विद्युत मोटर
विद्युत मोटर (electric motor) एक विद्युतयांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है; अर्थात इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है जिससे इससे जुड़ी मशीन या यन्त्र भी घूमने लगती है। अर्थात यह विद्युत जनित्र का उल्टा काम करती है जो यांत्रिक ऊर्जा लेकर विद्युत उर्जा पैदा करता है। कुछ मोटरें अलग-अलग परिस्थितियों में मोटर या जनरेटर (जनित्र) दोनो की तरह भी काम करती हैं।
विद्युत् मोटर विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिणत करने के साधन हैं। विद्युत् मोटर औद्योगिक प्रगति का महत्वपूर्ण सूचक है। यह एक बड़ी सरल तथा बड़ी उपयोगी मशीन है। उद्योगों में शायद ही कोई ऐसा प्रयोजन हो जिसके लिए उपयुक्त विद्युत मोटर का चयन न किया जा सके।
मोटर का कार्य-सिद्धान्त
बल तथा बलाघूर्ण
विद्युत मोटरों का मूल उद्देश्य विद्युतचुम्बकीय बल/बलाघूर्ण उत्पन्न करके स्टेटर और रोटर के बीच आपेक्षिक गति (अर्थात किसी वाह्य बल/बलाघूर्ण के विरुद्ध बल/बलाघूर्ण लगाते हुए तथा रैखिक गति/घूर्णी गति करना) पैदा करना है। इस प्रकार विद्युत मोटर, विद्युत ऊर्जा लेकर यांत्रिक कार्य करती है।
मोटर की वाइंडिंग के धारावाही चालकों पर लगने वाला लॉरेंज बल निम्नलिखित समीकरण द्वारा अभिव्यक्त होता है-
- <math>\mathbf{F} = I \boldsymbol{\ell} \times \mathbf{B} \,\!</math>[१]
या,
- <math>\mathbf{F} = I \ell B \,\!\sin\theta</math>
जहाँ <math>\theta</math> धारा की दिशा (धारावाही चालक की दिशा में) और <math>\mathbf{B} </math> के बीच का कोण है।
शक्ति
मोटर द्वारा उत्पन्न यांत्रिक शक्ति Pem निम्नलिखित समीकरण से दी जाती है-[२]
- <math>P_{em} = {angular \ speed \times T}</math> (watts).
जहाँ शाफ्ट की कोणीय चाल रेडियन प्रति सेकेण्ड में तथा T न्यूटन-मीटर में होनी चाहिये।
रैखिक मोटरों के लिये,
- <math>P_{em} = F\times{v}</math> (watts).
जहाँ F न्यूटन में तथा वेग v मीटर प्रति सेकेण्ड में होगी।
उपयोगिता
विद्युत् मोटर (Electric Motor) उद्योगों में एक आदर्श प्रधान चालक (prime mover) है। अधिकांश मशीनें विद्युत मोटरों द्वारा ही चलाई जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि विद्युत् मोटरों की दक्षता दूसरे चालकों की तुलना में ऊँची होती है। साथ ही उसका निष्पादन (performance) भी अधिकतर उनसे अच्छा होता है। विद्युत् मोटर प्रवर्तन तथा नियंत्रण के दृष्टिकोण से भी आदर्श है। मोटर को चलाना, अथवा बंद करना, तथा चाल को बदलना अन्य चालकों की अपेक्षा अधिक सुगमता से किया जा सकता है। इसका दूरस्थ नियंत्रण (remote control) भी हो सकता है। नियंत्रण की सुगमता के कारण ही विद्युत् मोटर इतने लोकप्रिय हो गए हैं।
विद्युत् मोटर अनेक कार्यों में प्रयुक्त हो सकते हैं। ये कई सौ अश्वशक्ति की बड़ी बड़ी मशीनें तथा छोटी से छोटी, अश्वशक्ति तक की, मशीनें चला सकते हैं। उद्योगों के अतिरिक्त ये कृषि में भी, खेतों के जोतने, बोने तथा काटने की मशीनों को और सिंचाई के पम्पों को चलाने के लिए, प्रयुक्त होते हैं। घरों में प्रशीतन, धोवन, तथा अन्य विभिन्न कामों की मशीनें भी इनसे चलाई जाती हैं।
विद्युत् मोटर भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए भिन्न भिन्न प्रयोजनों के लिए भिन्न भिन्न प्ररूपों के बने हैं। इनमें सरल नियंत्रक लगे रहते हैं, जिनसे अनेक प्रकार का काम लिया जा सकता है।
वर्गीकरण
