श्याम बर्थवार
श्याम बर्थवार (१९०० -- २००६) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी तथा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे। वे भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राधारानी सेन जैसे क्रांतिकारियों के समकालीन थे जिन्होंने 1920 से 1947 तक अनेक कार्रवाइयों में भाग लिया था। अंग्रेज सरकार ने उन्हें 20 से अधिक बार जेल भेजा, जिनमें अण्डमान की सेल्युलर जेल भी शामिल है। वे अपनी क्रांतिकारिता के लिये कभी प्रशंसा की अपेक्षा नहीं रखते थे और भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी पेंशन लेने से इसलिये मना कर दिया था कि देश के प्रति अपने कर्तव्य को निभाने का कोई पुरस्कार उन्हें स्वीकार नहीं।
जीवन परिचय
श्याम चरण बर्थवार का जन्म बिहार के पुराने गया जिले के खरांटी गांव में 1900 ईस्वी में हुआ था। यह गांव अब औरंगाबाद जिला में पड़ता है। वे अलग समय में, अलग अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाने जाते थे। श्याम बर्थवार अपने को 'श्याम बर्थ-वार'... "संघर्ष के लिये जन्म लेने वाला...” के रूप में पुकारा जाना अधिक पसन्द करते थे। अंग्रेज लोग उन्हें रॉबर्ट्स, बनारस मैन, श्याम प्रसाद, रामजी मिश्र आदि नामों से जानते थे। अंग्रेज उन्हें मुख्य रूप से 'बनारस मैन' ही कहते थे, क्योंकि इस शहर में न सिर्फ उनकी ननिहाल थी, बल्कि यहां उन्होंने कई कार्रवाइयों को भी अंजाम दिया था। यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि बनारस स्थित जिस घर से वे अपनी गतिविधियां संचालित करते रहे, वह ठीक कोतवाली के पीछे था।
जिस परिवार में श्याम बर्थवार का जन्म हुआ था, उसके सदस्य अंग्रेजों की सेवा में रहे थे। जिस दौर में श्याम बाबू किशोरावस्था की ओर बढ़ रहे थे, उनके परिजन अंग्रेजों की नौकरी कर रहे थे। बचपन से ही वे ऐसे माहौल में रहे, जहां अंग्रेजों की गुलामी की दारुण अनुभूतियां थी, क्रांतिकारियों पर होने वाले जुल्मों की कहानियां थी, विदेशी शासक के अत्याचार के किस्से थे। वे अपने परिजनों की आपसी बातें सुनकर भीतर ही भीतर सुलगते रहते थे। विशेष कर, पिता श्री दामोदर प्रसाद की बातों ने उनके भीतर क्रांतिकारी चेतना विकसित करने में निर्णायक भूमिका निभाई। पिता की बातों का उन पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ा और उनका व्यक्तित्व एक क्रांतिचेता, संघर्षशील, सामाजिक और राजनीतिक चिन्तक के रूप में विकसित होता गया।
वे अपने त्याग और सेवा के लिये जनता के बीच अत्यन्त समादृत थे। वे विशेषकर युवाओं के बीच में सदैव सक्रिय रहे और समाज में व्यापक सुधार के लिये कार्य किया। उनके भाषणों और लेखन ने समाज के वंचित और जागरूक युवाओं को हमेशा प्रेरित किया। [१]
वे १९६२ से १९६७ तक बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे I
सन्दर्भ
- ↑ महान क्रांतिकारी श्याम बर्थवार (प्रोफेसर कन्हैया प्रसाद सिन्हा)