विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक'
विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक' (१८९९- १९४५) प्रेमचन्द परम्परा के ख्याति प्राप्त कहानीकार थे। प्रेमचन्द के समान साहित्य में कौशिक का दृष्टिकोण भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद था।[१][२] 'कौशिक' का जन्म १८९९ में पंजाब के अम्बाला नामक नगर में हुआ था। इनकी अधिकांश कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं। इन कहानियों के पात्रों में चरित्र निर्माण में लेखक ने मनोविज्ञान का सहारा लिया है और सुधारवादी मनोवृत्तियों से परिचालित होने के कारण उन्हें अन्त में दानव से देवता बना दिया है। कौशिक की कहानियों में पारिवारिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान का सफल प्रयास हुआ है। उनकी कहानियों में पात्र हमारी यथार्थ जीवन के जीते जागते लोग हैं जो सामाजिक चेतना से अनुप्राणित तथा प्रेरणादायी हैं। इनका प्रथम कहानी संग्रह 'रक्षाबंधन' सन 1913 में प्रकाशित हुआ था। इनकी कहानियां अपनी मूल संवेदना को पूर्ण मार्मिकता के साथ प्रकट करती हैं। इनका निधन सन 1945 में हुआ।
कृतियाँ
कहानी संग्रह
- 'रक्षाबंधन'- इसके अंतर्गत २४ कहानियाँ संकलित की गई हैं। जैसे-भक्त की टेर, पत्रकार, प्रतिहिंसा, सहचर, हवा, आविष्कार, कथा, कार्य कुशलता, वोटर, मद, हिसाब-किताब, प्रमेला, वशीकरण, कम्यूनिस्ट सभा, वैषम्य, भक्षक-रक्षक, चलते-फिरते, वाह री होली, अवसरवाद, रक्षा-बन्धन, मनुष्य, स्वयं सेवक, मूंछें, विजय दशमी[३] आदि।
- 'कल्प मंदिर'
- 'चित्रशाला'
- 'प्रेम प्रतिज्ञा'
- 'मणि माला'
- 'कल्लोल'
इन संग्रहों में कौशिक की 300 से अधिक कहानियां संग्रहित हैं।