सिविल सेवा

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अर्शदीप पाण्‍डेय जाने माने छात्र
ग्वांगझोउ (चीन) में ७५०० कक्षों वाला परीक्षा-हाल (सन १८७३ में)

सिविल सेवा (Civil services) के दो अर्थ लगाये जाते हैं-

  • असैनिक सेवा - इसमें वे सभी कर्मचारी आते हैं जो सेना में नहीं हैं।
  • शासकीय सेवा की एक शाखा

इस लेख में 'सिविल सेवा' से अभिप्राय शासकीय सेवा की एक शाखा से है।

सिविल सेवा से तात्पर्य है सभी सरकारी विभाग जिनमें सशस्त्र सेनाओं से संबंधित विभाग नहीं आते हैं। तथा सिविल सेवकों से तात्पर्य है - 'अधिकारियों का वह समूह जो सरकारी कार्यक्रमों एवं योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं'। इनका चयन योग्यता के आधार पर होता है। वे सरकारी नीतियों के माध्यम से लोगों की सेवा करते हैं। भारत में सिविल सेवा अधिकारी के तौर पर महत्वपूर्ण पद ये हैं: आईएएस, आईपीएस, आईएफएस इत्यादि.

चीन में सबसे पुरानी सिविल सेवा होने के प्रमाण हैं। किन्तु आधुनिक विश्व में सिविल सेवाएं फ्रांस की देन है। भारत में इसकी शुरूआत ब्रिटिश शासन के दौरान सन् 1855 में हुई. ब्रिटिश शासन के दौरान सिविल सेवा के अधिकारियों को व्यापक अधिकार प्राप्त थे तथा उनका मुख्य कार्य कानून-व्यवस्था बनाये रखना, न्याय करना तथा करों का एकत्रण था। आज का सिविल सेवक एक प्रजातांत्रिक ढांचे में कार्य करता है जिसका मुख्य कार्य विकास तथा प्रगति है। एक करियर के रूप में सिविल सेवा अनेकों युवाओं तथा अभिभावकों जो अपने बच्चों के लिए एक सुनहरे भविष्य की परिकल्पना करते हैं, हेतु आकर्षण का विषय रहा है। भारतीय सिविल सेवा को एक अति विशिष्ट सेवा के रूप समझा जाता है जो कि एक महत्वाकांक्षी, योग्य एवं आकांक्षी व्यक्ति को बेहद चुनौतीपूर्ण एवं आकर्षक करियर के अवसर प्रदान करता है जिसमें किसी भी अन्य सेवा की तुलना में विविध प्रकार के कार्य, अत्याधिक प्राधिकार एवं सत्ता निहित होती है। Public services

तीन प्रकार के होते हैं-    1*-अखिल भारतीय सेवाएं(All India services).                  
                   2*-central s 
               -      
              ervicess(केंद्रीय सेवाएं) 3*- state services(राज्य सेवाएं )      सिविल सेवाओं को भी दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है जिनके नाम हैं- 1-Gazetted (group-a,b)                         2-Non-gazeytted (group c,d)

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

[[श्रेणी:देशानुसार सिविल सेवा|*

        सिविल सेवा
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+ भारत में सिविल सेवा की अवधारणा 1854 में ब्रिटिश संसद की प्रकार समिति की लॉर्ड मैकाले की रिपोर्ट के बाद रखी गई।

+ 1854 में ही लंदन में एक 'सिविल सेवा' आयोग की स्थापना की गई और 1855 से प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू की गई।

+ शुरुआत में भारतीय सिविल सेवकों की परीक्षाएं केवल लंदन में होती थी।

+ 1864 में सत्येंद्र नाथ टैगोर, रविंद्र नाथ टैगोर के भाई पहले भारतीय सिविल सेवक बने थे।

+ मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के बाद 1922 से भारतीय सिविल सेवकों की परीक्षाएं भारत में होने लगी उससे पहले यह परीक्षाएं लंदन में आयोजित कराई जाती थी।

सिविल सेवा की मूल अवधारणा ईस्ट इंडिया कंपनी को देश में नागरिक और सैनिक व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से सैनिकों को चार्टर बनाने संबंधी अधिकार देने संबंधी नागरिक जनादेश यानी चार्टर जारी होने के साथ शुरू हुई मानी जाती है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी श्री दीपक गुप्ता ने अपनी पुस्तक- "दा स्टील फ्रेम: ए हिस्ट्री ऑफ द आईएएस" मैं टिप्पणी की है कि इन अधिकारियों को धीरे-धीरे व्यापार अधिकारियों से प्रशासनिक अधिकारियों में परिवर्तित कर लिया गया जो 'कांविनेनन्ट्स' यानी प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कर सकते थे और इस प्रकार उन्हें "कांविनेटेड सिविल सेवा" का अंग बना लिया गया। 'कांविनेटेड' और 'अनकॉविनेटेड' सेवा के बीच एक बड़ा अंतर यह था कि कांविनेटेड सेवा के अधिकारियों की भर्ती इंग्लैंड से की जाती थी और जबकि अनकॉविनेटेड सेवाओं के अधिकांश अधिकारी भारत से ही होते थे। इसी 'अनकॉविनेटेड' सेवा को बाद में भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) का नाम दिया गया और इन अधिकारियों का दायित्व महारानी की ओर से यहां के मामलों को संभालना और निपटाना था।

