त्रिशंकु सभा

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सरकार की द्वि-दलीय संसदीय प्रणाली में एक त्रिशंकु संसद तब बनती है जब किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल (या सहयोगी पार्टियों के समूह) को सीटों की संख्या के अनुसार संसद (विधानसभा) में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता है। इसे कभी-कभार संतुलित संसद[१][२] या बिना किसी नियंत्रण वाली विधायिका भी कहा जाता है।[३][४][५] यदि विधायिका द्विसदनीय है और सरकार केवल अवर सदन के प्रति जिम्मेदार है, तब "त्रिशंकु संसद" शब्द का उपयोग केवल उसी सदन के लिए किया जाता है। दो पार्टी प्रणाली के अधिकांश चुनावों में एक पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो जाता है और वह जल्द ही एक नई सरकार का गठन कर लेती है; "त्रिशंकु संसद" इस ढांचे का एक अपवाद है और इसे अनियमित या अवांछनीय माना जा सकता है। एक या दोनो मुख्य पार्टियां कुछ अन्य छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन सरकार बनाने, या कुछ अन्य पार्टियों अथवा स्वतंत्र सदस्यों की सहायता से एक अल्पमत वाली सरकार बनाने की चेष्टा कर सकती हैं। यदि ये प्रयास विफल हो जाते है, संसद भंग करने और नए सिरे से चुनाव कराए जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता है। जैसा कि अनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा निर्वाचित विधानसभाओं में आमतौर पर होता है, एक बहु-पार्टी प्रणाली में चुनाव पश्चात गठबंधन सरकार के गठन के लिए बातचीत का किया जाना काफी सामान्य है; "त्रिशंकु संसद" शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है।

यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा, इन सभी की वर्तमान संसद त्रिशंकु संसद हैं।साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] राष्ट्रीय स्तर पर इतनी अधिक संख्या में त्रिशंकु संसदों का होना राष्ट्रमंडल राष्ट्रों के लिए काफी असामान्य है।साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed]

इतिहास

युनाइटेड किंगडम

प्रथम विश्व युद्ध से पहले यूनाइटेड किंगडम में कई पीढ़ियों तक, एक काफी हद तक स्थिर दो-दलीय प्रणाली अस्तित्व में थी; पारंपरिक तौर पर केवल टोरी और व्हिग्स, या उन्नीसवीं सदी के मध्य से कंजर्वेटिव तथा लिबरल पार्टियां संसद में काफी अधिक संख्या में अपने सदस्यों को निर्वाचित करने में सफल रहीं। इस प्रकार उन्नीसवीं सदी में त्रिशंकु संसद काफी दुर्लभ थी। एक्ट ऑफ यूनियन 1800 के बाद कई आयरिश संसद सदस्यों द्वारा संसद में पहुँचने के साथ इसमें परिवर्तन की संभावना पैदा हुई, हालांकि शुरुआत में वे पारंपरिक पक्षों का ही अनुसरण करते थे। तथापि, दो सुधार अधिनियमों (1867 में और 1884 में) ने मताधिकार को काफी व्यापक रूप से बढ़ाकर निर्वाचन क्षेत्रों को पुनर्गठित कर दिया, संयोगवश उसी समय में आयरिश राजनितिज्ञ में भी काफी बदलाव सामने आये थे। 1885 के आम चुनावों के बाद किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। आयरिश संसदीय दल के पास सत्ता की कुंजी थी और उसने अपने समर्थन के लिए आयरिश स्वराज्य को एक शर्त के रूप में पेश किया। हालांकि, लिबरल पार्टी आयरिश स्वराज्य के मुद्दे पर विभाजित हो गई, जिसके परिणामस्वरूप 1886 में फिर से आम चुनाव हुए जिसमें कंजरवेटिव ने अधिकांश सीटों पर कब्जा करते हुए स्वराज्य का विरोध करने वाली लिबरल युनिअनिस्ट पार्टी के समर्थन से शासन किया।

जनवरी 1910 और दिसंबर 1910 के चुनावों ने एक त्रिशंकु संसद को जन्म दिया जिसमें सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी और कंजर्वेटिव पार्टी ने लगभग समान सीटे जीतीं। ऐसा संसदीय संकट तथा लेबर पार्टी के उदय के कारण हुआ था। 1929 के चुनावों के परिणामस्वरूप उभर कर आने वाली त्रिशंकु संसद के बाद कई वर्षों तक ऐसा नहीं हुआ; इस दरम्यान लेबर पार्टी, लिबरल पार्टी को हटाकर दो प्रमुख पार्टियों में से एक बन गयी।

