सैम्युअल टेलर कॉलरिज

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सैम्युअल टेलर कॉलरिज
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कॉलरिज १७९५ में
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व्यवसायकवि, समीक्षक, दार्शनिक
साहित्यिक आन्दोलनरोमांस
उल्लेखनीय कार्यद राइम ऑफ़ द एन्शियंट मेरिनर, कुबला खान
जीवनसाथीसराह फ्रिकर
सन्तानसारा कॉलरिज, बर्कली कॉलरिज, डरवेंट कॉलरिज, हार्टली कॉलरिज

हस्ताक्षर

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सैम्युअल टेलर कॉलरिज (साँचा:lang-en; (जन्म २१ अक्टूबर १७७२ -मृत्यु २५ जुलाई १८३४) एक अंग्रेज़ कवि, दार्शनिक व रोमांस लेखक थे जिन्होंने अपने मित्र विलियम वर्ड्सवर्थ के साथ मिलकर इंग्लैण्ड में रोमांस आन्दोलन की शुरुआत की और 'लेक पोएट्स' की स्थापना की थी। वे अपनी कविताओं द राइम ऑफ़ द एन्शियंट मेरिनर और कुबला खान के लिए जाने जाते है।

कॉलेरिज अंग्रेजी कविता की स्वच्छंदतावादी धारा के प्रमुख कवियों में से थे। आलोचना के क्षेत्र में कॉलेरिज का एक महत्वपूर्ण योगदान उनके द्वारा कल्पना शक्ति का विवेचन है। कल्पना को दर्शन तथा काव्य के साथ पहले से जोड़ा जाता रहा है, परन्तु कॉलरिज ने इसका विस्तार से विवेचन किया। इनका ‘कल्पना सिद्धान्त' प्रसिद्ध है।

कॉलरिज के अनुसार, "कविता रचना का वह प्रकार है जो वैज्ञानिक कृतियों से इस अर्थ में भिन्न है कि उसका तात्कालिक प्रयोजन आनन्द है, सत्य नहीं।"

कॉलरिज का जन्म २१ अक्टूबर १७७२ को इंग्लैंड के देवोन (Devon) के ऑटरी सेन्ट मैरी (Ottery St Mary) में हुआ था। [१] उसके पिता चर्च के वाइकर (vicar) तथा किंग्स स्कूल के हेडमास्टर थे।

प्रमुख रचनाएँ

कॉलरिज की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-

  • बायोग्राफिआ लिटरेरिया (Biographia Literaria) – इसी में कल्पना सिद्धान्त का विवेचन है।
  • एड्स टू रिफ्लेक्शन ( Aids to Reflection)
  • द फ्रेंड (The Friend (1969))
  • लिरिकल बैलेड्स ( Lyrical Ballads)
  • चर्च एंड स्टेट ( Church and State)
  • कन्फेशन्स ऑफ एन इन्क्वायरिंग स्पिरिट ( Confessions of an Inquiring Spirit)
  • द राइम ऑफ़ द एन्शियंट मेरिनर (The Rime of Ancient Mariner)
  • कुबला खान ( Kubla Khan)

कल्पना और ऊहा

कॉलरिज ने कल्पना (imagination) और ऊहा या 'ललित कल्पना' (fancy) पर प्रकाश डाला है। उसने कल्पना को सौन्दर्य विधायिनी तथा सर्जनात्मक शक्ति के रूप में स्वीकार किया है। उनके विचार से वह कल्पना शक्ति ही है जो निराकार विचारों और भावों को रूपायित करती है। इतना ही नहीं, कल्पना भाव और विचार के बीच, जो एक दूसरे के विरोधी माने जाते हैं- सामंजस्य और अन्विति स्थापित करती है। वाह्य पदार्थों और आत्मतत्त्व के संबंध स्थापित करने में भी कल्पना शक्ति का हाथ रहता है।

उसके अनुसार उत्तम बोध ‘कवि प्रतिभा' का शरीर है, ऊहा उसका वस्त्रावरण है, गति उसका जीवन है, और कल्पना उसकी आत्मा है, जो सर्वत्र और प्रत्येक में है और सबको समन्वित कर उसे एक ललित ओर सुबोध परिपूर्ण रूप प्रदान करती है।

कॉलरिज ने कल्पना और ऊहा के अन्तर का भी विवेचन किया है। यद्यपि दोनों तात्त्विक रूप से एक हैं, तथापि अंतर है। कल्पना काव्यगत सार्थक और उपयुक्त बिंबों की रचना करती है, जबकि ऊहा कपोलकल्पना, दिवास्वप्न वाले अनर्गल, अवास्तविक कार्यकलाप को मन में रूपायित करती है। ऊहा निम्नकोटि की मनगढन्त बिम्ब रचना करती है। वह स्वच्छन्द अननुशासित होती है। पन्रतु कल्पना आत्मा की एक शक्ति है। वह दिव्य है, सर्जनात्मक है। रचनाशीलता उसका गुण है। रचनाशील होने के कारण वह विवेकमय होती है। कल्पना निर्मित बिंब सार्थक और संबंद्ध होते हैं। उनमे क्रम और औचित्य रहता है। वह जड़ और चेतन तथा भाव और विचार के बीच सामंजस्य स्थापित करती है। विचार और भाव को साकार करना कल्पना का कार्य है।

कॉजरिज ने कल्पना के दो भेद किए हैं- (१) मुख्य कल्पना या प्राथमिक कल्पना (२) गौण कल्पना या अनुवर्ती कल्पना। मुख्य कल्पना मानव-ज्ञान की जीवंत शक्ति और प्रमुख माध्यम होती है। असीम में होने वाली अनन्त सर्जन-क्रिया की ससीम मन में होने वाली वह प्रतिकृति है। गौण या अनुवर्ती कल्पना उसकी छाया मात्र है। सचेतन संकल्प शक्ति के साथ उसका सह-अस्तित्व होता है। दोनों में तात्त्विक भेद नहीं, अंन्र मात्रा और क्रियाविधि का है। कविता को इससे प्रेरणा मिलती है।

कॉलरिज से पहले 'कल्पना' और 'ललित कल्पना' में अन्तर नहीं किया जाता था, किंतन् कॉलरिज ने इन दोनों में अंतर स्थापित कर दिया। ललित कल्पना का संबंध अचल और निर्दिष्ट पदार्थों से है। वह कल्पना को ललित-कल्पना से श्रेष्ठ मानता है। वह यह भी मानता है कि जिस प्रकार प्रतिभा को प्रज्ञा की आवश्यकता है, उसी प्रकार कल्पना को भी ललित-कल्पना की आवश्यकता है। यह एक दूसरे से भिन्न शक्तियां हैं। कल्पना का काम एकीकरण और पुनर्निमाण है, ललित कल्पना केवल संयोजन मात्र करती है, किन्तु उस संयोजन में सरसता और मार्मिकता का अभाव होता है। कल्पना का संबंध आत्मा और मन से है, जबकि ललित कल्पना मस्तिष्क से संबंधित है। ललित कल्पना निर्जीव शक्ति है। कल्पना आत्मिक और ललित कल्पना यांत्रिक होती है। ललित कल्पना क्रम, अनुपात और व्यवस्था के बिना वस्तुओं का ढेर लगाती है, वह उन्हें एकत्रित, संगठित और जीवंत रूप नहीं दे सकती। जिस प्रकार स्वप्न में मनुष्य अनेक विचारों को एकत्र तो करता है किंतु उन्हें क्रम और अन्विति नहीं दे पाता।

सन्दर्भ

  1. Radley, 13