उनके तीन बेटे-- विवेक (मोहनीश बहल), प्रेम (सलमान खान), विनोद (सैफ अली खान)-- और एक बेटी-- संगीता (नीलम)-- है। रामकिशन तीनों बेटों और पत्नी ममता (रीमा लागू) के साथ एक भव्य निवास में रहते हैं। विवेक उनकी दिवंगत पहली पत्नी का पुत्र है। उसे उसकी सौतेली माता ममता (रामकिशन की दूसरी पत्नी) ने पाला है। ममता प्रेम, संगीता और विनोद की सगी माता है किन्तु वह विवेक को भी उतना ही प्यार देती है जितना अपनी सन्तानों को। विवेक रामकिशन का व्यापार चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचपन की एक दुर्घटना में वह अपने भाइयों को बचाते हुए एक हाथ से विकलांग हो गया था। इस कारण उसके लिये योग्य वधू मिलने में कठिनाई होती है। संगीता विवाहिता है और ससुराल में रहती है। उसके पति का नाम आनन्द (महेश ठाकुर) और नन्हीं बेटी का नाम राधिका (ज़ोया अफ़रोज़) है। संगीता के ससुराल में आनन्द के ज्येष्ठ भ्राता अनुराग, भाभी ज्योति और दो भतीजे राजू-बबलू भी हैं।

रामकिशन और ममता के विवाह की रजत जयन्ती पर एक भव्य समारोह का आयोजन होता है जिसमें परिवार के सभी सदस्य, बन्धु-बान्धव और परिचित लोग सम्मिलित होते हैं। इसमें आदर्श बाबू (राजीव वर्मा) नाम के एक उद्योगपति अपनी इकलौती बेटी साधना (तबु) के साथ आते हैं। विदेश में पली हुई मातृहीना साधना रामकिशन के संयुक्त परिवार की एकता और संस्कारयुक्त जीवन शैली से प्रभावित हो जाती है। अगले ही दिन आदर्श बाबू रामकिशन और ममता के आगे साधना और विवेक के परस्पर विवाह का प्रस्ताव रखते हैं जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया जाता है। विवेक को चिन्ता होती है कि साधना उसकी विकलांगता के साथ पूरा जीवन समझौता नहीं कर पायेगी। किन्तु साधना का अडिग निश्चय विवेक का संशय मिटा देता है। धूमधाम से दोनों का विवाह सम्पन्न हो जाता है। नववधू के स्वागत में एक मनोरंजक कार्यक्रम का आयोजन होता है। इसमें चुलबुला विनोद और पारिवारिक मित्र धर्मराज (सदाशिव अमरापुरकर) की बेटी सपना (करिश्मा कपूर) मिलकर घर के सभी सदस्यों की नकल उतारते हैं। हास-परिहास में विनोद और सपना इस बात का इशारा करते हैं कि शर्मीला प्रेम और पारिवारिक मित्र प्रीतम (सतीश शाह) की बेटी डॉक्टर प्रीति (सोनाली बेंद्रे) मन ही मन एक दूसरे को चाहते हैं। अगले दिन गुरुजनों की सहमति से प्रेम और प्रीति की सगाई हो जाती है।

इसके कुछ दिनों बाद विवेक, साधना, प्रेम, प्रीति, संगीता, आनन्द, विनोद, राजू, बबलू और राधिका रामकिशन के पैतृक गांव रामपुर में छुट्टी मनाने जाते हैं। सपना, जो अपने पिता और दादी (शम्मी) के साथ वहीं रहती है, उन सब का स्वागत-सत्कार करती है। हंसी ठिठोली और मौज मस्ती के बीच विनोद और सपना का परस्पर आकर्षण सबके सामने आ जाता है। बहुत उल्लास के साथ उन दोनों की सगाई भी कर दी जाती है। अब रामकिशन यह निर्णय करते हैं कि व्यापार की बागडोर बेटों को सौंप कर वह काम से अवकाश ग्रहण कर लेंगे। वह ज्येष्ठ पुत्र विवेक को 'प्रबंध निदेशक' (मैनेजिंग डायरेक्टर) बनाने की अनौपचारिक घोषणा कर देते हैं। इस बात से सभी खुश होते हैं पर सपना के पिता धर्मराज को यह अच्छा नहीं लगता। वह नहीं चाहते कि उनका भावी दामाद विनोद अपने ज्येष्ठ भ्राता विवेक के आधीन रहे। वह ममता को अपने पक्ष में करने के उद्देश्य से रामकिशन के शहरी निवास पहुंच जाते हैं।

तभी एक अप्रत्याशित घटना से सब हतप्रभ रह जाते हैं। आनन्द के ज्येष्ठ भ्राता अनुराग उसे अपने व्यापार और घर से बेदखल कर देते हैं। संगीता, आनन्द और राधिका रामकिशन के घर आ जाते हैं। विवेक उन्हें पुनर्स्थापित करने के लिये बैंगलोर ले जाता है। इसी बीच धर्मराज को ममता से अपनी बात कहने का अवसर मिल जाता है। इसमें ममता की तीन सहेलियां उनका साथ देती हैं। वे सब मिलकर ममता को समझाते हैं कि उसे ऱामकिशन से कहकर घर और व्यापार का तीनों बेटों में बराबर बंटवारा करवा देना चाहिये। यदि ऐसा न हुआ तो बाद में बेटों और बहुओं में तनाव और मतभेद पनपने लगेंगे। वे ममता से यह भी कहते हैं कि सौतेला होने के नाते विवेक अपने छोटे भाइयों के साथ अन्याय करेगा। बेटी-दामाद की विपदा से दुखी ममता अपनी सहेलियों और धर्मदास की बातों में आ जाती है। वह रामकिशन से मांग करती है कि विवेक को सर्वोच्च पद न देकर वह जायदाद का तीनों बेटों में बराबर बंटवारा कर दें।

