शब्दानुशासन
आचार्य हेमचंद्र ने समस्त व्याकरण वांड्मयका अनुशीलन कर शब्दानुशासन एवं अन्य व्याकरण ग्रंथोकी रचना की। पूर्ववतो आचार्यों के ग्रंथो का सम्यक अध्ययन कर सर्वाङ्ग परिपूर्ण उपयोगी एवं सरल व्याकरण की रचना कर संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं को पूर्णतया अनुशासित किया है।
हेमचंद्रने 'सिद्धहेम' नामक नूतन पंचांग व्याकरण तैयार किया जिसके पाँच अंग ये हैं- ( १ ) मूलपाठ, ( २ ) धातुपाठ, (३ ) गणपाठ, ( ४ ) उणादिप्रत्यय एवं ( ५ ) लिङ्गानुशासन। इस व्याकरण ग्रन्थ का श्वेतछत्र सुशोभित दो चामर के साथ चल समारोह हाथी पर निकाला गया। ३०० लेखकों ने ३०० प्रतियाँ 'शब्दानुशासन' की लिखकर भिन्न-भिन्न धर्माध्यक्षों को भेंट देने के अतिरिक्त देश-विदेश, ईरान, सिंहल, नेपाल भेजी गयी। २० प्रतियाँ काश्मीर के सरस्वती भाण्डार में पहुंची। ज्ञानपंचमी (कार्तिक सुदि पंचमी) के दिन परीक्षा ली जाती थी।
आचार्य हेमचंद्र संस्कृत के अन्तिम महावैयाकरण थे। अपभ्रंश साहित्यकी प्राचीन समृद्वि के सम्बध में विद्वान उन पदों के स्तोत्र की खोज में लग गये। १८००० श्लोक प्रमाण बृहदवृत्ति पर भाष्य कतिचिद दुर्गापदख्या व्याख्या लिखी गयी। इसभाष्य की हस्तलिखित प्रति बर्लिन में है।