संभरण (supply) के अनुसार परम्परागत रूप से मोटर दो प्रकार के गिनाये जाते रहे हैं - दिष्टधारा मोटर (डीसी मोटर) एवं प्रत्यावर्ती धारा मोटर (एसी मोटर)। अपने विशिष्ट लक्षणों के अनुसार दोनों ही के बहुत से प्ररूप होते है। किन्तु समय के साथ यह वर्गीकरण कमजोर पड़ गया है क्योंकि यूनिवर्सल मोटर ए.सी. से भी चल सकती है। शक्ति एलेक्ट्रानिकी (पॉवर एलेक्ट्रानिक्स) के विकास ने कम्युटेटर को अब मोटरों के अन्दर से बाहर कर दिया है।
मोटरों का दूसरा वर्गीकरण सिन्क्रोनस और असिन्क्रोनस के रूप में किया जाता है। यह कुछ सीमा तक अधिक तर्कपूर्ण वर्गीकरण है। सिन्क्रोनस मशीनों का रोटर उसी कोणीय चाल से चक्कर काटता है जिस गति से उस मोटर की प्रत्यावर्ती धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र गति करता है। किन्तु इसके विपरीत असिन्क्रोनस मोटरों का रोटर कुछ कम गति से चक्कर करता है। प्रेरण मोटर (इन्डक्शन मोटर) इसका प्रमुख उदाहरण है।
कुछ प्रमुख मोटरें इस प्रकार हैं:
डीसी मोटर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। डीसी मोटरें वहाँ अधिक उपयोगी होती हैं जहाँ चाल-नियंत्रण (स्पीड कन्ट्रोल) बहुत महत्व रखता है। ऐसा इसलिये हैं कि इनका स्पीड कन्ट्रोल बहुत आसानी से किया जा सकता है।
- ब्रशरहित डीसी मोटर (Brushless DC motor)
- ब्रशसहित डीसी मोटर (brushed DC motor)
- (१) सीरीज मोटर
- (२) शंट मोटर
- (३) कम्पाउण्ड मोटर
- (क) क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर
- (a) लाॅग शंट (b) शाॅर्ट शंट
- (ख) डिफरैन्शियल कम्पाउण्ड मोटर
- (a) लाॅग शंट (b) शाॅर्ट शंट
- (क) क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर
यूनिवर्सल मोटर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। यह वास्तव में सेरीज डीसी मोटर है जो एसी एवं डीसी दोनो से चलायी जा सकती है। घरों में उपयोग में आने वाला मिक्सर का मोटर यूनिवर्सल मोटर ही होता है। इसके अतिरिक्त रेलगाडी का इंजन खींचने के लिये (ट्रैक्शन मोटर) यूनिवर्शल मोटर का ही उपयोग किया जाता है क्योंकि इनकी चाल के साथ बलाघूर्ण के बदलने का सम्बन्ध (टॉर्क-स्पीड हकैरेक्टरिस्टिक) इस काम के लिये बहुत उपयुक्त है। यह मोटर कम चाल पर बहुत अधिक बलाघूर्ण पैदा करता है जबकि चाल बढने पर इसके द्वारा उत्पन्न किया गया बलाघूर्ण क्रमशः कम होता जाता है।
प्रेरण मोटर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
सबसे-सामान्य प्रत्यावर्ती धारा मोटर प्रेरण मोटर (induction motor) है, जो प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। यह मोटर सबसे अधिक उपयोग में आता है जिसके कारण इसे उद्योगों का वर्कहॉर्स कहते हैं। इसमें घिसने वाला कोई अवयव नहीं है जिससे यह बिना मरम्मत के बहुत दिनो तक चल सकता है।
- तीन फेजी
- स्क्वैरेल केज
- स्लिप-रिंग
- एक फेजी
घरों में सामान्य कार्यों एवं कम शक्ति के लिये प्रयुक्त अधिकांश मोटरें एक-फेजी प्रेरण मोटर ही होतीं हैं इन्हें फ्रैक्श्नल हॉर्शपॉवर मोटर भी कहते हैं। उदाहरण के लिये पंखों, धुलाई की मशीनों के मोटर आदि।
प्रत्यावर्ती धारा मोटरों में भी दिष्ट धारा मोटरों की भाँति ही क्षेत्रकुंडलियाँ तथा आर्मेचर होते हैं, परंतु कुछ विभिन्न रूप में। इनमें दो मुख्य भाग होते हैं : एक तो स्टेटर (stator), जो स्थिर रहता है और दूसरा रोटर को घूमता है। प्रत्यावर्ती धारा मोटरें भी विभिन्न प्ररूपों के होते हैं।
