वारंग क्षिति
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ह्वारङ क्षिति | |
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प्रकार | आबूगीदा |
बोली जाने वाली भाषाएं | हो भाषा |
सृजनकर्ता | ओत् गुरु कोल"लाको बोदरा" |
मूल प्रणालियां |
मूल आविष्कार
|
यूनिकोड रेंज | अंतिम स्वीकृत लिपि प्रस्ताव |
ISO 15924 | WaraWara |
नोट: इस पन्ने पर यूनिकोड में IPA ध्वन्यात्मक चिह्न हो सकते हैं। |
वारंग क्षिति (Varang Kshiti) एक आबूगीदा लिपि है जिसका प्रयोग भारत के झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़ और असम राज्यों में बोली जाने वाली हो भाषा को लिखने के लिए किया जाता है।[१]
इतिहास
ओत् गुरु गोमके लको बोदरा ने १९४० के दशक में इस लिपि का आविष्कार किया था, लेकिन इसके सृजन का श्रेय उन्होंने कभी भी नहीं लिया। उनके अनुसार यह वास्त्व में १३वीं शताब्दी में देयोंवा तूरी द्वारा बनाई गई थी और उन्हें केवल दिव्यकृपा से पुनः प्रकट हुई जिसके बाद उन्होंने इसका आधुनिकीकरण किया। उन्होंने इसका प्रयोग कर के कुछ पुस्तकें लिखीं:
- एला अल एतु उता
- सड़ि सूड़े सागेन
- बा बुरु बोंगा बुरु
- पोम्पो
- सार होरा (८ आध्याय)
- रघु वंश
- हिताहसा
- आइदा होड़ कोवा सेवासड़ा
- पिटिका
- कोल नियम
इस लिपि में ३२ (11 स्वर और 21 व्यजंन वर्ण) हैं जिनमें एक निहित स्वर होता है,इसमें पहला अक्षर का उच्चारण "ओङ" होता है। संख्याओं के लिए भी अलग अंकों का प्रबन्ध है।[२]
यूनिकोड
वारङ क्षिति[३] | ||||||||||||||||
0 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | A | B | C | D | E | F | |
U+118Ax | 𑢠 | 𑢡 | 𑢢 | 𑢣 | 𑢤 | 𑢥 | 𑢦 | 𑢧 | 𑢨 | 𑢩 | 𑢪 | 𑢫 | 𑢬 | 𑢭 | 𑢮 | 𑢯 |
U+118Bx | 𑢰 | 𑢱 | 𑢲 | 𑢳 | 𑢴 | 𑢵 | 𑢶 | 𑢷 | 𑢸 | 𑢹 | 𑢺 | 𑢻 | 𑢼 | 𑢽 | 𑢾 | 𑢿 |
U+118Cx | 𑣀 | 𑣁 | 𑣂 | 𑣃 | 𑣄 | 𑣅 | 𑣆 | 𑣇 | 𑣈 | 𑣉 | 𑣊 | 𑣋 | 𑣌 | 𑣍 | 𑣎 | 𑣏 |
U+118Dx | 𑣐 | 𑣑 | 𑣒 | 𑣓 | 𑣔 | 𑣕 | 𑣖 | 𑣗 | 𑣘 | 𑣙 | 𑣚 | 𑣛 | 𑣜 | 𑣝 | 𑣞 | 𑣟 |
U+118Ex | 𑣠 | 𑣡 | 𑣢 | 𑣣 | 𑣤 | 𑣥 | 𑣦 | 𑣧 | 𑣨 | 𑣩 | 𑣪 | 𑣫 | 𑣬 | 𑣭 | 𑣮 | 𑣯 |
U+118Fx | 𑣰 | 𑣱 | 𑣲 | 𑣿 |