सिंधुदुर्ग
सिंधुदुर्ग (मराठी: सिंधुदुर्ग), (दो संस्कृत या हिन्दी शब्दों, सिंधु यानि समुद्र और दुर्ग यानि किला से मिल कर बना है और जिसका अर्थ समुद्र का किला है) छत्रपती शिवाजी महाराज द्वारा सन 1664 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर निर्मित एक नौसैनिक महत्त्व के किले का नाम है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है।
भारत सरकारने इस किले को दिनांक २१ जून, इ.स. २०१० के दिन महाराष्ट्र का राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
महत्त्व शिवाजी महाराज के सैनिक दल में इस किले को बहुत महत्त्व प्राप्त था। किले के क्षेत्र कुरटे बंदरगाह पर ४८ एकर पर फैला है। तटबंदी की लंबाई साधारणत: तीन किलोमीटर है। बुरुज की संख्या ५२ होकर ४५ पथरीले जिने है। इस किले पर शिवाजी महाराज के काल के मीठे पानी के पथरीले कुँए है। उनके नाम दूध कुऑ शक्कर कुँआ ,दही कुँआ एेसे है। इस किले की तटबंदी की दीवार में छत्रपती शिवाजी महाराज ने उस काल में तीस से चालीस शौचालय की निर्मिति की है। इन किलो में शिवाजी महाराज का शंकर के रूप का एक मंदिर है। यह मंदिर इ.स. १६९५ में शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम महाराज इन्होंने बनाया था।
इतिहास छत्रपती शिवाजी महाराज के आरमारी दल का आद्यस्थान मालवण यहाँ का जंजिरा मतलब यह सिंधुदुर्ग किला है। महाराज के पास ३६२ किले थे। इन सब किलो के पूर्व में विजापूर, दक्षिणेस हुबली, पश्चिमेस अरबी समुद्र और उत्तरेस खानदेश-वऱ्हाड इन देशाे तक का विस्तार है। 'भुईकोट' और पहाड़ी किले के बराबरी में सागरी मार्ग पर शत्रु की स्वारी के लिए जलदुर्ग की निर्मिती महत्त्वपूर्ण है। यह पहचान कर शिवाजी महाराज ने सागरी किल्ले निर्माण किए।अच्छी, मजबूत और सुरक्षित स्थलो को खोज कर समुद्रकिनाऱो का निरीक्षण किया। इ.स. १६६४ साल में मालवण के पास कुरटे नाम का काला कभिन्न चट्टानवाला बंदरगाह किलो के लिए चुना। महाराज के हस्ते किले के तटाे की नींव डाली गई है। आज'मोरयाचा दगड' इस नाम से यह जगह प्रसिद्ध है।एक पत्थर पर गणेशमूर्ती, एक सूर्याकृती और दूसरी ओर चंद्राकार कर महाराज ने पूजा की।
ऐसा कहा जाता है कि, किला बनाने के लिए एक करोड़ 'होन' खर्च करने पडे। यह सब खडा करने के लिए तीन वर्ष का कालावधी लगा। जिन चार कोली लोगों ने सिंधुदुर्ग बनाने के लिए योग्य जगह ढूँढी उन्हें गाँव के गाँव इनाम में दिए गए। ऐतिहासिक सौदर्य से परिपूर्ण सिंधुदुर्ग यह किला जिन कुरटे खडक पर तीन सदी से खडा है वह शुद्ध खडक मालवण से लगभग आधा मील समुद्र में है। इस खडक पर समुद्र मार्ग से व्याप्त क्षेत्र लगभग ४८ एकड है। उसका तट २ मील इतना है। तट की उंचाई ३० फूट और चौड़ाई १२ फूट है। तट पर जगह जगह मजबूत ऐसे कुल मिलाकर २२ बुर्ज है। बुर्ज के आस पास धारदार खडक है। पश्चिम की ओर और दक्षिणे की ओर अथांग सागर फैला है। पश्चिमी दिशा में और दक्षिण की ओर तट के तल पर ५०० खंडी शिसे डाले गए इस तट को बनाने में ८० हजार होन खर्च हुए।
शिवकालीन चित्रगुप्त ने लिखी बखर में इस बाबत इस प्रकार मायने का उल्लेख किया है।
“ 'चौऱ्यााऐंशी बंदरात हा जंजिरा अठरा टोपीकरांचे उरावर शिवलंका, अजिंक्य जागा निर्माण केला । सिंधुदुर्ग जंजिरा, जगी अस्मान तारा । जैसे मंदिराचे मंडन,श्रीतुलसी वृंदावन, राज्याचा भूषण अलंकार । चतुर्दश महारत्नापैकीच पंधरावे रत्न, महाराजांस प्राप्त ज