सिन्क्रोनस मोटर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। तीन फेजी सिन्क्रोनस मोटर बहुत कम उपयोग में आती है। इसका एक प्रमुख उपयोग शक्ति गुणांक (पॉवर फैक्टर) को अच्छा बनाने (लगभग १ करने हेतु) के लिये किया जाता है। यह अपने-आप स्टार्ट नहीं होती एवं चलाना आरम्भ करने के लिये कुछ अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ती है। किन्तु सिन्क्रोनस जनित्र या अल्टरनेटर का बहुत उपयोग होता है और दुनिया का अधिकांश विद्युत शक्ति अल्टरनेटरों के द्वारा हि पैदा की जा रही है। यह मोटर की लागत ज्यदा नहीं होती है।
रैखिक मोटर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इनका उपयोग आजकल तेज गति की रेलगाड़ियों में हो रहा है।
स्टेपर मोटर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। आजकल इनका उपयोग स्थिति नियंत्रण (पोसिशन कन्ट्रोल) एवं चाल-नियन्त्रण (स्पीड कन्ट्रोल) के लिये बहुत होता है। इनको आंकिक निकायों (डिजिटल सिस्टम्स) की सहायता से कन्ट्रोल करना बहुत आसान कार्य है; जैसे कि किसी माइक्रोकन्ट्रोलर की सहायता से।
मोटरों की परस्पर तुलना
मोटर का प्रकार | लाभ | हानियाँ | प्रमुख उपयोग | प्राय: प्रयुक्त ड्राइव |
---|---|---|---|---|
प्रेरणी मोटर (Shaded Pole) |
सबसे सस्ती लम्बा जीवनकाल उच्च शक्ति |
आरम्भिक बलाघूर्ण कम होता है | पंखे | एक/बहु-फेजी AC |
प्रेरणी मोटर (split-phase capacitor) |
उच्च शक्ति उच्च आरम्भिक बलाघूर्ण |
Rotation slips from frequency | Appliances | एक/बहु-फेजी AC |
सिंक्रोनस मोटर | Rotation in-sync with freq long-life (alternator) |
More expensive | Industrial motors Clocks Audio turntables tape drives |
Uni/Poly-phase AC |
स्टेपर मोटर | Precision positioning High holding torque |
Requires a controller |
Positioning in printers and floppy drives | Multiphase DC |
ब्रशरहित डीसी मोटर | Long lifespan low maintenance High efficiency |
High initial cost Requires a controller |
Hard drives CD/DVD players electric vehicles |
Multiphase DC |
ब्रशसहित डीसी मोटर | Low initial cost Simple speed control (Dynamo) |
High maintenance (brushes) Low lifespan |
Treadmill exercisers automotive starters |
Direct PWM |
उपयुक्त प्रकार के मोटर का चुनाव
यदि चाल व्यवस्थापन काफी विस्तृत परास में करना हो, तो श्राग मोटर (Schrage motor) बहुत उपयुक्त होते हैं। बहुत से स्थानों में दिष्ट धारा, श्रेणी मोटर का प्रचालन लक्षण वांछनीय होता है। इसकी व्यवस्था करने के लिए प्रत्यावर्ती धारा मोटरों में भी प्रयत्न किया गया है। प्रत्यावर्ती धारा श्रेणी मोटर (A.C. Series motor) एवं दिक्परिवर्तक मोटर (commutator motor) इसी प्रकार के विशिष्ट लक्षणों की व्यवस्था करते हैं। तुल्यकालिक मोटर (synchronous motor) केवल तुल्यकालिक चाल पर ही प्रचालन कर सकते हैं। अत: जहाँ एकसमानचाल की आवश्यकता हो, वहाँ ये आदर्श होते हैं। जिस प्रकार दिष्ट धारा जनित्र एवं मोटर, वस्तुत: एक ही मशीन हैं और दोनों को किसी भी रूप में प्रयोग करना संभव है। उसी प्रकार तुल्यकालिक मोटर भी, वस्तुत:, प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का, जिसे सामान्यत: प्रत्यावर्तित्र (Alternator) कहते हैं, ही रूप है और दोनों को किसी भी रूप में प्रयोग करना संभव है। इसके प्रचालन के लिए इसके स्टेटर में प्रत्यावर्ती धारा संचरण तथा रोटर में दिष्ट धारा उत्तेजक (D.C. excitation) दोनों की आवश्यकता होती है। इन मोटरों का प्रयोग कुछ सीमित है। दिष्ट धारा उत्तेजन के लिए प्रत्यावर्तित की भाँति ही इनमें भी एक उत्तेजन के लिए प्रत्यावर्तित की भाँति