रिफ्ट वैली ज्वर
रिफ्ट वैली ज्वर वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
TEM micrograph of tissue infected with Rift Valley fever virus | |
आईसीडी-१० | A92.4 |
आईसीडी-९ | 066.3 |
डिज़ीज़-डीबी | 31094 |
एम.ईएसएच | D012295 |
रिफ्ट वैली ज्वर (RVF) एक विषाणुजनित रोग रोग है जो हल्के से लेकर गंभीर लक्षण पैदा कर सकता है। हल्के लक्षणों में शामिल हैं: बुखार, मांसपेशियों में दर्द, और सिरदर्द जो एक हफ्ते तक बने रह सकते हैं। जिनमें रक्तस्राव होता है उनमें मृत्यु की संभावनाएं 50% तक हो सकती हैं।[१]
कारण
यह रोग RVF विषाणुसे होता है जो कि फ्लेबोवायरस प्रकार का होता है। यह संक्रमित पशु रक्त को छूने से या संक्रमित पशु को काटे जाने वाली जगह के आसपास की हवा में सांस लेने से, संक्रमित पशु का कच्चा दूध पीने से या संक्रमित मच्छरके काटने से होता है। गाय, भेंड़, बकरी या ऊंट जैसे जानवर प्रभावित हो सकते हैं। आम तौर पर इन जानवरों में यह मच्छरों के काटने से फैलता है। एक से दूसरे व्यक्ति में इसका फैलना दिखता नहीं है। इसका निदान विषाणु के विरुद्ध ऐंटीबॉडी या रक्त में विषाणु की उपस्थिति से होता है।[१]
रोकथाम व उपचार
मानवों में इस रोग की रोकथाम, रोग के विरुद्ध जानवरों के टीकाकरण से होती है। इसे प्रकोप के पहले किया जाना चाहिए क्योंकि, प्रकोप के दौरान इसे करने से स्थिति और खराब हो सकती है। प्रकोप के दौरान जानवरों के आवागमन को रोकना भी उपयोगी हो सकता है। इसी तरह से मच्छरों की संख्या व उनके काटे जाने को कम करके भी ऐसा किया जा सकता है। मानव टीका उपलब्ध है, हालांकि 2010 तक यह व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं था। एक बार संक्रमित होने पर कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है।[१]
महामारी विज्ञान तथा इतिहास
इस रोग के प्रकोप केवल अफ्रीका तथा अरबमें हुए हैं। आम तौर पर प्रकोप बढ़ी हुई बारिश के दौरान हुआ करते हैं जो मच्छरों की संख्या को बढ़ाती है। [१] इस रोग को सबसे पहले केन्या की रिफ्ट वैली में मवेशियों में शुरुआती 1900 में देख गया था, [२] और विषाणु को 1931 में पहली बार पृथक किया गया था।[१]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई उ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book