शारदा मेहता
शारदा मेहता | |
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शारदा मेहता | |
जन्म |
26 June 1882 अहमदाबाद, ब्रिटीश भारत |
मृत्यु |
साँचा:death date and age वल्लभ विद्यानगर, [गुजरात]], भारत |
शिक्षा | बी।ए। |
शिक्षा प्राप्त की | गुजरात कोलेज |
व्यवसाय | सामाजिक कार्यकर, शिक्षाशास्त्री एवं लेखिका |
जीवनसाथी | साँचा:marriage |
बच्चे | रमेश सुमंत मेहता |
संबंधी | विद्यागौरी नीलकंठ (बहन) |
शारदा मेहता (26 जून 1882 - 13 नवंबर 1970) एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता, महिला शिक्षा की प्रस्तावक और एक गुजराती लेखिका थीं । समाज सुधारकों के परिवार में जन्मी, वह भारत के आधुनिक गुजरात राज्य में पहली दो महिला स्नातकों में से एक थीं। [१] उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और महिला कल्याण के लिए संस्थानों की स्थापना की। उन्होंने कई निबंध और एक आत्मकथा लिखी और साथ ही कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
शारदा मेहता का जन्म 26 जून 1882 को अहमदाबाद के एक नागर ब्राह्मण परिवार [२] [३] में हुआ था।[४] वह एक न्यायिक अधिकारी, गोपीलाल मणिलाल ध्रुव और बालाबेन की बेटी थीं; समाज सुधारक और कवि भोलानाथ दिवेटीया उनके नाना थे। [१]
उन्होंने रायबहादुर मगनभाई बालिका उच्च विद्यालय में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में वह महालक्ष्मी टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में एंग्लो-वर्नाक्युलर कक्षाओं में शामिल हो गईं और 1897 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उन्होंने 1901 में गुजरात कॉलेज से तर्क और नैतिक दर्शन में कला स्नातक की पदवी प्राप्त की। वह और उनकी बड़ी बहन विद्यागौरी नीलकंठ गुजरात में पहली दो महिला स्नातक थीं। [१] [४] [५]
उन्होंने 1898 में सुमंत मेहता से शादी की। वह तब एक मेडिकल छात्र थे और चार साल उनके सीनियर थे। [१] [५] बाद में उन्होंने बड़ौदा राज्य के गायकवाड़ के निजी चिकित्सक के रूप में और एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया। [६]
व्यवसाय
सामाजिक कार्य
मेहता ने सामाजिक सुधारों, महिला सशक्तीकरण , जातिगत प्रतिबंधों કે विरोध, अस्पृश्यता उन्मूलन और भारतीय स्वतंत्रता के लिए काम किया। वह महात्मा गांधी से प्रभावित थी। 1906 से, उन्होंने स्वदेशी (घरेलू) वस्तुओं और खादी के कपड़ों को बढ़ावा दिया। उन्होंने १९१७ में गिरमिटिया दासता [७] के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया । उन्होंने 1919 में नवजीवन के संपादन में इंदुलाल याग्निक की मदद की।[८]
उन्होंने 1928 में अहमदाबाद में आयोजित गुजरात किसान परिषद में भाग लिया।बारडोली सत्याग्रह के निपटारे के लिए प्रतिनियुक्ति के सदस्य के रूप में बंबई के राज्यपाल से मुलाकात की । १९२९ में उन्हें अहमदाबाद में कपड़ा मिलों में श्रम की स्थिति के संबंध में रॉयल कमीशन ऑन लेबर के सामने पेश किया गया। १९३० में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान शराब की दुकानों के सामने धरना दिया । 1931 में उन्होंने खादी की दुकान स्थापित की और अहमदाबाद के शेराठा के पास अपने पति के आश्रम में काम किया। १९३४ में ''अपना घर नी दूकान '' नाम से एक सहकारी स्टोर की स्थापना की । मेहता इन वर्षों के दौरान अहमदाबाद, बड़ौदा और बॉम्बे में कई शैक्षिक और महिला कल्याण संस्थानों से जुड़े थे, साथ ही साथ बड़ौदा प्रजा मंडल (बड़ौदा पीपुल्स एसोसिएशन) के सदस्य भी थे। वह 1931 से 1935 तक अहमदाबाद नगरपालिका की सदस्य थीं। 1934 में, उन्होंने महिला कल्याण के लिए ज्योति संघ की स्थापना की। [४]
वह महिला शिक्षा की प्रस्तावक थीं । [१] उन्होंने अहमदाबाद में वनिता विश्राम महिला विद्यालय की स्थापना की। [८] उन्होंने एसएनडीटी (कर्वे) महिला विश्वविद्यालय से संबद्ध एक कॉलेज की भी स्थापना की ।
साहित्य कैरियर
मेहता ने हिंदू ग्रंथों, संस्कृत साहित्य और अरबिंदो, सुखलाल सांघवी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन की रचनाओं का गहन अध्ययन किया था। [४]
वह एक निबंधकार, जीवनी लेखक और अनुवादक थी। [५] [९] उन्होंने दैनिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में सामाजिक मुद्दों पर निबंध लिखे। [४] पुराणोनी बालबोधक वार्ताओ (1906) बच्चों की कहानियों का एक संग्रह है जो उनके विकास के उद्देश्य से है। उन्होंने अंग्रेजी समाज सुधारक फ्लोरेंस नाइटेल की जीवनी फ्लोरेंस नाइटिंगेल नू जीवनचरित्र (1906) लिखी। उन्होंने गृह्यव्यासशास्त्र (1920) भी लिखा था। बालकोनु गृहशिक्षण (1922) बाल शिक्षा पर लेखन है।
1938 में, उन्होंने अपनी आत्मकथा, जीवनसंभावना (रेमीनीसीन्स: द मेमोरियर्स ऑफ शारदाबेन मेहता) में सार्वजनिक जीवन और महिला शिक्षा के लिए उनके प्रयासों के बारे में लिखा।[५][९][१०] उनके इन संस्मरणो में 1882 से 1937 तक की अवधि शामिल है । इसमें महिलाओं की सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक स्थिति और जागृति शामिल है।[११]
अपनी बहन के साथ, मेहता ने रोमेश चंदर दत्त के बंगाली उपन्यास संसार ( द लेक ओफपालम , 1902) का अनुवाद सुधावासिनी (1907)[१२] और द महारानी ऑफ बड़ौदा (चिमनाबाई द्वितीय) की ''पोझीशन ओफ वुमेन इन ईन्डियन लाईफ का अनुवाद (1911) हिन्दुस्तान मां स्त्रीओनुं सामाजिक स्थान या हिंदुस्तानना समाजिक जीवन मां स्त्रीओनुं स्थान (1915) के रूप में किया।[१][५][१३] उन्होंने साठे अन्नभाऊ के उपन्यास का भी अनुवाद किया।[९]
अवसान
13 नवंबर 1970 को वल्लभ विद्यानगर में उनका निधन हो गया। [१] [४]
ग्रन्थसूची
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यह सभी देखें
संदर्भ
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए Sujata, Menon (2013). Sarkar, Siddhartha (ed.). "An Historical Analysis of the Economic Impact on the Political Empowerment of Women In British India". International Journal of Afro-Asian Studies. Universal-Publishers. 4 (1): 17–18. ISBN 978-1-61233-709-8. ISSN 0974-3537.
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