बनावट और दर्शनीय स्थान सिंधुदुर्ग का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा में है। इस जगह प्रवेश द्वार है यह समझ में नहीं आता है। पानी से मनुष्य तट पर उतरा कि उत्तराभिमुख एक खिंड दिखाई देती है इस खिंड से अंदर जाने पर दुर्गाका दरवाजा लगता है। यह दरवाजा मजबूत 'उंबर'के फलों से किया गया है। उंबर की लकड़ी दीर्घकाल टिकती है उसे साग लकडी से मिलाकर बनाया है। अंदर जाने पर हनुमान जी का छोटा मंदिर है। वही से बुर्ज पर जाने के लिए मार्ग है। बुर्ज में जाने पर आजूबाजू का १५ मील का प्रदेश सहज दिखाई देता है। पश्चिमी ओर जरीमरी का मंदिर लगता है। आज भी लोग वहाँ बस्ती करके रहते हैं। श्री शिवराजेश्वर का देवालय और मंडप में महाराज की अन्यत्र कोई भी किलेपर न दिखाई देनेवाली बैठी प्रतिमा सिर्फ यही पर दिखाई देती है। सिंधुदुर्ग किले की प्रमुख विशेषता मतलब इस किले में आज भी हर बारा वर्षाेबाद रामेश्वर की पालखी शिवराजेश्वर यहाँ आती है। अंग्रजाें ने किला अपने अधिकार में लेने के बाद कुछ प्रमाण में वह उद्ध्वस्त कर डाला। किला बनाने के लिए उपयोग में आया चुना आज भी दिखाई देता है। मराठो का भगवा ध्वज और उनका ध्वजस्तंभ २२८ फूट ऊँचा था। इसलिए समुद्र से वह ध्वज सहजरुप से दृष्टीगत होता था।ध्वज को देखकर मच्छिमार खडक से दूर रहते थे। यह भगवा ध्वज इ.स.१८१२ तक फडक रहा था।
गड पर जगहों जगहें तोप रखने की जगह है। बंदुक रखने के लिए तट पर छेद रखें है।. सैनिकाे के लिए पायखाने है। छत्रपती शिवाजी महाराज ने ३०० वर्ष पहले से सार्वजनिक स्वच्छता का संदेश इसमें से दिखाया है, यह विशेष बात है। कोकण के सिंधुदुर्ग किले की नींव भी छत्रपती शिवाजी महाराज की दृष्टी से अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। र्सिंधुदुर्ग जिले का स्मृतिमय इतिहास मतलब यह किला है। असंख्य सैनिकों के साक्षी ने और परिश्रम से समुद्र में यह हा किला बनाया वह आज भी पर्यटकों को विशेष आकर्षित करता है।
सिंधुदुर्ग किला मालवण से लगभग आधा मील समुद्र में है। १९६१ साली तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण ने तट की दुरुस्ती की।
विषेश मतलब इस किले में एक नारीयल के झाड को दो डंगाल (वाय) आकार की थीं। अाजकल उसमें की एक डंगाल तेज बिजली गिरने से टूट गई है। पानी की व्यवस्था मुख्य मतलब इस किले के परिसर में मीठे पानी के तीन कुँए है। उनके नाम दूधबाव, दहीबाव और साखरबाव ऐसे है। इन कुओं का पानी स्वाद में अत्यंत मीठा लगता है। किले के बाहर खारे पानी और अंदर मीठा पानी यह निसर्ग का एक चमत्कार ही मानना पडेगा। इस कारण किले पर रहना सुलभ हुआ था। पानी का अतिरिक्त संग्रह करने के लिए एक सूखा तलाब बांधा गया। फिलहाल इस तलाब के पानी का इस्तेमाल सब्जी उगाने के लिये होता है।
सिंधुदुर्ग महोत्सव छत्रपती शिवाजी महाराजांच्या आरमारी दलाचे आद्यस्थान म्हणून ऐतिहासिक वारसा लाभलेल्या सिंधुदुर्ग किल्ल्याच्या बांधकामास यावर्षी साडेतीनशे वर्ष पूर्ण होत असल्याचे औचित्य साधून महारा़्ष्ट्र राज्य शासनाच्या सांस्कृतिक कार्य संचालनालयातर्फे दि. २२ एप्रिल ते २४ एप्रिल २०१६ या काळात सिंधुदुर्ग महोत्सवाचे आयोजन केले आहे.
महाराष्ट्रा सरकार व मालवण येथील किल्ले सिंधुदुर्ग प्रेरणोत्सव समिती यांच्या संयुक्त विद्यमाने सिंधुदुर्ग किल्ला आणि मालवण येथील बोर्डिंग ग्राऊंडवर या महोत्सवाचे
सन्दर्भ
सिंधुदुर्ग का निर्माण सन 1664 में महाराष्ट्र के शिवाजी महाराज ने करवाया था