सुचित्रा भट्टाचार्य
सुचित्रा भट्टाचार्य | |
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मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | लेखिका |
उच्च शिक्षा | कलकत्ता विश्वविद्यालय |
उल्लेखनीय कार्यs | हेमोन्तर पाखी, दहन, रंगिन पृथ्वी |
साँचा:template otherसाँचा:main other सुचित्रा भट्टाचार्य (10 जनवरी 1950 - 12 मई 2015) एक भारतीय उपन्यासकार थीं।[१]
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुचित्रा भट्टाचार्य का जन्म 10 जनवरी 1950 को भागलपुर, बिहार में हुआ था। उनमें बचपन से ही लिखने में रुचि थी।
भट्टाचार्य ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध जोगमाया देवी कॉलेज, कोलकाता से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।[२]
स्नातक होने के बाद उन्होंने शादी कर ली और लेखन से आराम ले लिया। वह सत्तर के दशक के अंत (1978-1979) में छोटी कहानियों में लेखन के साथ लौटीं। उन्होंने अस्सी के दशक के मध्य में उपन्यास लिखना शुरू किया। एक दशक के भीतर, विशेषकर उपन्यास काचर देवल (ग्लास वाल) के प्रकाशन के बाद, वे बंगाल के प्रमुख लेखकों में से एक बन गई।
12 मई 2015 को, ढकुरिया, कोलकाता में स्थित उनके निज निवास में हृदयाघात की वजह से उनका निधन हो गया।
लेखन जीवन
पिछले दो दशकों में, सुचित्रा ने विभिन्न प्रमुख बंगाली साहित्यिक पत्रिकाओं में लगभग 24 उपन्यास और बड़ी संख्या में लघु कहानियां लिखी थीं। उनके कुछ प्रशंसित उपन्यास हैं-
- कचहरी मानुष (मेरे करीब)
- दहन (द बर्निंग)
- काचर देवल (कांच की दीवार)
- हेमोन्तर पाखी (शरद ऋतु का पक्षी)
- नील घुन्नी (नीला बवंडर)
- एलीक शुख (स्वर्गीय आनंद)
- गभीर आशुख (एक गंभीर बीमारी)
- उरो मेघ (उडता बादल)
- छेरा तार (टूटा तारा)
- आलोछाया (प्रकाश की छाया)
- एनीओ बसंतो (एक अन्य बसन्त)
- प्रभास
- पालबर पथ नी (कोई निकास नहीं)
- आमी रायकिशोरी
- रंगिन प्रीतिबी (रंगीन दुनिया)
- जलछोबी (वॉटरमार्क)
- मिटिन मासी पुस्तक श्रृंखला
- दशती उपनिषद (दस उपन्यास)
- जर्मन गणेश
- एक्का (अकेला)
उनके उपन्यासों और लघु कथाओं का हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, उड़िया, मराठी, गुजराती, पंजाबी और अंग्रेजी जैसी कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उन्होंने बच्चों के लिए उपन्यास और लघु कथाएँ भी लिखीं। उन्होंने वार्षिक "आनंदमाला" में काल्पनिक चरित्र "मितिन मासी" के साथ जासूसी उपन्यासों की एक श्रृंखला लिखी है। उनके उपन्यास दहन को बंगाली निर्देशक दिवंगत रितुपर्णो घोष द्वारा एक फिल्म (क्रॉसफ़ायर, 1997) में बनाया गया था, जोकि एक बलात्कार पीड़िता के कठिन परीक्षा और आघात पर आधारित थी। "इचर गाच": इस लघु कहानी ने शिबोप्रासाद मुखर्जी और नंदिता रॉय द्वारा निर्देशित एक पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म 'इक्के' (एक मां-बेटे के रिश्ते की एक स्तरित पठन) को भी प्रेरित किया।[३] उर्मि चक्रवर्ती की एक फीचर फिल्म "हेंमोन्तर पाखी" भी बनाई गई थी।
पुरस्कार और प्रशंसा
सुचित्रा को कई पुरस्कार मिले, जिसमें 2004 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से भुवन मोहिनी पदक, 1996 में बैंगलोर से नंजनगुडु थिरुमलम्बा राष्ट्रीय पुरस्कार, दिल्ली से 1997 कथा पुरस्कार, कोलकाता से 2000 में ताराशंकर पुरस्कार, 2001 में कल्याणी से द्विजेंद्रलाल पुरस्कार शामिल हैं। 2002 में भागलपुर से शरत पुरस्कार, साथ ही भारत निर्माण पुरस्कार, 2004 में साहित्य सेतु पुरस्कार और 2004 में शैलानंदानंद स्मृति पुरस्कार और 2015 में दिनेश चंद्र स्मृति पुरस्कार, 2012 में माटी नंदी पुरस्कार, 2015 पर दिनेश चंद्र स्मृति पुरस्कार भी प्राप्त किया। उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय से मोहिनी स्वर्णपदक भी प्राप्त हुआ।
मृत्यु
सुचित्रा भट्टाचार्य का 65 वर्ष की आयु में 12 मई 2015 को कोलकाता के ढकुरिया स्थित उनके निज निवास पर हृदय गति रुकने के कारण निधन हो गया।[४][५]