मलय (साहित्यकार)
मलय (जन्म : १९ नवंबर १९२९) हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रगतिशील चेतना युक्त नवीन कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाले कवि हैं। कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानियाँ, आलोचना एवं अनुवाद के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
परिचय
मलय का जन्म १९ नवंबर सन् १९२९ को तत्कालीन मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) के जबलपुर जिले के सेंट्रल रेलवे के भिटौली स्टेशन से उत्तर दिशा में लगभग ४ किलोमीटर दूर सहसन नामक एक छोटे गाँव के किसान परिवार में हुआ था।[१] प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। १२ वर्ष की आयु में ही उनके माता पिता का निधन हो गया था।[२] आठवीं कक्षा के बाद सभी परीक्षाएँ विभिन्न अंतरालों के बीच स्वाध्यायी छात्र रहकर पूरी कीं।[३] गाँव में रहते हुए ही सिलसिलेवार पढ़ाई न हो पाने के कारण जाने-अनजाने उन्होंने कविता लेखन आरंभ कर दिया।[४] १९५२ के आम चुनाव के बाद उन्हें परिवार के साथ जबलपुर आना पड़ा। यहाँ उन्हें लेखन का माहौल तो मिला ही, उसके साथ ही रामकृष्ण श्रीवास्तव, जीवनलाल विद्रोही, गजानन माधव मुक्तिबोध एवं हरिशंकर परसाई जैसे श्रेष्ठ साहित्यकारों का साथ भी मिला। ये सभी लोग प्रतिबद्ध लेखक थे, इसलिए स्वाभाविक रूप से मलय भी अपने ज्ञान और संवेदना के सहारे दुःखी एवं शोषित जन के प्रति वैचारिक रूप से जुड़ते गये और एक प्रतिबद्ध लेखक के रूप में उभरे।
अन्तराल के बावजूद मलय ने उच्च शिक्षा जबलपुर विश्वविद्यालय से पूरी की। हिन्दी विषय में उन्होंने एम॰ए॰ की शिक्षा पूरी करके बाद में यू॰जी॰सी॰ रिसर्च फैलोशिप लेकर इसी विश्वविद्यालय से १९६८ में पीएच॰डी॰ की उपाधि पायी।[३] बचपन में ही माता पिता का निधन हो जाने से नौकरी पाने और छोड़ने का लंबा सिलसिला चला। पहले काफी समय तक उन्होंने पत्रकारिता की। मुख्यतः 'प्रहरी' (साप्ताहिक), 'परिवर्तन' (साप्ताहिक) और 'जबलपुर समाचार' (अब 'देशबंधु') जैसे पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। बाद में छत्तीसगढ़ में राजनांदगाँव के दिग्विजय महाविद्यालय में तथा जबलपुर के आदर्श विज्ञान महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत रहे।[२] जबलपुर के ही शासकीय महाकौशल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय से प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए। सन् १९५६ से २००० तक वे प्रगतिशील लेखक संघ (मध्यप्रदेश) में कविता एवं कहानी शिविरों का दक्षता के साथ संचालन करते रहे एवं उभरती हुई प्रतिभाओं का मार्गदर्शन किया। १९८५ से ९० तक वसुधा के संपादक मंडल के सदस्य रहते हुए नये रचनाकारों को उचित मंच प्रदान करने में भी उन्होंने योगदान दिया।[५]
लेखन कार्य
सन् १९६० में पहली बार 'कविताएँ' (मासिक पत्रिका) में कविताएँ प्रकाशित। नवल शुक्ल के अनुसार मलय नयी कविता के बाद और अकविता से पहले के कवि हैं।[६] मुक्तिबोध के निकट सम्पर्क में रहने के बावजूद सर्जनात्मक रूप से मलय मुक्तिबोध के प्रभाव से प्रायः मुक्त हैं। एकान्त श्रीवास्तव के अनुसार मलय का शिल्प मुक्तिबोध से बिल्कुल अलग है।[७] मलय का पहला कविता संग्रह 'हथेलियों का समुद्र' सन् १९६२ में प्रकाशित हुआ।