मरुआ
मरुआ बनतुलसी या बबरी की जाति का एक पौधा।
यह पौधा बागों में लगाया जाता है। इसकी पत्तियाँ बबरी की पत्तियाँ से कुछ बड़ी, नुकीली, मोटी, नरम और चिकनी होती हैं, जिनमें से उग्र गंध आती है। इसके दर देवताओं पर चढ़ाए जाते हैँ। इसका पेड़ ड़ेढ दो हाथ ऊँचा होता है और इसकी फुनगी पर कार्तिक अगहन में तुलसी के भाँति मंजरी निकलती है जिसमें नन्हें-नन्हें सफेद फूल लगते हैं। फूलों के झड़ जाने पर बीजों से भरे हुए छोटे-छोटे बीजकोश निकल आते हैं, जिनमें से पकने पर बहुत सारे बीज निकलते हैं। ये बीज पानी में पड़ने पर ईसबगोल की तरह फूल जाते हैं।
यह पौधा बीजों से उगता है, पर यदि इसकी कोमल टहनी या फुनगी लगाई जाये तो वह भी लग जाती है। रंग के भेद से मरुआ दो प्रकार का होता है, काला और सफेद। काले मरुए का प्रयोग औषधि रूप में नहीं होता और केवल फूल आदि के साथ देवताओं पर चढ़ाने के काम आता है। सफेद मरुआ ओषधियों में काम आता है। वैद्यक में यह चरपरा, कड़ुआ, रूखा और रुचिकर तथा तीखा, गरम, हलका, पित्तवर्धक, कफ और वात का नाशक, विष, कृमि और कृष्ठ रोग नाशक माना गया है।
पर्यायवाची — मरुवक, मरुत्तक, फणिज्जक, प्रस्थपुष्प, समीरण, कुलसौरभ, गधंपत्र, खटपत्र।
बाहरी कड़ियाँ
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- मरुआ का पेड़ लगाओ, मच्छर भगाओ
- मरुआ
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- Origanum majorana (Plants For A Future database)