मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान
साँचा:wikify साँचा:infoboxसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main other मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) राजस्थान के थार मरुस्थल में अवस्थित है। यह जैसलमेर जिले से 40 किलोमीटर दूर है। यह उद्यान न केवल राज्य का सबसे बड़ा उद्यान है बल्कि पूरे भारत में इसके बराबर का कोई राष्ट्रीय उद्यान नहीं है। उद्यान का कुल क्षेत्र 3162 वर्ग किलोमीटर है। उद्यान का काफी बड़ा भाग लुप्त हो चुकी नमक की झीलों की तलहटी और कंटीली झाड़ियों से परिपूर्ण है। इसके साथ ही रेत के टीलों की भी बहुतायत है। उद्यान का 20 प्रतिशत भाग रेत के टीलों से सजा हुआ है। उद्यान का प्रमुख क्षेत्र खड़ी चट्टानों, नमक की छोटी-छोटी झीलों की तलहटियों, पक्के रेतीले टीलों और बंजर भूमि से अटा पड़ा है।
एक नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के बावजूद यहाँ पक्षी जीवन की बहुतायत है। यह क्षेत्र रेगिस्तान के प्रवासी और निवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग है। कई क़िस्म के बाज़ और गिद्ध इन सबके बीच आम हैं। रेत का मुर्ग छोटे तालाबों या झीलों के पास देखा जाता है। लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (सोन चिरैया), जो कि एक शानदार पक्षी है, यहाँ अपेक्षाकृत अच्छी संख्या में पाया है। यह विभिन्न मौसमों में स्थानीय रूप से प्रवास करता है। नवंबर और जनवरी के बीच का समय यहाँ आने के लिए सबसे उपयुक्त समय है। यह उद्यान १८ करोड़ वर्ष पुराने जानवरों और पौधों के जीवाश्म का एक संग्रह है। इस क्षेत्र में डायनोसोर के कुछ जीवाश्म तो ऐसे पाये गये हैं जो ६० लाख साल पुराने हैं।[१]
स्थान
भारतीय राज्य राजस्थान में जैसलमेर के पास स्थित।
वनस्पति और जीव
थार की भंगुर पर्यावरणीय प्रणाली में अनेक प्रकार की अनूठी वनस्पतियों और पशुओं की प्रजातियों के साथ-साथ वन्यजीवों को पनाह मिली हुई है। मरुस्थलीय पर्यावरण प्रणाली का यह सर्वथा उपयुक्त उदाहरण है। इन कठिन परिस्थितियों में अनेक प्रकार के जीवों को फलते फूलते देखना अपने आप में एक सुखद आश्चर्य है। उद्यान की अद्भुत वनस्पतियों और पशुओं को देखने का सबसे उत्तम स्थान सुदाश्री वन चौकी है। भरतपुर पक्षी अभयारण्य के निकट स्थित होने के कारण यहां भी अनेक प्रकार के प्रवासी पक्षी आते रहते हैं। उद्यान में तीन प्रमुख झीलें हैं – राजबाग झील, मलिक तलाव झील और पदम तलाव झील। ये तीनों झीलें, इस राष्ट्रीय उद्यान के निवासियों के प्रमुख जल स्रोत हैं।
कृष्णमृग इस क्षेत्र में एक आम मृग है। राष्ट्रीय उद्यान के अन्य उल्लेखनीय निवासियों रेगिस्तानी लोमड़ी, भेड़िया और रेगिस्तानी बिल्ली हैं। इस रेतीले आवास में पक्षी जीवन ज्वलंत और शानदार है।
भंगुर पर्यावरणीय प्रणाली के बावजूद यहां अनेक प्रकार के पक्षी पाये जाते हैं। लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (सोन चिरैया) इस उद्यान में अच्छी खासी संख्या में मौजूद हैं। यह क्षेत्र मरुस्थल के प्रवासी एवं स्थानीय पक्षियों का सुरक्षित आश्रयस्थल बना हुआ है। यहां उकाब, बाज़, चील, लंबे पांव और चोंच वाले अनेक प्रकार के शिकारी पक्षियों के अलावा गिध्दों का दीदार आसानी से हो जाता है। विविध रंगरूप, पंखों और पंजों की बनावट वाले चील, उकाब, बाज़ और गिध्द यहां पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। शाही मरु तीतर छोटे-छोटे तलाबों और झीलों के आसपास देखे जा सकते हैं। बटेर, मधुमक्खी- भक्षी, लवा (भरत पक्षी) और इस तरह की अनेक प्रजातियां यहां सर्वत्र देखी जा सकती हैं। जबकि लंबी गर्दन वाले सारस और बगुले जाड़ों में ही दिखाई देते हैं। नीली दुम वाले और हरे मधुभक्षी पक्षियों के अलावा अनेक प्रकार के सामान्य और दुर्लभ तीतर-बटेर पक्षीप्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। इस उद्यान में शीतकाल में अनेक प्रवासी पक्षी भी अपना बसेरा बनाते नज़र आते हैं।
