मिहिरकुल

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मिहिरकुल (चीनी: 大族王, जापानी: दाइज़ोकु-ओ) भारत में एक ऐतिहासिक श्वेत हुण शासक था। ये तोरामन का पुत्र था। तोरामन भारत में हुण शासन का संस्थापक था। मिहिरकुल ५१० ई. में गद्दी पर बैठा।

मिहिरकुल का प्रबल विरोधी नायक था यशोधर्मन। कुछ काल के लिए अर्थात् 510 ई. में एरण (तत्कालीन मालवा की एक प्रधान नगरी) के युद्ध के बाद से लेकर लगभग 527 ई. तक, जब उसने मिहिरकुल को गंगा के कछार में भटका कर क़ैद कर लिया था, उसे तोरमाण के बेटे मिहिरकुल को अपना अधिपति मानना पड़ा था। क़ैद करके भी अपनी माँ के कहने पर उसने हूण-सम्राट को छोड़ दिया था। इधर-उधर भटक कर जब मिहिरकुल को काश्मीर में शरण मिली तो सम्भवतः आर्यों ने सोचा होगा कि चलो हूण सदा के लिए परास्त हो गये। परन्तु मिहिरकुल चुप बैठने वाला नहीं था। उसने अवसर पाते ही अपने शरणदाता को नष्ट करके काश्मीर का राज्य हथिया लिया। ‘‘तब फिर उसने गांधार पर चढ़ाई की और वहाँ जघन्य अत्याचार किये। हूणों के दो तीन आक्रमणों से तक्षशिला सदा के लिए मटियामेट हो गया।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मालवा के राजा यशोधर्मन और मगध के राजा बालादित्य ने हूणों के विरुद्ध एक संघ बनाया था और भारत के शेष राजाओं के साथ मिलकर मिहिरकुल को परास्त किया था। यह बात अब असत्य प्रमाणित हो चुकी है। हूणों की एक विशाल सेना ने मिहिरकुल के नेतृत्व में आक्रमण किया। मिहिरकुल के नेतृत्व में हूण पंजाब, मथुरा के नगरों को लूटते हुए, ग्वालियर होते हुए मध्य भारत तक पहुँच गये। इस समय उन्होंने मथुरा के समृद्विशाली और सांस्कृतिक नगर को जी भर कर लूटा। मथुरा मंडल पर उस समय गुप्त शासन था। गुप्त शासकों की ओर नियुक्त शासक हूणों के आक्रमण से रक्षा में असमर्थ रहा। गुप्तकाल में मथुरा अनेक धर्मो का केन्द्र था और धार्मिक रुप से प्रसिद्व था। मथुरा में बौद्व, जैन और हिन्दू धर्मो के मंदिर, स्तूप, संघाराम और चैत्य थे। इन धार्मिक संस्थानों में मूर्तियों और कला कृतियाँ और हस्तलिखित ग्रंथ थे। इन बहुमूल्य सांस्कृतिक भंडार को बर्बर हूणों ने नष्ट किया। यशोधर्मन और मिहिरकुल का युद्ध सन् 532 से कुछ पूर्व हुआ होगा, पर इतिहासकार मानते हैं कि मिहिरकुल उसके 10-15 वर्ष बाद तक जीवित रहा। उसके मरने पर हूण-शक्ति टूट गयी। धीरे-धीरे हूण हिन्दू समाज में घुलमिल गये और आज की हिन्दू जाति के अनेक स्तर हूणों की देन हैं।

परिचय

हूण सम्राट तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल भारतीय इतिहास में अपनी खूँखार और ध्वंसात्मक प्रवृत्ति के लिये प्रसिद्धश् हैं। भारतीय स्रोतों के अतिरिक्त इनकी बर्बरता का चित्रण चीनी तथा यूनानी इतिहासकारों ने भी किया है। कुमारगुप्त के राज्यकाल (ई० ४१४-४५५) के अंतिम वर्षो में हूणों ने उत्तरी भारत पर धावा बोल दिया। राजकुमार स्कंदगुप्त ने इस आक्रमण को रोक लिया पर छठी शताब्दी के प्रथम चरण मे हूणों का आधिपत्य मालवा तक छा गया। तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल लगभग ५१५ ई० में सिंहासन पर बैठा। उसकी राजधानी साकल अथवा स्यालकोट थी। "राजतरंगिणी' के अनुसार इसका राज्य कश्मीर तथा गंधार से लेकर दक्षिण में लंका तक फैला था। किंतु इस वृतांत में तथ्य नहीं है। कल्हण ने तोरमाण को मिहिरकुल से १८ वीं पीढ़ी बाद रखा है पर वास्तव में मिहिरकुल तोरमाण का पुत्र था। इस ग्रंथ में उल्लिखित मिहिरकुल की नृशंस प्रवृत्तियों की पुष्टि युवान्‌ च्वांङ के वृत्तांत से भी होती है। चीनी स्रोतों में संगु युग का वृत्तांत भी उल्लेखनीय है। यह लगभग ५२० ई० में गंधार में हूण सम्राट के यहाँ राजदूत था। इसके अतिरिक्त एक यूनानी भौगोलिक कासमॉस इंद्रिको प्लूस्तस ने श्वेत हूण सम्राट, गोलस का उल्लेख किया है जो लगभग ५२५-५३५ ई० मे उत्तरी भारत का सम्राट था। कदाचित्‌ इसकी समानता मिहिरकुल से की जा सकती है। उपर्युक्त स्रोतों के आधार पर हूण सम्राट, मिहिरकुल का साम्राज्य सिंधु नदी से पश्चिम में था और उसका आधिपत्य उत्तरी भारत के शासक स्वीकार करते थे। बौद्ध धर्म का वह कट्टर विरोधी था और इसने मठों तथा संघारामों को ध्वस्त किया। इसके राज्यकाल के १५ वें वर्ष का एक लेख ग्वालियर में मिला है जिसमें मातृचेत नामक एक व्यक्ति द्वारा सूर्यमंदिर की स्थापना का उल्लेख है।

मिहिरकुल अधिक समय तक राज्य न कर सका। हूणों की बर्बरता ने उत्तरी भारत के शासकों में नवीन स्फूर्ति डाल दी थी। अत: यशोधर्मन के नेतृत्व में इन शासकों ने उसे हराया। मंदसोर (मध्यभारत) के यशोधर्मन्‌ के लेख से ज्ञात होता है कि मिहिरकुल ने इस भारतीय सम्राट, का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। युवान्‌ च्वाङ के वृत्तांतानुसार मगध शासक बालादित्य पर जब मिहिरकुल ने आक्रमण किया तो उसने एक द्वीप में शरण ली। मिहिरकुल ने उसका पीछा किया पर वह स्वयं पकड़ा गया। उसका वध न कर, उसे मुक्त कर दिया गया। मिहिरकुल की अनुपस्थिति में उसके छोटे भाई ने राज्य पर अधिकार कर लिया अत: कश्मीर में मिहिरकुल ने शरण ली। यहाँ के शासक का वध कर वह सिंहासन पर बैठ गया। उसने स्तूपों और संघारामों को जलाया और लूटा। एक वर्ष बाद उसका देहांत हो गया और उसी के साथ हूण राज्य का भी अंत हो गया।

सन्दर्भ ग्रंथ

  • मजुमदार, आर.सी.-दी क्लासिकल एज; फ़्लीट-गुप्त इंस्क्रिप्शंस।

बाहरी कड़ियाँ