ही इनमें भी एक उत्तेजक (exciter) की व्यवस्था होती है। इन मोटरों का मुख्य लाभ यह है कि उत्तेजना को बढ़ाने से शक्तिगुणांक (power factor) भी बढ़ाया जा सकता है। अत: विशेषतया उन उद्योगों में जहाँ बहुत से प्रेरण मोटर होने के कारण, अथवा किसी और कारण, से शक्तिगुणांक बहुत कम हो जाता है, वहाँ तुल्यकालिक मोटरों की व्यवस्था कर शक्तिगुणांक को सुधारा जा सकता है। बहुत से स्थानों में तो ये मोटर केवल शक्तिगुणांक सुधार के लिए ही प्रयुक्त किए जाते हैं। ऐसी दशा में इन्हें तुल्यकालिक संधारित्र (Synchronous condenser) कहा जाता है।
बहुत से स्थानों में केवल एककलीय (single phase) संभरण ही उपलब्ध होता है। वहाँ एककलीय मोटर प्रयोग किए जाते हैं। छोटी मशीनों तथा घरेलू कार्यों के लिए एककलीय प्रेरण मोटर (single phase induction motor) बहुत लोकप्रिय हैं। बिजली के पंखों में भी एककलीय मोटर प्रयुक्त होते हैं। इसी प्रकार धावन मशीनों, प्रशीतकों तथा सिलाई की मशीनों इत्यादि में एककलीय मोटर ही प्रमुख किए जाते हैं। एककलीय मोटरों की मुख्य कठिनाई इनके आरंभ करने में होती हैं। आरंभ करने के लिए किसी प्रकार का कला विपाटन (phase spliting) आवश्यक होता है। कला विपाटन साधारणतया एक सहायक कुंडली द्वारा किया जाता है, जिसके एरिपथ में एक संधारित्र दिया होता है, जो सहायक कुंडलन की धारा को मुख्य कुंडलन की धारा से लगभग 10 विद्युत् डिग्री विस्थापित कर देता है। इसके कारण घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति संभव हो सकती है और मोटर चलने लगता है। संधारित्र के परिपथ में रहने से मोटर का प्रचालन शक्तिगुणांक भी सुधर जाता है। बहुत से छोटे छोटे मोटर सार्वत्रिक किस्म के होते हैं और दिष्ट धारा एवं प्रत्यावर्ती धारा दोनों में ही प्रयुक्त किए जा सकते हैं। वस्तुत: ये श्रेणी मोटर होते हैं, जिनका प्रचालन दिष्ट धारा एवं प्रत्यावर्ती धारा दोनों में ही प्रयुक्त किए जा सकते हैं। वस्तुत: ये श्रेणी मोटर होते हैं, जिनका प्रचालन दिष्ट धारा एव प्रत्यावर्ती धारा दोनों में ही संभव है, परंतु ये अत्यंत छोटे आकारों में ही बनाए जा सकते हैं और केवल कुछ विशेष प्रयुक्तियों में ही काम आते हैं।
मीटरों तथा दूसरे उकरणों में तथा जहाँ किसी विद्युत् राशि का मापन करना हो वहाँ अत्यंत छोटे आकार के मोटर प्रयुक्त होते हैं। दूरस्थ नियंत्रण, अथवा वाल्व इत्यादि को खोलने के लिए भी, बहुत से छोटे मोटर प्रयुक्त होते हैं।
मोटरों का उपरी आवरण
मोटर का ऊपरी आवरण विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार बनाया जाता है। कुछ मोटर खुले हुए प्ररूप के होते हैं, जिनमें उनके अंदर के भाग सामने दिखाई पड़ते हैं, परंतु ऐसे मोटरों में धूल मिट्टी जाने का डर रहता है। अतएव ये खुले स्थानों में नहीं प्रयुक्त किए जा सकते। परंतु ऐसे मोटरों में प्राकृतिक संवातन (ventilation) अच्छा होता है। अतएव ये शीघ्रता से गरम नहीं होने पाते। इस कारण ऐसे मोटर आकार के अनुसार सापेक्षतया अधिक क्षमता के होते हैं। जहाँ मोटर को खुले स्थानों में प्रचालन करना पड़ता है वहाँ धूल मिट्टी इत्यादि का डर हो सकता है, अत: पूर्णतया आवृत मोटर प्रयुक्त किए जाते हैं। ऐसे मोटरों में मुख्य कठिनाई संवातन की होती है। इनका आवरण भी ऐसा बनाया जाता है कि वह अधिकतम ऊष्मा विस्तरित (dissipate) कर सके। साथ ही उसी ईषा (shaft) पर आरोपित एक पंखे की भी व्यवस्था होती है, जो मोटर के अंदर संवातन वायु को प्रवेश कर सके और उसमें उत्पन्न होनेवाली ऊष्मा को विस्तरित कर सके। अधिकांश