1929 के चुनावों के बाद से, ब्रिटेन में दो आम चुनावों में त्रिशंकु संसद सामने आई है। पहला था फरवरी 1974 का चुनाव और गठित संसद केवल अक्टूबर तक ही चली. दूसरा चुनाव मई 2010 का था जिसके फलस्वरूप एक त्रिशंकु संसद सामने आई और जिसमें कंजर्वेटिव पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी। तीन मुख्य पार्टियों के परिणाम इस प्रकार थे - कंजर्वेटिव्स - 307, लेबर- 258, लिबरल डेमोक्रेट्स - 57.[६]

उप-चुनाव में हार के कारण सरकार के क्षीण बहुमत के खत्म होने, तथा संसद सदस्यों द्वारा विपक्षी दल में शामिल होने, अथवा हाउस ऑफ कॉमन के सांसदों द्वारा इस्तीफा दिए जाने के कारण भी त्रिशंकु संसद का जन्म हो सकता है। ऐसा दिसंबर 1996 में जॉन मेजर (1990-97) की कंजर्वेटिव सरकार और 1978 के मध्य में जेम्स कैलहन (1976-79) की लेबर सरकार के साथ हुआ था; इस बाद की अवधि को असंतोष का शीतकाल के नाम से जाना जाता है। जिम कैलहन की अल्पमत सरकार तब आई जब 1977 की शुरुआत में लिबरल द्वारा बहुमत गंवाने के बाद लेबर ने अपना 15 महीने का समझौता समाप्त कर दिया।

शोधकर्ता एंड्रयू ब्लिक और स्टुअर्ट विल्क्स-हीग के अनुसार "त्रिशंकु संसद" शब्द का यूके में आम उपयोग 1970 के दशक के मध्य के बाद ही शुरु हुआ था और प्रेस में इसका पहली बार उपयोग पत्रकार सिमोन होगार्ट द्वारा 1974 में द गार्जियन में किया गया।[७]

त्रिशंकु संसद से संबंधित अध्ययनों में शामिल हैं, डेविड बटलर की गवर्निंग विदआउट ए मेजोरिटी: डिलेमाज फॉर हंग पार्लियामेंट इन ब्रिटेन (शेरिडन हाउस, 1986) और वेर्नोन बोगडेनोर की 'मल्टी-पार्टी पोलिटिक्स एंड दी कॉन्स्टीट्यूशन' (केम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, 1983).

कनाडा

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कनाडा की वर्तमान संसद (चालीसवीं),साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] 38वीं तथा 39वीं संसद की ही तरह त्रिशंकु संसद है;साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] हालांकि, कनाडा में इस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसके जगह, "अल्पमत सरकार" या "अल्पसंख्यक संसद" शब्द का प्रयोग किया जाता है। हालांकि अल्पसंख्यक सरकारें अक्सर अल्पकालिक होती हैं, प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर के नेतृत्व वाली वर्तमान अल्पसंख्यक सरकार फरवरी 2006 के बाद से सत्ता में बने रहने में सफल रही है।

हार्पर की कंजर्वेटिव पार्टी ने अक्टूबर 2008 के संघीय चुनाव में अपनी अल्पसंख्यक स्थिति में सुधार किया था; यह भी एक त्रिशंकु संसद है। हार्पर और कंजरवेटिव के लोकप्रिय मतों के प्रतिशत में एक छोटी वृद्धि देखने को मिली है, लेकिन वास्तविक लोकप्रिय मतों में एक छोटी कमी और कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में 308 सीटों में से 143 सीटों के साथ प्रतिनिधित्व में वृद्धि भी देखने को मिली।

ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया में संघीय स्तर पर त्रिशंकु संसद दुर्लभ हैं, क्योंकि यहां की प्रणाली लगभग एक दो दलीय प्रणाली के समान है जिसमें ऑस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी कंजर्वेटिव पार्टियों के एक गठबंधन के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करती है। 1910 से पहले किसी भी पार्टी को प्रतिनिधि सभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं था क्योंकि वहां दो गैर-लेबर पार्टियां प्रतिस्पर्धा में थीं। जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की सरकार लगातार बदलती रहती थी, जिनमे से कई बदलाव तो संसद के कार्यकाल के दौरान ही घटित होते थे। 1910 में जब दो दलीय व्यवस्था को मजबूती मिली, उसके बाद से वहाँ केवल दो बार त्रिशंकु संसद देखने को मिली हैं, 1940 और 2010 में. 1940 के संघीय चुनाव में निवर्तमान प्रधानमंत्री रॉबर्ट मेनज़ाइस ने दो स्वतंत्र निर्दलीय सदस्यों का समर्थन प्राप्त किया और सत्ता में बने रहे, लेकिन संसदीय कार्यकाल के दौरान निर्दलीय सदस्यों ने अपना समर्थन लेबर को दे दिया और जॉन कर्टिन सत्ता में आ गए। 2010 के संघीय चुनाव में निवर्तमान प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने चार निर्दलीय सदस्यों का समर्थन प्राप्त किया और सत्ता में बनी रहीं।

त्रिशंकु संसद राज्य स्तर पर कहीं अधिक सामान्य हैं। तस्मानिया की विधानसभा और ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र की एक सदनीय संसद, इन दोनों को हेयर-क्लार्क आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा चुना जाता है इसलिए चुनावों में आमतौर पर त्रिशंकु संसद सामने आती है। अन्य राज्यों और क्षेत्रों में मुख्यतः दो दलीय प्रणाली है, लेकिन कई बार त्रिशंकु संसद सामने आती है जिसमें सत्ता की कुंजी स्वतंत्र सांसदों और छोटे दलों के प्रतिनिधियों के पास होती है। हाल के उदाहरणों में शामिल हैं - 1991 में न्यू साउथ वेल्स, 1995 में क्वींसलैंड में (अदालत में चुनावी परिणाम को चुनौती दिए जाने के बाद), 1999 में विक्टोरिया, 2002 में दक्षिण ऑस्ट्रेलिया और 2008 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया।

परिणाम

निर्णायक चुनाव परिणामों के आदी देशों में त्रिशंकु संसद को अक्सर नकारात्मक परिणाम के तौर पर देखा जाता है जिससे अपेक्षाकृत कमजोर और अस्थिर सरकार का जन्म होता है। चुनाव के बाद अनिश्चितता की अवधि सामान्य है, क्योंकि प्रमुख पार्टी के नेता निर्दलीय और छोटे दलों के साथ बातचीत करके बहुमत स्थापित करने की कोशिश करते हैं।

सरकार बनाने की इच्छा रखने वाला नेता, गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश कर सकता है; वेस्टमिंस्टर प्रणाली में, एक स्थायी बहुमत प्राप्त करने बदले इसमें आमतौर पर एक संयुक्त विधायी कार्यक्रम और गठबंधन की छोटी पार्टियों को कई मंत्री पद दिया जाना शामिल होता है। वैकल्पिक रूप से, पूर्व सहमत नीतिगत रियायतों या मुद्दा आधारित समर्थन के आधार पर विश्वासपरक तथा आपूर्ति समझौतों के साथ एक अल्पमत वाली सरकार का गठन किया जा सकता है।

युनाइटेड किंगडम

फ़रवरी 1974 के आम चुनाव में वर्तमान प्रधानमंत्री एडवर्ड हीथ ने विपक्षी लेबर पार्टी की तुलना में कम सीटे जीतने के बावजूद एक गठबंधन सरकार बनाने का प्रयास करने के लिए इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। वे ऐसा करने में असमर्थ रहे, इसलिए हेरोल्ड विल्सन के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने एक अल्पमत सरकार का गठन किया।

ब्रिटेन के 2010 के आम चुनावों में एक और त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आई और एक स्थिर सरकार बनाने का प्रयास करने के लिए व्यापक विचार-विमर्श किया गया। इसके परिणामस्वरूप एक गठबंधन सरकार का गठन किया गया जो कि एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार भी थी; यह सरकार चुनाव में अधिकांश सीटों तथा मतों को जीतने वाली कंजर्वेटिव पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटस की गठबंधन सरकार थी।

ऑस्ट्रेलिया

2008 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के राज्य चुनावों में 24 के मुकाबले 28 सीटों के साथ ऑस्ट्रेलियन लेबर पार्टी ने लिबरल पार्टी पर जीत हासिल की। तीन निर्दलीय विधायकों के साथ नेशनल पार्टी के पास दोनों पार्टियों में से किसी एक को बहुमत दिलाने के लिए आवश्यक सीटें थीं। लिबरल पार्टी को सरकार के गठन में सहायता करने के लिए नेशनल पार्टी ने इस शर्त पर समर्थन दिया कि क्षेत्रीय नीति पर रॉयल्टी को लागू किया जायेगा.