19वीं शताब्दी के मध्य में प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रणाली लागू करने की महत्वपूर्ण शुरुआत हुई जिसके अंतर्गत किसी की सिफारिश या संदर्भ के आधार पर अधिकारी रखने की जगह प्रतियोगी परीक्षा लेकर योग्यता के आधार पर नियुक्ति करने की व्यवस्था शुरू हो गई। लोक सेवाओं में सुधार के लिए 'मैकाले कमेटी' से लेकर 'इसलिंगटन कमेटी' और फिर "ली आयोग" बनाए गए थे और इन सभी ने संवैधानिक लोक सेवा आयोग गठित करने की जोरदार सिफारिश की थी।

संविधान सभा की बहसों के दौरान भारतीय सिविल सेवा के अधिकारियों को बनाए रखने पर तथा उनकी भूमिका और निष्ठा पर विस्तार से चर्चा और बहस की गई और यह चर्चा भी हुई कि "क्या स्वतंत्रता के बाद भी यह व्यवस्था लागू रखना बुद्धिमानी होगी?" हम सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को नहीं भुला सकते जिन्होंने स्वतंत्र भारत में सिविल सेवाओं के गठन के लिए सबसे अग्रणी भूमिका निभाई थी और इसीलिए उन्हें 'भारत का लौह पुरुष' कहा जाता है।

आईसीएस परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय थे सत्येंद्र नाथ टैगोर ,जिन्होंने (अट्ठारह सौ चौंसठ) में यह सफलता प्राप्त की थी। यह याद रखना भी जरूरी है कि मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के बाद 1922 तक यह परीक्षा सिर्फ लंदन में ली जाती थी जिसकी वजह से भारतीय लोगों को परीक्षा देने के लिए वहां जाने की परेशानी झेलनी पड़ती थी और आम भारतीय के लिए तो यह बूते से बाहर ही था। फिर भी परीक्षा पास करने वालों में भारतीयों की संख्या अच्छी खासी थी। इनमें प्रमुख नाम है बिहारी लाल गुप्ता और रमेश चंद्र दत्त जो आगे चलकर 1899 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्होंने "द इकनोमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया" पुस्तक भी लिखी जो इस विषय की शुरुआती पुस्तक मानी जाती है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास तो कर ली थी लेकिन उन्होंने इस सेवा के तहत काम करने से इंकार कर दिया जिससे उनके सिद्धांत इन मूल्यों और निष्ठा का पता चलता है और यह फैसला उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिया था। सर बेनेगल नरसिंह राव एक अन्य आईसीएस अधिकारी थे जिन्हें भारत के स्वतंत्र होने से 1 वर्ष से कुछ ज्यादा समय पहले 1 जुलाई ,1946 को संविधान सलाहकार नियुक्त किया गया था। वे आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पहले भारतीय जज (न्यायाधीश) बने। आईपीएस अधिकारी बनने वाले कुछ प्रमुख भारतीय लोग थे- 1)सत्येंद्र नाथ टैगोर। 2)रमेश चंद्र दत्त। 3) लाल बिहारी गुप्ता। 4) बी एन राव। 5) सुभाष चंद्र बोस। 6) सुकुमार सेन-(भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त) 7) बी एन युगंधर। इत्यादि---

+ भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन का नाम भी प्रमुख है जो बाद में सूडान के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त भी बने। ____________________

  1. संविधान और सिविल सेवाएं!

____________________ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 310 ,311 और 312 केंद्र और राज्य के अंतर्गत सेवाओं के बारे में है। अनुच्छेद 310 में व्यवस्था है कि केंद्रीय और अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं और राज्य स्तर की सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति संबंधित राज्यों के राज्यपाल करते हैं। राष्ट्रपति और राज्यपाल की प्रसन्नता बनी रहने तक अपने पद पर बने रहते हैं। इसीलिए उनका कार्यकाल सुनिश्चित और सुरक्षित रहता है। अनुच्छेद 311 में सेवा से हटाने,बर्खास्त करने और पद घटाने से जुड़ी प्रक्रिया और शर्ते शामिल है जिससे कानून की प्रक्रिया का पालन करने की पक्की व्यवस्था रहती है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि सिविल अधिकारी अकारण राजनैतिक हस्तक्षेप (दबाव) या परेशानी के शिकार ना बने। अनुच्छेद 312 में व्यवस्था दी गई है कि अखिल भारतीय सेवाएं संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) और विभिन्न राज्यों के राज्य लोक सेवा आयोग संवैधानिक संस्थाएं हैं। सिविल सेवाओं के अधिकारियों ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के आयोजन ,आपदा प्रबंधन, ,सड़क और रेल जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं के निर्माण और रखरखाव तथा राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने जैसी राष्ट्रीय महत्व की अनेक गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई है। हर वर्ष 21 अप्रैल को 'सिविल सेवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है।