प्रयोजनों के लिए अर्ध-परिबद्ध (semienclosed) मोटर संतोषजनक होते हैं, जिनमें मोटर के दृष्टिगोचर होनेवाले भाग जाली द्वारा ढके रहते हैं। इस प्रकार इनमें उपर्युक्त दोनों प्ररूपों के लाभ निहित रहते हैं। विशेष परिस्थितियों के लिए विशेष प्रकार के आवरण बनाए जाते हैं, जैसे खानों के अंदर अथवा विस्फोटक वातावरण में पूर्णतया ज्वालारहित (flame-proof) मोटर प्रयुक्त किए जाते हैं। इसी प्रकार कुछ मोटर पानी में नीचे काम करने के लिए बनाए जाते हैं और उनके आवरण की रचना काम करने के लिए बनाए जाते हैं और उनके आवरण की रचना इस प्रकार होती है कि पानी मोटर के अंदर न जा सके। और भी बहुत सी विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के आवरण बनाए जाते हैं।
लोड के साथ सम्बद्ध करने की विधियाँ
बहुत सी मोटरों को भार से (कार्यकारी मशीन से) सीधे ही संबद्ध कर दिया जाता है और बहुत सी अवस्थाओं में उन्हें पट्टी (belt), गियर (gear) अथवा चेन (chain) द्वारा संबद्ध किया जाता है। गियर से चालक एवं चालित मशीनों में लगभग स्थिर चाल अनुपात पोषित किया जा सकता है और गियर क्रम बदलकर विभिन्न चालें भी प्राप्त की जा सकती हैं। पट्टी द्वारा शक्ति के प्रेषण में मशीन को मोटर से काफी दूर भी रखा जा सकता है और एक सामान्य ईषा को भी चलाया जा सकता है, जिससे दूसरी मशीनें संबद्ध हों। बड़े बड़े कारखानों में साधारणतया यही विन्यास होता है।
क्षमता या रेटिंग
मोटरों की क्षमता के लिए मुख्य परिसीमा ताप की वृद्धि है। ताप के बढ़ने पर क्षत होने का भी भय रहता है, तथा हानियों के बढ़ जाने से मोटर की दक्षता भी कम हो जाती है। इस प्रकार मोटर अनवरत प्रचालन नहीं कर सकता। अधिकांश मोटर एक विशिष्ट ताप वृद्धि के लिए क्षमित होते हैं, जो विद्युतरोधी के वर्ग पर निर्भर करता है। बहुत से मोटर "संतत क्षमता" (contiuous rating) के होते हैं, जिसका तात्पर्य है कि वह निर्धारित भार, बिना ताप के विशिष्ट सीमा तक बढ़े, निरंतर संभरण कर सकते हैं। बहुत से मोटर केवल अल्प काल के लिए ही पूर्ण भार पर प्रचालन करते हैं और बाकी समय बहुत कम भार पर रहते हैं अथवा बंद रहते हैं। यदि प्रचालनक्रम निश्चित हो, तो ऐसे प्रयोजनों के लिए कम क्षमता की मोटर केवल अल्प काल के लिए ही पूर्ण भार पर प्रचालन करते हैं और बाकी समय बहुत कम भार पर रहते हैं अथवा बंद रहते हैं। यदि प्रचालनक्रम निश्चित हो, तो ऐसे प्रयोजनों के लिए कम क्षमता की मोटरें प्रयोग की जा सकती हैं, जिनका प्रचालन तथा क्षमता अल्प समय के लिए ही निर्धारित होती है।
छबि दीर्घा
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Electric motors and generators - यहाँ पर एनिमेशन एवं स्कीमैटिक चित्रों की सहायता से विभिन्न प्रकार के मोटरों एवं जनित्रों की कार्यप्रणाली की व्याख्या (अंग्रेजी में)
- Electricity museum: early motors
- Video demonstration [१] of an original 1887 domestic-use electric motor.
- Brand-independent electric motor selection site
- Electric Motors and Generators, explanations with animations from the University of New South Wales.
- The Numbers Game: A Primer on Single-Phase A.C. Electric Motor Horsepower Ratings, Kevin S. Brady.
- ↑ साँचा:cite conference
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ http://www.circuitcellar.com/ स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Motor Comparison, Circuit Cellar Magazine, July 2008, Issue 216, Bachiochi, p.78