महाराजा जवाहर सिंह

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भरतपुर राज्य के महाराजा। |thumb|महाराजा जवाहर सिंह]] (1728 ईस्वी-1763 ईस्वी) शासन काल --- (1763-1768)


भरतपुर राज्य के महाराजा जवाहर सिंह

महाराजा जवाहर सिंह का शासन काल सन् 1763 से सन 1768 तक रहा था।महाराजा जवाहर सिंह महाराजा सूरजमल के प्रतापी ज्येष्ठ पुत्र थे। वह अपने बाबा−दादा के सद्श्य ही वीर और साहसी राजा थे।

भरतपुर राज्य का विस्तार - महाराज सूरजमल की जिस समय मृत्यु हुई थी, उस समय भरतपुर राज्य का विस्तार और वैभव इस प्रकार था - आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, एटा, मेरठ, रोहतक, फर्रुखनगर, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव और मथुरा के जिले उनके अधिकार में थे। गंगाजी का दाहिना किनारा इस जाट-राज्य की पूर्वी सरहद, चम्बल दक्षिणी, जयपुर का राज्य पश्चिमी और देहली का सूबा उत्तरी सरहद थे। इसकी लम्बाई पूर्व से पश्चिम की ओर 200 मील और उत्तर से दक्षिण की ओर 150 मील के करीब थी।[१]

राज्य की माली हालत के बारे में फादर बेण्डिल लिखता है कि -

"खजाने और माल के विषय में जो कि सूरजमल ने अपने उत्तराधिकारी के लिए छोड़ा, भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ इसे नौ करोड़ बताते हैं और कुछ कम। मैंने उसकी वार्षिक आय तथा ब्याज का उन लोगों से जिनके हाथ में यह हिसाब था, पता लगाया है। जैसा कि मुझे मालूम हुआ है उसका खर्च 65 लाख से अधिक और 60 लाख सलाना से कम नहीं था और राज्य के अन्तिम 5-6 वर्षो में उसकी वार्षिक मालगुजारी एक करोड़ पचहत्तर लाख से कम नहीं थी। उसने अपने पूर्वजों के खजाने में 5-6 करोड़ रुपया जमा कर दिया। जवाहरसिंह के गद्दी पर बैठने के समय 10 करोड़ रुपया जाटों के खजाने में था। बहुत-सा गढ़ा हुआ न जाने कहां है। यहां के गुप्त खजाने में अब भी बहुत अमूल्य पदार्थ और देहली, आगरे की लूट की अद्वितीय तथा छंटी हुई चीजें जिनका मिलना अब बहुत मुश्किल है बताई जाती हैं। खजाने के सिवाय सूरजमल ने अपने उत्तराधिकारी के लिए 5000 घोड़े, 60 हाथी, 15,000 सवार, 25000 से अधिक पैदल, 300 से अधिक तोपें और उतनी ही बारूद-खाना तथा अन्य युद्ध का सामान छोड़ा। "