[८] एक नये कवि की पहली पुस्तक होने के बावजूद इस संग्रह की अपेक्षाकृत काफी चर्चा हुई और कवि को डॉ॰ नामवर सिंह, देवीशंकर अवस्थी, रमेश कुंतल मेघ, भवानी प्रसाद मिश्र तथा शम्भुनाथ सिंह जैसे दिग्गज आलोचकों एवं कवियों के पत्र मिले।[९] अपने दूसरे कविता संग्रह 'फैलती दरार में' [१०] के बाहरी पृष्ठ पर उन्होंने ये सब पत्र प्रकाशित किये थे। मलय जन-प्रतिबद्धता के कवि हैं और यह प्रतिबद्धता उनके तीसरे संग्रह 'शामिल होता हूँ' [११] में भी स्पष्टतः परिलक्षित होती है। शोषित और दलित के प्रति सहानुभूति की वही कलात्मक आवाज उनके चौथे संग्रह 'अँधेरे दिन का सूर्य' [१२] में भी द्रष्टव्य है। लंबे समय तक कवि मलय को प्रकाशन के लिए भी कठिनाइयाँ उठानी पड़ी। उनका पाँचवीं कविता-पुस्तक 'निर्मुक्त अधूरा आख्यान' (एक लम्बी कविता)[१३] सुप्रसिद्ध कवि राजेश जोशी एवं कथाकार हरि भटनागर के सहयोग से प्रकाशित हुई। विज्ञापन तथा आत्म-प्रचार से काफी हद तक दूर रहने के बावजूद अपनी सुदृढ़ रचनात्मकता के बल पर धीरे-धीरे ही सही पर कवि मलय को प्रसिद्धि भी मिल रही थी। उनका छठा कविता संग्रह 'लिखने का नक्षत्र' [१४] प्रसिद्घ प्रकाशनों में से एक राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। सन् २००५ में उनका सातवाँ संग्रह 'काल घूरता है'[१५] प्रकाशित हुआ। ग्रामीण जीवन का संघर्ष तथा किसानों की बदहाल जिंदगी के चित्र इसमें देखते ही बनता है। इस संग्रह को नयी सदी में प्रकाशित उनके सबसे महत्वपूर्ण संग्रहों में गिना गया है।[१६] इसके बाद 'देखते न देखते' [१७] से लेकर 'इच्छा की दूब' [१८] तथा 'असंभव की आँच'[१९] तक कवि मलय निम्न मध्यवर्ग के जीवन-जगत् को आत्मसात करते हुए उसे संवेदनात्मक उत्तरदायित्व के साथ निरंतर अभिव्यक्त करते रहे हैं और इस क्षेत्र में काफी हद तक लगातार नयी जमीन तोड़ते नजर आते हैं। 'कवि ने कहा' [२०] उनका ग्यारहवाँ संग्रह है जो कि उनकी चुनिन्दा कविताओं का संचयन है।
एकान्त श्रीवास्तव के अनुसार : साँचा:quote
कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, आलोचनात्मक निबंध, समीक्षाएँ और टिप्पणियाँ भी लिखी हैं जो अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। व्यंग्य पर केंद्रित उनकी दो आलोचनात्मक पुस्तकें हैं। 'सदी का व्यंग्य-विमर्श' नामक पुस्तक उनके शोध प्रबंध का पुस्तकीय रूप है। इस पुस्तक के बारे में दो शब्द लिखते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सैद्धांतिक विवेचन के साथ व्यवहारिक समीक्षा के रूप में भी इसकी प्रशंसा की थी।[२१] इन सबके अतिरिक्त उन्होंने बाङ्ला में कविताओं का अनुवाद भी किया है।
प्रकाशित कृतियाँ
- कविता-संग्रह-
- हथेलियों का समुद्र -१९६२ (लोकचेतना प्रकाशन, जबलपुर)
- फैलती दरार में -१९७६ (सरला प्रकाशन, नयी दिल्ली)
- शामिल होता हूँ -१९९२ (पहला प्रकाशन, जबलपुर)
- अँधेरे दिन का सूर्य -१९९५ (पहला प्रकाशन, जबलपुर)
- निर्मुक्त अधूरा आख्यान -१९९५
- लिखने का नक्षत्र -२००२ (राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
- काल घूरता है -२००५ (मेधा बुक्स, दिल्ली)
- देखते न देखते -२००७ (परिकल्पना प्रकाशन, लखनऊ)
- इच्छा की दूब -२०११ (परिकल्पना प्रकाशन, लखनऊ)
- असंभव की आँच -२०१४ (परिकल्पना प्रकाशन, लखनऊ)
- कवि ने कहा -२०१४ (किताबघर प्रकाशन, दिल्ली)
- धुंध में से दमकती धार (लम्बी कविताओं का संग्रह) -२०१५ (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- वाचाल दायरों से दूर -२०१८ (परिकल्पना प्रकाशन, लखनऊ)
