संचयिक विश्लेषण

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यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए, तो संचयिक विश्लेषण (Combinatinal Analysis) के अंतर्गत बहुत से विषय आते हैं, जैसे सारणिक (Determinants), प्रायिकता (Probability), स्थलाकृति विज्ञान (Topology) आदि किंतु अब इनमें से प्रत्येक विषय ने अपने लिए पृथक् स्थान बना लिया है। अब तो संचयिक विश्लेषण के अंतर्गत केवल वे ही प्रकरण आते हैं जिनमें किसी न किसी स्थल पर इस बात का विचार किया जाए कि किसी समस्या के हल करने की कितनी विधियाँ हैं, अथवा कोई काम कितने प्रकार से हो सकता है।

उदाहरण 1. - मान लें, रेल के एक डिब्बे की शायिका (berth) पर चार आसन (seats) हैं, जिनपर निम्नलिखित संख्याएँ पड़ी हुई हैं :

1 2 3 4

मान लें कि हमारे पास यात्री और हैं, तो प्रश्न यह है कि इन दो यात्रियों को शायिका पर कितने प्रकार से बैठाया जा सकता है। स्पष्ट है कि पहले यात्री को हम चारों में से किसी भी आसन पर बैठा सकते हैं। इस प्रकार क को बैठाने की चार विधियाँ हुईं। मान लें, हमने को आसन संख्या 1 पर बैठा दिया। अब को बैठाने के लिए तीन आसन बचे। अत: को तीनों में से किसी भी आसन पर बैठाया जा सकता है। अत: को किसी एक आसन पर बैठाने पर को बैठाने की तीन विधियाँ हुई ओर को बैठाने के चार प्रकार हैं। अत: और दोनों को बैठाने की 4x3, अर्थात् 12 विधियाँ हुई, या यों कहिए कि को बैठाने की विधियों और को बैठाने की विधियों के 12 संचय हो सकते हैं। इसलिए इस विषय का नाम संचयिक विश्लेषण पड़ा। उपर्युक्त विधियाँ नीचे सारणी के रूप में दर्शाई गई हैं :

1    2    3     4
क    च
क         च
क              च
च    क
    क    च
    क         च
च         क
    च    क
         क     च
च              क
    च          क
         च     क

उदाहरण 2 - तीन अंकों, 1, 3, 8, में से कोई दो लेने से कितनी संख्याएँ बन सकती हैं? स्पष्ट है कि निम्नलिखित संख्याएँ बनेंगी :

13, 18, 38
31, 81, 83

इन संख्याओं की संख्या 6 है। यह संख्या 6 कहाँ से आई? उदाहरण 1. की भाँति तर्क करने से पता चलेगा कि प्रश्न का उत्तर 3x2 अर्थात् 6 ही होगा। इस उदाहरण में यह मान लिया गया है कि कोई भी अंक दुबारा नहीं लिया जाएगा, अन्यथा तीन संख्याएँ 11, 33, 88 और मिल जातीं अर्थात 9 तरीए हो जाते।

अधारभूत प्रमेय (१)

विभिन्न वस्तुओं में से वस्तुएँ लेने से कितने विन्यास बन सकते हैं? मान लें कि हमें इन स्थानों

१ २ ३ ४.......(ध-१) ध

को वस्तुओं में से एक एक वस्तु लेकर भरना है। पहले स्थान को भरने की विधियाँ हैं, क्योंकि वस्तुओं में से कोई भी एक लेकर हम उक्त स्थान पर बैठा सकते हैं।

जब एक वस्तु से एक स्थान भर गया, तब दूसरे स्थान को भरने के लिए हमारे पास (स-१) वस्तुएँ बचीं। अत: दूसरा स्थान भरने की (स-१) विधियाँ हुईं। इस प्रकार प्रथम दोनों स्थान भरने की स (स-१) विधियाँ हो गई। इसी प्रकार प्रत्येक पग पर एक गुणनखंड बढ़ता जाएगा और अंत में स्थान भरने की निम्नलिखित विधियाँ प्राप्त होंगी :

स (स-१) (स-२) ........ध गुणन खंडों तक,
अर्थात् स (स-१) (स-२) ......... (स-ध+१) विधियाँ

स=४, ध=२ रखने से उदाहरण १. का उत्तर (४)(३)=१२, आता है। इसी प्रकार स=३, ध=२ रखने से उदाहरण २. का उत्तर ६ आ जाता है।

इन विन्यासों का 'क्रमचय' (Permutations) कहते हैं और उपर्युक्त फल इस प्रकार लिखा जाता है :

सक्रध = स (स-१) (स-२)........(स-ध+१)

अब मान लें, उदाहरण २. में हमारा प्रश्न यह हो कि तीन संख्याओं १, ३, ८ में से कितने प्रकार से हम दो संख्याएँ चुन सकते हैं, जो इसका यह अर्थ हुआ कि इस चुनाव में अंकों के क्रम का कोई विचार नहीं होगा। अत: इस चुनाव में १८ और ८१ को एक दूसरे से भिन्न नहीं माना जाएगा। स्पष्ट है कि केवल तीन चुनाव होंगे :-

(१, ३) (१, ८) (३, ८)

पारिभाषिक भाषा में हम कहेंगे कि इस प्रकार के केवल तीन संचय (कम्बिनेशन्स) होंगे।

आधारभूत प्रमेय (२)

विभिन्न वस्तुओं में से वस्तुएँ लेने पर कितने संचय बन सकते हैं?

दृष्टांत के लिए मान लें कि स=४, ध=३, और वस्तुओं के स्थान पर हम चार अक्षर क, च, ट, त ले लें, तो स्पष्ट है कि इन अक्षरों में से तीन लेने से (४)(३)(२), अर्थात् २४, क्रमचय बनेंगे। इन २४ क्रमचयों में से कोई एक क्रमचय, ले लीजिए। क ट त, तीन अक्षरों के इस संचय से हम (३)(२), अर्थात् ६, क्रमचय बना सकते हैं :

क ट त; क त ट, ट क त, ट त क, त ट क, त क ट

इसी प्रकार प्रत्येक संचय से ६ क्रमचय बनेंगे। अत: संचयों की संख्या= (क्रमचयों की संख्या) / ६। इसी प्रकार व्यापक दृष्टांत में प्रत्येक संचय से अनेक क्रमचय बनेंगे। यदि प्रत्येक संचय में अक्षर हैं, तो उक्त संचय से उतने क्रमचय बनेंगे जितने विन्यास अक्षरों के पारस्परिक हेरफेर से बनेंगे, अर्थात् ध (ध-१) (ध-२)। ......(ध-ध+१), अर्थात् फैक्टोरियल ध। अतः

संचयों की संख्या = (१/ध) (क्रमचयों की संख्या)

इन्हें भी देखें