‘सियार’ का लेखक लिखता है -

“सूरजमल के तबेले में 12,000 घोड़े उतने ही चुनीदा सवारों सहित थे जिनको कि उसने दूसरों के घुड़सवारों पर निशाना लगाने का और फिर अपनी बन्दूकें सुरक्षित होकर भरने के लिए चक्कर खाने का अभ्यास कराया था। यह आदमी रोजाना के अभ्यास से इतने निपुण और भयानक निशानेबाज और मार्च में इतने चतुर बन गए थे कि हिन्दुस्तान में कोई भी ऐसी सेना नहीं थी जो खुले मैदान में उनका सामना कर सके और न ऐसे राजा के विरुद्ध लड़ाई मोल लेना ही फायदा के लिए सम्भव समझा जाता था।”[२] महाराजा जवाहर सिंह ने अपने पिता की जीवित अवस्था में सैकड़ो युद्धों में विजय प्राप्त की थी | जब महाराजा सूरजमल की मृत्यु धोखे से दिल्ली विजय अभियान में हो गयी तब रानी किशोरी ने जवाहर सिंह को भरतपुर की गद्दी पर बैठा कर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए दिल्ली पर आक्रमण करने का आदेश दिया दिल्ली लालकिले पर अधिकार करने के लिए उसके भीतर घुसे हुए मुस्लिम सैनिकों को जीतना था। इसके लिए महाराजा ने आक्रमण किया। जवाहरसिंह ने शाहदरा के निकट यमुना तट से तोपों के गोले लालकिले पर बरसाने शुरु कर दिये जिनसे किले एवं शत्रु को काफी हानि पहुंची। दूसरी ओर भरतपुर सेना इस किले के दरवाजों को तोड़कर अन्दर घुसने का प्रयत्न कर रही थी। परन्तु किले के बन्द दरवाजे के किवाड़ों पर लम्बे-लम्बे नोकदार बाहर को उभरे हुए लोहे के मजबूत भाले लगे हुए थे, जो हाथी की टक्कर से टूट सकते थे। किन्तु हाथी इन भालों से डरकर उल्टे हट गये। यह कार्य बिना देरी किये करना था। अतः और साधन न मिलने पर पुष्कर सिंह (पाखरिया)पाखरिया वीर योद्धा अपनी छाती किवाड़ों के भालों के साथ लगाकर खड़ा हो गया और पीलवान से कहकर हाथी की टक्कर अपनी कमर पर मरवा ली। दरवाजा तो टूटकर खुल गया परन्तु वीर योद्धा पाखरिया वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गया। लाल किले पर लगे चित्तौड़ दुर्ग से लाये अष्टधातु का दरवाजा भी उखाड़कर भरतपुर ले आए।ब्रज विश्वविद्यालय के डॉ. सतीश त्रिगुणायत ने बताया कि इस प्रसंग का उल्लेख इतिहासकार दीनानाथ दुबे की पुस्तक “भारत के दुर्ग’ तथा डॉ. राघवेन्द्र मनोहर की पुस्तक “राजस्थान के प्रमुख दुर्ग” में भी आता है।[३]
शेर-ए-हिन्द वीर जवाहर सिंह दिल्ली विजय कर भरतपुर महलों में लोटे तो उनसे माँ किशोरी ने पूछा की बेटा दिल्ली विजय से तुम कौनसी अनमोल वस्तु लाये हो तो वीर जवाहर सिंह ने जबाब दिया उन चित्तोड़ कोट के किवाड़ो को लाया हूँ जिनपर वीर पाखरिया ने बलिदान दिया वीर जवाहर से माता किशोरी पूछती है - पंडित कौशिक जी दवारा रचित और ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर में पाखारिया का वर्णन जगमग जगमग करता जलुस रण विजयी वीर जवाहर का माँ किशोरी बोली कुछ सुना बात दिल्ली रण की सौगात वहां से क्या लाया बेटा मेरे वचनों पर ही तूने अत्यन्य कष्ट पाया चर्चा क्या उन सौगातो की जो भरी बहुत तेरे ही घर दो वस्तु किन्तु लाया ऐसी जिनका उज्ज्वल इतिहास प्रखर चित्तोड़ कोट के माँ किवाड़ लाया हूँ आज्ञा पालन कर है ये किवाड़ तेरे मनकी मेरे मन की है और अपर पाखरिया ने बलिदान दिया निज तन का किवाड़ो पर उनकी स्मृति स्वरुप लाया उनके भी बजा नगाडो पर सुन माँ ने चूम कर सिर दी वाह वाह खुस हो मन भर मणि मानक मुक्त मूल्यवान कर दिए निछावर झोली भर तब यह उद्घोस अंबर में गूंजा था श्री गोवर्धन गिर्राज की जय जवाहर सिंह की जय जाटों के सक्ल समाज की जय रन अजय भरतपुर राज की जय[४]

कुछ इतिहासकारों के कथन

  • दिलीप सिंह अहलावत[५] पाखरिया वीर के बारे में लिखते है - तोमर खूंटेल जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। यह वीर योद्धा महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली विजय में साथ था। यह लालकिले के द्वार की लोहे की सलाखें पकड़कर इसलिए झूल गया था क्योंकी सलाखों की नोकों पर टकराने से हाथी चिंघाड़ मार कर दूर भागते थे। उस वीर मे इस अनुपम बलिदान से ही अन्दर की अर्गला टूट गई और अष्टधाती कपाट खुल गये। देहली विजय में भारी श्रेय इसी वीर को दिया गया है। इस पर भारतवर्ष के खूंटेल तथा जाट जाति आज भी गर्व करते हैं।

  • ठाकुर देशराज[६] पाखरिया वीर के बारे में लिखते हैं - महाराजा जवाहरसिंह भरतपुर नरेश के सेनापति तोमर गोत्री जाट जिसने लाल किले के किवाड़ उतारकर भरतपुर पहुंचाये । पाखरिया -खूंटेला जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है । कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे, अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे । पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है ।
  • भरतपुर महाराजा ब्रिजेन्द्र सिंह के दरबार में रचित ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर नामक ग्रन्थ में भी दिल्ली के दरवाजो पर बलिदान देने वाले वीर का नाम खुटेल पाखारिया अंकित है राजपरिवार भी पाखारिया खुटेल को भी बलिदानी मानता है
  • जाटों के जोहर नामक किताब में भी पंडित आचार्य गोपालदास कौशिक जी ने दिल्ली पर बलिदान हुए वीर को पाखारिया और उसके वंश को कुंतल (तोमर ) लिखा है |
  • जाटों के नविन इतिहास में उपेन्द्र नाथ शर्मा ने भी दिल्ली विजय पर खुटेल पाखरिया के बलिदान होने की बात लिखी है
  • राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी दुवारा प्रकाशित "राजस्थान के अज्ञात ब्रज भाषा साहित्यकार" नामक किताब के लेखक विष्णु पाठक ,मोहनलाल मधुकर ,गोपालप्रसाद मुद्गल ने दिल्ली विजय पर लिखा है पेज 135 पर लिखा है -

कहे कवी "माधव " हो तो न एक वीर कैसे बतलाओ दिल्ली जाट सेना लुटती आप ही विचार करो अपने मनन मोहि पाखरिया खुटेल न होतो ,तो दिल्ली नाय टूटती ||


सन्दर्भ

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  5. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 298)
  6. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII,p.560