लक्ष्मीकांत वर्मा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

लक्ष्मीकांत वर्मा जी जमीनी हकीकत से जुड़े एक हिंदी साहित्यकार। वे एक ऐसे सर्जक थे, जिनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे उत्कृष्ट कोटि के समीक्षक, निबन्धकार, कवि, कथाकार, नाटककार तो थे ही, एक कुशल संपादक भी थे। उस समय की देश-प्रसिद्ध साहित्यिक-वैचारिक संस्था 'परिमल' के सक्रिय कलमकार और संयोजक थे।

Dr. Archana Dwivedi meeting Laxmikant Verma an eminent writer

15 फ़रवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के रुधैली तहसील के टँडौठी ग्राम में जन्मे लक्ष्मीकांत वर्मा को हिन्दी, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी-भाषाओं का सम्यक ज्ञान था। वे अपने घर और घरेलू मित्रों के बीच 'चौकन दादा' के नाम से पुकारे जाते थे।

आरम्भ में वे परतन्त्र भारत की राजनीति से प्रभावित हो गये थे। 40 के दशक में महात्मा गांधी के आनन्द भवन-आगमन पर लक्ष्मीकांत जी को उनका सानिध्य प्राप्त हुआ था और महात्मा जी के आह्वान पर स्वतंत्रता आन्दोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी आरम्भ हो चुकी थी। इसी आंदोलन की आग में उनकी शिक्षा भस्मीभूत हो चुकी थी। 1946 में वे लोहिया जी के संपर्क में आये थे। वहीं से उनके जीवन में समाजवादी दर्शन के प्रति आस्था पनपी और एक वटवृक्ष का आकार ग्रहण कर गयी।'

हिन्दी-भाषा को प्रचारित-प्रसारित करने में उनका विशिष्ट योगदान था। 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग' के अनेक सर्जनात्मक योजनाओं को उन्होंने प्रभावाकारी ढंग से क्रियान्वित किया था तथा कई अधूरी पड़ी हुई हैं। लक्ष्मीकांत जी ने देश की लगभग सभी स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखक के रूप में अपना लोहा मनवाया था। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित दो समाचार पत्रों से अपने लेखन का आरम्भ किया था।

कृतियाँ

उनकी प्रमुख कृतियां 'खाली कुर्सी की आत्मा', 'सफेद चेहरे', 'तीसरा प्रसंग', 'मुंशी रायजादा', 'सीमान्त के बादल', 'अपना-अपना जूता', 'रोशनी एक नदी है', 'धुएं की लकीरें', 'तीसरा पक्ष', 'कंचन मृग', 'राख का स्तूप', 'नीली झील का सपना', 'नीम के फूल' आदि। उन्होंने इलाहाबाद से 'आज की बात' 'मासिकी' का प्रकाशन किया था। 1960 में 'सेतुमंच' नाट्यसंस्था की स्थापना की थी। उत्तर प्रदेश हिन्दी-संस्थान और उत्तर प्रदेश भाषा-संस्थान, लखनऊ के वे कार्यकारी अध्यक्ष थे। संस्थान सम्मान, डॉ॰ लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान, एकेडेमी सम्मान, साहित्य वाचस्पति आदि सम्मानों से उन्हें आभूषित किया गया था।

बाहरी कड़ियाँ