विश्वकद्रु तारामंडल
विश्वकद्रु या कैनीज़ विनैटिसाए (अंग्रेज़ी: Canes Venatici) खगोलीय गोले के उत्तरी भाग में स्थित एक छोटा-सा तारामंडल है। इसकी परिभाषा १७वी सदी में योहानॅस हॅवॅलियस (Johannes Hevelius) नामक जर्मन खगोलशास्त्री ने की थी। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में भी यह शामिल है। इस तारामंडल के तारे धुंधले होने से दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने अपनी ४८ तारामंडलों की सूची में इसे अलग स्थान देने के बजाए इसे आकाश में इसके पड़ोस में स्थित सप्तर्षि तारामंडल का ही भाग बना डाला था।
नाम की उत्पत्ति
लातिनी भाषा में "कैनीज़ विनैटिसाए" का अर्थ "शिकारी कुत्ता" होता है और इसका कालपनिक चित्रण कभी-कभी ग्वाला तारामंडल के ग्वाले के साथ खड़े कुत्ते के रूप में होता है। संस्कृत में और प्राचीन भारतीय कथाओं में "विश्वकद्रु" का अर्थ भी "शिकारी कुत्ता" था।[१]
तारे
विश्वकद्रु तारामंडल में २१ तारें हैं जिन्हें बायर नाम दिए जा चुके हैं, जिनमें से अगस्त २०११ तक एक के इर्द-गिर्द ग़ैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया था। इस तारामंडल में कोई भी तारा २ खगोलीय मैग्नीट्यूड से अधिक चमक नहीं रखता। याद रहे कि मैग्नीट्यूड की संख्या जितनी ज़्यादा होती है तारे की रौशनी उतनी ही कम होती है। इसका सब से रोशन तारा पृथ्वी से ११० प्रकाश-वर्ष दूर स्थित कोर करोली (Cor Caroli, बायर नाम: α Canum Venaticorum) है, जो वास्तव में एक द्वितारा है जिनकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) मिलकर २.८१ मैग्नीट्यूड है। इस द्वितारे का अधिक रोशन वाला तारा अपने वातावरण में असाधारण (अधिक) मात्राओं में सिलिकन, पारे और युरोपियम के तत्वों की उपस्थिति रखता है और इस तारे का चुम्बकीय क्षेत्र भी काफ़ी शक्तिशाली है (पृथ्वी से ५००० गुना अधिक)।
इसी तारामंडल में ला सुपरबा (La Superba) नामक परिवर्ती कार्बन तारा है (यानि जिसकी बनावट में कार्बन अधिक है)। ऐसे तारों में बहुत अधिक लालिमा देखी जाती है और ला सुपरबा भी अपने गहरे लाल रंग के लिए मशहूर है। तारों के अलावा, इस तारामंडल में पाँच दिलचस्प मॅसिये वस्तुएँ भी देखी गई हैं, जिनमें से चार तो सर्पिल (स्पाइरल) आकाशगंगाएँ हैं और एक गोल तारागुच्छ है।