भैरोनाथ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
भैरो बाबा का मन्दिर जहाँ भक्त उनके शीश की पूजा करते हैं। यह वही स्थान है जहाँ भैरोनाथ का वध होने के बाद उनका शीश गिरा था।

भैरो या भैरोनाथ एक प्रसिद्ध तान्त्रिक हैं। कुछ स्थानों पर इन्हें अघोरी साधु के रूप में भी वर्णित किया गया है। भैरोनाथ गोरखनाथ के शिष्य थे और इनका मुख्य अस्त्र तलवार है। भैरो एक दानव कुल से थे और इनके पिता दुर्जय और पितामह दैत्यराज का वध भी माता वैष्णो देवी ने किया था।

भैरोनाथ का उद्धार

दिव्य कन्या के कहने पर श्रीधर ने समस्त गांव वालों को भण्डारे का निमंत्रण दिया और अन्त में गुरु गोरखनाथ जी और उनके शिष्य बाबा भैरोनाथ जी के साथ गोरखनाथ जी के अन्य शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भण्डारे में माता वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण कर आई और एक कड़छी और जादुई बर्तन से सबको उनकी इच्छा का भोजन देने लगी। जब वे भैरो के पास आई तो भैरो ने खीर पूड़ी के स्थान पर मान्स खाने और मदिरा पीने की बात कही। माता ने भैरोनाथ को।बहुत समझाया किन्तु उन्होंने एक न सुनी। भैरो ने कन्या रूपी माता को जब पकड़ना चाहा तो वह कन्या भैरोनाथ से अपना हाथ छुड़वाकर त्रिकुट पर्वत की ओर चल दी। भैरो भी उनके पीछे पीछे आ गए। माता की रक्षा के लिए वीर लंगूर हनुमान जी महाराज थे। उन्होंने भैरोनाथ से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगे तो माता वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरोनाथ का वध कर दिया। माता को ज्ञात था कि भैरो की प्रमुख मन्शा मोक्ष प्राप्त करने की थी। जिस स्थान पर माता वैष्णो ने भैरोनाथ को संहारा था वह स्थान भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माता महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती पिण्डी के रूप में विराजमान हैं। उन्होंने भैरो को क्षमा कर दिया और कहा कि जो भक्त मेरे दर्शन के बाद तेरे दर्शन नहीं करेगा तो मेरे दर्शन भी अमान्य होंगे। इसलिए भक्त माता वैष्णो के दर्शन के बाद ३ किमी दूर खड़ी चढ़ाई करके भैरो बाबा के दर्शन के लिए जाते हैं।