पद्मसम्भव

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भारत के सिक्किम में गुरू रिन्पोचे की प्रतिमा

पद्मसम्भव (तिब्बती: པདྨ་འབྱུང་གནས), (अर्थ: कमल से उत्पन्न) भारत के एक साधुपुरुष थे जिन्होने आठवीं शती में तांत्रिक बौद्ध धर्म को भूटान एवं तिब्बत में ले जाने एवं प्रसार करने में महती भूमिका निभायी। वहाँ उनको "गुरू रिन्पोछे" (बहुमूल्य गुरू) या "लोपों रिन्पोछे" के नाम से जाना जाता है। ञिङमा सम्प्रदाय के अनुयायी उन्हें द्वितीय बुद्ध मानते हैं।

ऐसा माना जाता है कि मंडी के राजा अर्शधर को जब यह पता चला कि उनकी पुत्री ने गुरु पद्मसंभव से शिक्षा ली है तो उसने गुरु पद्मसंभव को आग में जला देने का आदेश दिया, क्योंकि उस समय बौद्ध धर्म अधिक प्रचलित नहीं था और इसे शंका की दृष्टि से देखा जाता था। बहुत बड़ी चिता बनाई गई जो सात दिन तक जलती रही। इससे वहाँ एक झील बन गई जिसमें से एक कमल के फूल में से गुरु पद्मसंभव एक षोडशवर्षीय किशोर के रूप में प्रकट हुए।[१] यह झील आज के रिवालसर शहर में है जो हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित है।

बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