- संपादित संग्रह-
- मलय की प्रतिनिधि कविताएँ
- दिन भौंहें चढ़ाता है
- गद्यात्मक लेखन-
- खेत में (कहानी संग्रह) (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- समय के रंग (कवि का गद्य) (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- व्यंग्य का सौन्दर्य-शास्त्र (आलोचना) (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- सदी का व्यंग्य-विमर्श (सन् १८६७ से १९६६ तक रचित व्यंग्य-लेखन की आलोचनात्मक पड़ताल) (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- यादों की अनन्यता -२०१८ (संस्मरण) (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- साक्षात्कार-
- कवि के साक्षात्कार -२०१८ (शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली)
- संपादन-
- आँखन देखी (हरिशंकर परसाई पर केंद्रित संग्रह का सहयोगी संपादक)
- परसाई रचनावली (सहयोगी संपादक)
- साँझ सकारे (बुंदेली लोकगीतों का संकलन)
- वसुधा (पत्रिका) [सहयोगी संपादक (1985-90)]
- विशेष-
- जीता हूँ सूरज की तरह (मलय पर केन्द्रित मूल्यांकन परक आलेखों, साक्षात्कारों एवं कुछ अन्य सामग्रियों का संकलन; सं॰ ओम भारती, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित।)[२२]
सम्मान
- सप्तऋषि सम्मान - पवई, जबलपुर -१९९७
- अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र कृति पुरस्कार - मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् -२०००
- भवभूति अलंकरण - मध्यप्रदेश साहित्य सम्मेलन, भोपाल -२००२
- चन्द्रावती शुक्ल पुरस्कार - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी -२००३[५]
- हरिशंकर परसाई सम्मान -जमानी, होशंगाबाद, मध्यप्रदेश -२००६[३]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ मलय, कवि के साक्षात्कार, शिल्पायन बुक्स, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2018, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।
- ↑ अ आ खेत में, मलय, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2008, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।
- ↑ अ आ इ सदी का व्यंग्य-विमर्श, मलय, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2008, अंतिम आवरण फ्लैप पर उल्लिखित।
- ↑ कर्ण सिंह चौहान, लहक, अंक-30 (दिसंबर-जनवरी 2019), संपादक- निर्भय देवयांश, पृष्ठ-4.
- ↑ अ आ सतीश कुमार सिंह, लहक, अंक-30 (दिसंबर-जनवरी 2019), संपादक- निर्भय देवयांश, पृष्ठ-13.
- ↑ जीता हूँ सूरज की तरह, संपादक- ओम भारती, शिल्पायन, शाहदरा, नयी दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-127.
- ↑ जीता हूँ सूरज की तरह, संपादक- ओम भारती, शिल्पायन, शाहदरा, नयी दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-186.
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- ↑ मलय, कवि के साक्षात्कार, शिल्पायन बुक्स, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2018, पृष्ठ-99.
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- ↑ डॉ॰ अजीत प्रियदर्शी, लहक, अंक-30 (दिसंबर-जनवरी 2019), संपादक- निर्भय देवयांश, पृष्ठ-18.
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- ↑ सदी का व्यंग्य-विमर्श, मलय, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-7.
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