सेल्यूलर जेल

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सेलुलर जेल
Front View of Cellular Jail, Port Blair.JPG
सेलुलर जेल्, अंदमान
निर्माण सूचना
नाम सेलुलर जेल
स्थिति पोर्ट ब्लेयर, अंडमान
देश भारत
निर्देशांक साँचा:coord
वास्तुकार
उपभोक्ता ब्रिटिश सरकार
निर्माण आरंभ 1896
पूर्ण 1906
लागत रु. 517,352[१]
शैली कोशिकीय, Pronged

यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी। कालापानी शब्द अंडमान के बंदी उपनिवेश के लिए देश निकला देने का पर्याय है | कालापानी का भाव सांस्कृतिक शब्द काल  से बना है जिसका अर्थ होता है समय अथवा मृत्यु| अर्थात कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है जहाँ से कोई वापस नहीं आता है| देश निकालों के लिए कालापानी का अर्थ बाकी बचे हुए जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएँ सहना था| कालापानी यानि स्वतंत्रता सेनानियों उन अनकही यातनाओं और तकलीफ़ों का सामना करने के लिए जीवित नरक में भेजना जो मौत की सजा से भी बदतर था |

अपनों से दूर भेजने का अर्थ होता है वो यात्रा जो मृत्यु की घड़ी तक ले जाता हो| बंदी को हमेशा के लिए उसके समाज से दूर ले जाया जाता है| उसे वहाँ भेजा दिया जाता है जहाँ लोग रहते हैं पर अदृय्ष्य लोक है जहाँ अति विस्मयकारी तत्त्व हैं | जहाँ के बारे में वो कुछ नहीं जानता है|

इतिहास

यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी।

अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।

अंडमान में उपनिवेश स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य समुद्री तूफानों में फॅसे जहाजों को सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराना था| ये सोचा गया की एक स्थाई बस्ती ही समुद्री जहाजों की सुरक्षा का एकमात्र समाधान है| इन द्वीपों में बस्ती बसाने का पहला प्रयास १७८९ में किया गया जब कैप्टेन आर्चिबाल्ड ब्लेयर ने चाथम द्वीप में एक बस्ती बसाई| इस बस्तीको बाद में उत्तरी अंडमान में पोर्ट कॉर्नवालिस स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि उस स्थान को नौसेनिक दृस्टि से उपयुक्त समझा गया| बस्ती बसाने का यह प्रयास सफल नहीं रहा और इसे १७९६ में समाप्तः कर दिया गया|

६० वर्षों के बाद पुनः इन द्वीपों में समुद्री जहाजों की सुरक्षा हेतु स्थाई बस्ती बसाने का सवाल आया परन्तु बंदी उपनिवेश की स्थापना वास्तव में १८५७ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के देशभक्तों को जिला वतन करने के लिए स्थापित किया गया|

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के २०० स्वतंत्रता सेनानियों के पहले जत्थे के अंडमान तथा निकोबार तथा निकोबार द्वीपों में १० मार्च १८५८ के आगमन के साथ बंदी उपनिवेश की शुरुआत हुई| सभी लम्बी अवधि और आजीवन कारावास की सजा पाए देशभक्तों जो किसी कारणवश बर्मा और भारत में मृत्यु दण्ड से बच गए थे, उन्हें अंडमान के बंदी उपनिवेश में भेजा गया|

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात वहाबी विद्रोह, मणिपुर विद्रोह, आदि से जुड़े सेनानियों और अन्य देशभक्तों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने के जुर्म में अंडमान के बंदी उपनिवेश भेजा गया|  

चित्रावली

सन्दर्भ

सेलुलर जेल में अनेक भारतीय क्रांतिकारियों ने अपना बन्दी जीवन व्यतीत किया विनायक दामोदर सावरकर, जोयदेव कपूर, आशुतोष लाहिड़ी होतीलाल वर्मा, बटुकेद्वार दत्ता, बाबू राम हरी, नानीगोपाल मुखोपाध्याय, सरदार गुरमुख सिंह, पंडित परमानन्द, बरिंद्र कुमार घोष, इंदु भूषण रॉय, पृथ्वी सिंह आज़ाद, पुलिन दास, त्रिलोकी नाथ चक्रबर्ती, गुरुमुख सिंह मुख्य थे।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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