मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी
मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी भारतीय पंचांग [१] के अनुसार नौवें माह की तेरहवी तिथि है, वर्षान्त में अभी १०७ तिथियाँ अवशिष्ट हैं।
पर्व एवं उत्सव
हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया को रंभा तीज का व्रत रखा जाता है और इस बार यह 05 जून, 2019 यानि कि कल मनाया जाएगा। कहते हैं कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की हर मनोकामना जल्दी पूरी होती है। यह व्रत औरतें अपने पतियों की लम्बी उम्र और अच्छी संतान के लिए रखती हैं। लेकिन आज के समय में कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की इच्छा से भी इस व्रत का पालन करती हैं। रंभा तृतीया को यह नाम इसलिए मिला, क्योंकि रंभा ने इसे सौभाग्य प्राप्ति की कामना के लिए किया था। आपको बता दें कि रंभा समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई उन 5 अप्सराओं में से एक थी, जिसका रूप बहुत ही सुंदर व मनमोहक था। आइए आगे जानते हैं इसकी व्रत विधि के बारे में।
व्रत वाले दिन व्रती को चाहिए कि सभी कार्यो से निवृत्त होकर साफ-सुथरे कपड़े धारण करें और पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। उसके बाद भगवान सूर्यदेव के सामने घी का दिपक जलाएं।
इस दिन विवाहित स्त्रियां पूजन में गेहूं, अनाज और फूल से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं।
लक्ष्मी माता के साथ-साथ सती माता को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि-विधान से पूजन किया जाता है और रंभा जोकि एक अप्सरा थी उसकी पूजा की जाती है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार कई स्थानों पर विवाहित स्त्रियां चूड़ियों के जोड़े की पूजा करती हैं, जिसे रंभा और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
पूजन मंत्र- ॐ महाकाल्यै नम: ॐ महालक्ष्म्यै नम: ॐ महासरस्वत्यै नम:
शास्त्रों के अनुसार रंभा तृतीया का व्रत शिव-पार्वती की कृपा पाने, गणेश जी जैसी बुद्धिमान संतान और अपने सुहाग की रक्षा के लिए ही किया जाता है।
प्रमुख घटनाएँ
जन्म
निधन
इन्हें भी देखें
बाह्य कड़ीयाँ
- हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक)
- आनलाइन पंचाग
- विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम
- विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग
- सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस
- महायुग
सन्दर्भ
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