शायद उद्यान का सबसे बड़ा आकर्षण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (सोन चिरैया) नामक पक्षी है, जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है और केवल भारत में ही पाया है। यह उद्यान उन आखिरी जगहों में से एक है जहाँ यह प्रजाति अच्छी संख्या में पाई जा सकती है। वैसे भी, इस प्रजाति को देखने दुनिया भर से पक्षी प्रेमी हजारों की संख्या में आते हैं। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अलावा, यह उद्यान अन्य कई किस्म के पक्षियों का गढ़ है जो पक्षी प्रेमियों और संरक्षणवादियों, दोनों को समान रूप से आकर्षित करते हैं।
थार रेगिस्तान, जिसे अक्सर 'रेत के समुद्र' कहा जाता है, पश्चिमी राजस्थान के एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। थार का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र एक अद्वितीय और विविध वन्य जीवन को सहारा देता है। रेत के इस विशाल सागर में यह प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान है, जो थार रेगिस्तान और उसके विविध वन्य जीवन के पारिस्थितिकी तंत्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
यहाँ वनस्पति विरल है, लेकिन सेवन घास और आक की झाड़ियाँ यहाँ-वहाँ देखी जा सकती हैं। परिदृश्य ऊँची-नीची चट्टानों और ठोस नमक झील के तल, मध्यवर्ती क्षेत्रों और दोनों तरह के रेत के टीलों - चल एवं अचल- से भरा है। रेत के टिब्बे इस विशाल विस्तार का लगभग २०% हिस्सा हैं। पदम तलाव झील, राजबाग़ झील, मिलक झील इत्यादि इस कठोर परिवेष में रहने वाले वन्य प्राणियों के लिए मुख्य जल स्रोत हैं।
उद्यान की वनस्पतियों और पेड़-पौधों की प्रजातियों में धोक, रोंज, सलाई और ताड़ के वृक्ष प्रमुख हैं। वनस्पतियां बिखरी और छितरी हुई हैं। आक की झाड़ियों और सेवान घास से भरे छोटे-छोटे भूखंड भी यत्र-तत्र दिखाई देते हैं।
मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान में पशुओं और पौधों के जीवाश्मों के ढेर लगे हैं। कहते हैं कि ये जीवाश्म 18 करोड़ वर्ष पुराने हैं। डायनासोर के 60 लाख वर्ष पुराने जीवाश्म भी इस क्षेत्र में पाए जाते हैं।
मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (डेज़र्ट नेशनल पार्क) के वन्यजीवों में ब्लैक बक (काला हिरण), चिंकारा, रेगिस्तानी लोमड़ी, बंगाल लोमड़ी, भारतीय भेड़िया, रेगिस्तानी बिल्ली, खरगोश आदि प्रमुख हैं। सांप भी यहां खूब पाए जाते हैं। अनेक प्रकार की छिपकलियां, गिरगिट, रूसेल वाइपर, करैत जैसे जहरीले सांपों की अन्य कई प्रजातियां भी यहां पाई जाती हैं।
राजस्थान सरकार ने जैसलमेर जिले के इस उद्यान का 4 अगस्त 1980 को जारी अपनी अधिसूचना क्रमांक एफ-3(1)(73) संशो. के जरिये इसे मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान अर्थात डेजर्ट नेशनल पार्क के रूप में अधिसूचित किया था। इससे पूर्व यह मरुभूमि वन्यजीव अभयारण्य के रूप में जाना जाता था। अपने पर्यावरणीय और वानस्पतिक, महत्व के कारण ही इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया गया है ताकि उद्यान में रहने वाले वन्यजीवों और इस राष्ट्रीय उद्यान के पर्यावरण का संरक्षण, प्रचार और विकास भलीभांति किया जा सके।
इतिहास
भारत में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सर्वप्रथम लिखित कानून शासक मौर्य सम्राट अशोक ने बनाया था। (ईसा पूर्व तीसरी
सदी )
आधुनिक भारत में वन्यजीव संरक्षण हेतु बनाया गया प्रथम अधिनियम- भारतीय पशु पक्षी संरक्षण अधिनियम – 1887. मूल संविधान में वन्यजीव विषय राज्य सूची का विषय था।
42वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा वन्यजीव विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
चित्र दीर्घा
जैसलमेर में गदीसर झील