1999 के विक्टोरियन राज्य चुनाव में लेबर पार्टी ने 42 सीटें जीतीं, जबकि निवर्तमान लिबरल नेशनल गठबंधन ने 43 सीटें कायम रखीं और तीन सीटों पर निर्दलीय ने जीत हासिल की। लेबर पार्टी ने 3 निर्दलियों के साथ मिलकर अल्पमत सरकार का गठन किया।

2010 के तस्मानी राज्य चुनाव के परिणामस्वरूप त्रिंशकु संसद सामने आई. कुछ समय तक बातचीत करने के बाद डेविड ब्रेरलेट के नेतृत्व वाली लेबर सरकार फिर से सता में आई, लेकिन उसमें तस्मेनियन ग्रीन्स के नेता निक मैककिम एक मंत्री के रूप में और ग्रीन्स के कैसी ओ'कॉनर कैबिनेट सचिव के रूप में शामिल हुए.

2010 के संघीय चुनाव में, लेबर तथा लिबरण पार्टियों में से किसी को भी अपने दम पर सरकार बनाने के लिए आवश्यक सीटें नहीं मिलीं। अंत में, जूलिया गिलार्ड द्वारा ऑस्ट्रलियाई प्रतिनिधि सभा के तीन निर्दलीय सदस्यों और ग्रीन्स के एक सदस्य की मदद से सरकार का गठन किया गया।

कार्यकारी बहुमत

कई बार ऐसा भी हुआ है जब एक संसद या विधानसभा तकनीकी रूप से तो त्रिशंकु है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के पास कार्यकारी बहुमत मौजूद है। उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम में परंपरा के अनुसार स्पीकर वोट नहीं करता है और सिन फीन के सांसद कभी अपनी सीटों को ग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए इन्हें विपक्ष की संख्या से घटाया जा सकता है।

युनाइटेड किंगडम

वेल्स में 2005 में, वेल्स की राष्ट्रीय संसद में ऐसा ही हुआ था जहां ब्लेनू ग्वेंट निर्वाचन क्षेत्र के 2005 वेस्टमिंस्टर चुनाव में आधिकारिक प्रत्याशी के खिलाफ खड़े होने के लिए पीटर लौ को निष्काषित किये जाने के कारण लेबर को अपना बहुमत गंवाना पड़ा था। जब विधानसभा पहली बार 1 मई 2003 को निर्वाचित हुई, लेबर ने 30 सीटें जीती, प्लेड साइमरू ने 12, कंजरवेटिव्स ने 11, लिबरल डेमोक्रेट ने 6 और जॉन मैरेक स्वतंत्र पार्टी से एक सीट जीती। जब डेफैड एलिस-थॉमस (प्लेड) एक पीठासीन अधिकारी के रूप में पुनः चुने गए, तब वोट करने वाले विपक्षियों की संख्या घटकर 29 रह गयी क्योंकि एक पीठासीन अधिकारी टाई होने की स्थिति में ही वोट कर सकता है और वो भी अपनी पार्टी के मत के अनुसार नहीं बल्कि स्पीकर डेनिसन के नियमानुसार. इस प्रकार लेबर के पास केवल एक सीट का कार्यकारी बहुमत रह गया। और लौ द्वारा ब्लेनू ग्वेंट में हारने के साथ यह भी खतम हो गया।[८]

इन्हें भी देखें

  • विभाजित सरकार
  • गठबंधन सरकार
  • बहुमत वाली सरकार
  • अल्पमत वाली सरकार

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite news
  2. साँचा:cite news
  3. साँचा:cite news
  4. साँचा:cite news
  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. "जनरल इलेक्शन 2010 रिजल्ट्स ऑफ ए हंग पार्लियामेंट" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, पॉलिटिक्सआरए डब्ल्यू. 8 मई 2010
  7. साँचा:cite web
  8. लेबर लॉस असेम्बली मेज्योरिटी एज़ लॉ क्विट्स स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, ePolitix.com. 17 अप्रैल 2005

बाहरी कड़ियाँ

युनाइटेड किंगडम