रॉलेट एक्ट

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अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919
इम्पेरियल विधान परिषद
Status: निरस्त कर दिया

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सर सिडनी रौलेट

रॉलेट एक्ट' को काला कानून भी कहा जाता है। यह 18 मार्च 1919 को भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। यह कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।[१][२][३][४][५] रॉलेट एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था। इस कानून की मुख्य बातें निम्नलिखित थीं - प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड की विजय हुई थी | इस समय ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट की घोषणा किया|

१) ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकद्दमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया ।

२) राजद्रोह के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया ।

३) मुकद्दमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं था ।

४) राजद्रोह के मुकद्दमे में जजों को बिना जूरी की सहायता से सुनवाई करने का अधिकार प्राप्त हो गया ।

५) सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वह बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार छीन ले और अपनी इच्छा अनुसार किसी व्यक्ति को कारावास दे दे या देश से निष्कासित कर दे।

वास्तव में क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के नाम पर ब्रिटिश सरकार भारतीयों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाप्त कर देना चाहती थी। इस कानून द्वारा वह चाहती थी कि भारतीय किसी भी राजनीतिक आंदोलन में भाग न ले।

परिणाम

रौलट एक्ट के विरोध में पूरे देश में विरोध प्रारंभ हो गया। मदन मोहन मालवीय और मोहम्मद अली जिन्ना ने इसके प्रतिवाद में केंद्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। इस कानून को भारतीयों ने काला कानून कहा। इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। ‍

महात्मा गांधी जो अब भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व बन गए थे वह इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिये। चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में अपनाए गए सत्याग्रह रूपी हथियार का प्रयोग एक बार फिर उन्होंने रौलट एक्ट के विरोध में करने का निश्चय किया।

महात्मा गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। रॉलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय स्तर का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक "सत्याग्रह सभा"का आयोजन किया था और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध 'सत्य' और 'अहिंसा' के मार्ग पर चलकर किया जाएंँगा। गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं की ओर से किया गया था, जिसमें सर डि.इ.वादी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, तेज बहादुर सप्रु, श्री निवास शास्त्री जैसे नेता शामिल थे। किन्तु गांधीजी को बड़े पैमाने पर होमरूल लीग के सदस्यों का समर्थन मिला था।

हड़ताल के दौरान दिल्ली आदि कुछ स्थानों पर भारी हिंसा हुई। इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह को वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी भी अहिंसा के विषय में दृढ रहने के लिए तैयार नहीं हैं।

13 अप्रैल को सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में जलियाँवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाईं। हजारों लोग मारे गए। भीड़ में महिलाएँ और बच्‍चे भी थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्‍यायों में से एक है जिसे जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।

इतिहास

26 जनवरी, 1919 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। इस समिति के द्वारा लगभग 4 महीनों तक “खोज” की गई और रॉलेट समिति की एक रिपोर्ट में भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गए बड़े-बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर, बड़े उग्र रूप में प्रस्तुत किया गया था।

नौकरशाही के दमन चक्र, मध्यादेशराज,युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ती में सरकार द्वारा कठोरता बरते जाने के कारण अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय जनता में तीव्र असंतोष पनप रहा था। देश भर में उग्रवादी घटनाएं घट रही थीं। इस असंतोष को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार रौलट एक्ट लेकर आई।

सरकार ने 1916 में न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसे आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था। रौलट कमेटी के सुझावों के आधार पर फरवरी 1918 में केंद्रीय विधान परिषद में दो विधेयक पेश किए गए। इनमें से एक विधेयक परिषद के भारतीय सदस्यों के विरोध के बाद भी पास कर दिया गया। इसके आधार पर 1919 ई. में रोलेट एक्ट पारित किया गया गया।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. Popplewell 1995, पृष्ठ 175
  2. Lovett 1920, पृष्ठ 94, 187–191
  3. Sarkar 1921, पृष्ठ 137
  4. Tinker 1968, पृष्ठ 92
  5. Fisher 1972, पृष्ठ 129