रामकिशन बंटवारे की मांग को ठुकरा देते हैं और अपनी पत्नी को समझाने का प्रयास करते हैं। किन्तु साधना ये बातें सुन लेती है और बैंगलोर से लौटने पर विवेक को सब बता देती है। विवेक तत्काल निर्णय करता है कि वह 'प्रबंध निदेशक' का पद प्रेम को दिलवा देगा और स्वयं साधना के साथ रामपुर में रहेगा, जिससे ममता की आशंका निर्मूल हो जाये। यह सुनकर विनोद भी विवेक और साधना के साथ जाने का निश्चय कर लेता है। तीनों घर से रवाना हो जाते हैं। प्रेम उस समय विदेश में होने के कारण इन बातों से अनभि़ज्ञ रहता है। रामपुर पहुंचने के कुछ समय बाद ही यह ज्ञात होता है कि साधना गर्भवती है। इस बीच प्रेम विदेश से लौट आता है और विवेक को वापस ले जाने का प्रयास करता है। विवेक के मना कर देने पर प्रेम अनिच्छा से 'प्रबंध निदेशक' बन जाता है। परन्तु वह उस पद को ज्येष्ठ भ्राता विवेक की धरोहर और अपने को उनका प्रतिनिधि मान कर चलता है। वह ममता के आगे संकल्प लेता है कि विवेक और साधना का महत्व यथास्थान बना रहेगा और उनके घर लौटने तक वह विवाह भी नहीं करेगा। वह कहता है कि सौतेलापन विवेक के मन में न हो कर स्वयं ममता के मन में है। ममता यह सब सुन कर अवाक् रह जाती है।

समय बीतता जाता है। सपना और प्रीति साधना की गर्भावस्था में उसका ध्यान रखती हैं। इस बीच अनुराग को व्यापार में हानि होने लगती है। कारण पूछने पर उसके कर्मचारी बताते हैं कि आनन्द की अनुपस्थिति से ऐसा हो रहा है। घर में संगीता और राधिका के न होने से ज्योति, राजू और बबलू उदास रहते हैं। इसी कारण से राजू और बबलू बीमार हो जाते हैं। तब अनुराग को अपनी भूल का पछतावा होने लगता है। संगीता और आनन्द राधिका को लेकर लौट आते हैं। अनुराग उनसे क्षमा मांगता है और उनका बिखरा परिवार फिर से एक हो जाता है। यह जानकर ममता को भी अपनी गलती पर बहुत पछतावा होता है। वह अपने पति से क्षमाप्रार्थना करती है और विवेक-साधना को घर लाने के लिये रामपुर चल देती है। रामपुर में साधना को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। रामकिशन का परिवार फिर से साथ-साथ आ जाता है। इसके बाद प्रेम-प्रीति और विनोद-सपना विवाह बंधन में बंध जाते हैं। धर्मराज अपनी भूल स्वीकार करते हैं। सबकी शुभकामनाओं के साथ विवेक 'प्रबंध निदेशक' का पद ग्रहण करता है। अंत में यह संकेत मिलता है कि विवेक का विकलांगता-ग्रस्त हाथ भी ठीक होने लगा है।

मुख्य कलाकार

संगीत

संगीत रामलक्ष्मण द्वारा दिया गया था, जिन्होंने तीसरी बार सूरज बड़जात्या के साथ मिलकर काम किया था। साउंडट्रैक में सात गाने हैं। इसमें पार्श्ववगायक कुमार सानु (प्रेम के रूप में), कविता कृष्णमूर्ति (प्रीती के रूप में), अलका याज्ञिक (सपना के रूप में), उदित नारायण (विनोद के रूप में), अनुराधा पौडवाल (साधना के रूप में), हरिहरन (विवेक के रूप में) और सोनू निगम (अनवर के रूप में) हैं।

हम साथ साथ हैं गीत सूची
क्र॰शीर्षकगायकअवधि
1."हम साथ साथ हैं"कविता कृष्णमूर्ति, कुमार सानु, अलका याज्ञिक, हरिहरन, अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण3:57
2."ये तो सच है के भगवान है"हरिहरन, प्रतिमा राव, घनश्याम वासवानी, संतोष तिवारी, रविंदर रावल6:33
3."छोट छोट भाईओं के"कविता कृष्णमूर्ति, उदित नारायण, कुमार सानु4:15
4."सुनोजी दुल्हन"कविता कृष्णमूर्ति, उदित नारायण, सोनू निगम, रूप कुमार राठोड़, प्रतिमा राव12:11
5."ए बी सी डी"उदित नारायण, हरिहरन, हेमा सरदेसाई, शंकर महादेवन4:32
6."म्हारे हिवड़ा"कविता कृष्णमूर्ति, हरिहरन, कुमार सानु, अलका याज्ञिक, उदित नारायण, अनुराधा पौडवाल6:22
7."मैया यशोदा"कविता कृष्णमूर्ति, अलका याज्ञिक, अनुराधा पौडवाल6:19
कुल अवधि:42:48

नामांकन और पुरस्कार

नामित

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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