साँचा:आज का आलेख दिसंबर २०१८
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सफ़ेद बारादरी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कैसरबाग मोहल्ले में स्थित एक श्वेत संगमर्मर निर्मित महल है जिसका निर्माण अवध के तत्कालीन नवाब वाजिद अली शाह ने मातमपुर्सी के महल के रूप में १८४५ में करवाया था और इसका नाम कस्र-उल-अजा रखा था। इसे इमाम हुसैन के लिये अजादारी अर्थात मातमपुर्सी हेतु इमामबाडा रूप में करवाय़ा था। कुछ अन्य सूत्रों के अनुसार नवाब ने इसका निर्माण १८४८ में आरम्भ करवाया था जो १८५० में पूरा हुआ। इनके अनुसार इसको मुख्यतः नवाब वाजिद अली शाह के हरम में रहने वाली महिलाओं के लिए करवाया गया था। नवाब वाजिद अली शाह के समय के इतिहासकारों के अनुसार सैयद मेहदी हसन ने ईराक के कर्बला से लौटते हुए एक जरीह (हजरत हुसैन के मकबरे से उनकी एक निशानी) लेते आये थे जो पवित्र खाक-ए-शिफ़ा (हजरत हुसैन की शहादत की भूमि की मिट्टी) से बनी थी। मान्यतानुसार इस जरीह में चिकित्सकीय गुण थे, जिनके कारण इसे कर्बना दायनात-उद-दौला में रखा गया था। जब नवाब साहब को इस शिफ़ा का ज्ञान हुआ तो वे अपने सामन्तों सहित काले वस्त्रों में हजरत हुसैन का मातम करने गये थे। कालान्तर में नवाब वाजिद अली ने अपने सामन्तों को आदेश दिया कि इस जरीह को शाही जलूस के साथ सफ़ेद बारादरी लाया जाए और वहीं सहेज कर रखा जाए जिससे वहां मातम मनाया जा सके। विस्तार में...