गुरु घासीदास
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गुरु घासीदास | |
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जन्म |
18 दिसम्बर 1756 गिरौदपुरी छत्तीसगढ़, भारत |
मृत्यु |
अज्ञात |
कार्यकाल | 1756-1850 |
उत्तराधिकारी | गुरु बालकदास |
धार्मिक मान्यता | सतनामी |
जीवनसाथी | सफुरा माता |
बच्चे |
सहोद्रा माता, गुरु अमरदास, गुरु बालकदास |
माता-पिता | महगूंदास, माता अमरौतिन |
गुरू घासीदास (1756 – अंतर्ध्यान अज्ञात) ग्राम गिरौदपुरी जिला रायपुर में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है , के प्रवर्तक है । गुरूजी भंडारपुरी को अपना धार्मिक स्थल के रूप में संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिये वहाँ गुरूजी के वंशज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिये। इनसे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित रहे हैं
जीवनी
सन १६७२ में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था। सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया। यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकडते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेव और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। यूद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज मार निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं। इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी। चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था उनमे अद्भुत ताकत और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। बचे हुए सतनामी सैनिक पंजाब,मध्य प्रदेश कि ओर चले गये । मध्यप्रदेश वर्तमान छत्तीसगढ़ मे संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 1756 में बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है।
गुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगाये इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।
गुरु घासीदास ने सतनाम धर्म की स्थापना की और सतनाम धर्म की सात सिद्धांत दिए।
सतनामी समाज १९५० के बाद से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण अनुसुचित जाति मे शामिल कर लिया गया
गुरू घासीदास की शिक्षा
गुरु घासीदास बाबा जी के शिक्षा दीक्षा के संबंध में जितने भी जानकारियां दी जाती है वे सब भ्रामक है उन्होंने किसी से भी शिक्षा प्राप्त नहीं किया और न ही उनके कोई गुरु थे बाबा घासीदास स्वयं महाज्ञानी थे।
गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।
गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है।
सात शिक्षाएँ
सत्गुरू घासीदास जी की सात शिक्षाएँ हैं-
(१) सतनाम् पर विश्वास रखना।
(२) जीव हत्या नहीं करना।
(३) मांसाहार नहीं करना।
(४) चोरी, जुआ से दूर रहना।
(५) नशा सेवन नहीं करना।
(६) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।
(७) व्यभिचार नहीं करना।
- सत्य एवं अहिंसा
- धैर्य
- लगन
- करूणा
- कर्म
- सरलता
- व्यवहार
इन्हें भी देखें
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- सतनाम के संस्थापक संतगुरु घासीदास जी
- गुरू घासीदास (छत्तीसढ़ सरकार का जालघर)
- Satnam Description
- Satnami Wiki
- Text From Ian E Akbari
- Satnami Website By Mr. T. R. Khuntā
- A Website on Guru Ghāsidāsसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- A Disciple of Sat
- A Yog Guru From Kurukshetra
- Collection of Satnam Panthi Songs