भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार

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भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में भारत सरकार के अप्रचलित अभिलेखों का भंडारण किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर प्रशासकों और शोधार्थियों के द्वारा किया जाता है। यह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है। इसकी शुरुआत कलकत्ता (अब कोलकाता) में मार्च 1891 में इंपीरियल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट की स्थापना के साथ हुई थी। 1911 में जब राष्ट्रीय राजधानी को कलकत्ता से बदलकर नई दिल्ली किया गया उस समय इस अभिलेखागार को भी नई दिल्ली स्थानानांतरित कर दिया गया। अपने वर्तमान भवन में यह सन 1926 में स्थानानांतरित हुआ। यह अभिलेखागार 'प्रथमोक्त' नाम से नई दिल्ली के जनपथ और राजपथ के चौक के पास लाल और सफ़ेद पत्थरों के एक भव्य भवन में स्थित है। प्राकृतिक कारकों से अभिलेखों की रक्षा के लिए आधुनिक वैज्ञानिक साधन उपलब्ध कराये गए हैं।

परिचय

इस विभाग को सन्‌ 1891 में ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से इकट्ठे हुए सरकारी अभिलेखों को लेकर रखने का काम सौंपा गया था। उस समय इसके अधिकारी स्पष्ट रूप से यह नहीं जानते थे कि, इसका क्या काम होगा? अभिलेखसमूह अव्यवस्थित अवस्था में पड़ा था। भारत सरकार का ध्यान इस ओर तब गया जब इंग्लैंड और वेल्स के अभिलेखों के संबंध में नियुक्त राजकीय आयोग ने सन्‌ 1914 में भारतीय अभिलेखों की अव्यवस्थित अवस्था पर टिप्पणी की। फलत: सन्‌ 1919 में भारत सरकार ने भारतीय अभिलेखों के संबंध में अपनी सिफारिशें भेजने के लिए एक भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग नियुक्त किया। उस आयोग की सिफारिशों के फलस्वरूप अभिलेखों की अवस्था में धीरे धीरे सुधार होता गया। आज इसका मुख्य काम, सरकार के स्थायी अभिलेखों को सँभालकर रखना तथा प्रशासनिक उपयोग के लिए माँगने पर सरकार के विभिन्न कार्यालयों को उपलब्ध कराना। इसका दूसरा प्रमुख कार्य, सरकार द्वारा निश्चित अवधि तक के अभिलेख, शोधार्थियों को शोधाकार्य के लिए उपलब्ध कराना। शोधार्थी अभिलेखागार के शोधकक्ष (रिसर्च रूम) में बैठकर शोधकार्य करते है।

सरकार के वे सभी अभिलेख समय-समय पर यहाँ अभिरक्षा हेतु भेजे जाते हैं जो अब अपने संबद्ध विभागों, कार्यालयों, मंत्रालयों आदि में तो प्रचलित (करेंट) नहीं हैं किंतु, सरकार के स्थायी उपयोग के हैं। इनके अतिरिक्त भूतपूर्व वासामात्य भवनों (रेज़िडेंसियों), विलीन राज्यों तथा राजनीतिक अभिकरणों के भी अभिलेख यहाँ भेजे जाते हैं। इस अभिलेखागार के इस्पात के ताकों पर इस समय लगभग 1,03,625 जिल्दें और 51,13,000 बिना जिल्द बँधे प्रलेख (दस्तावेज़) हैं। कुल मिलाकर 13 करोड़ पृष्ठयुग्म (फ़ोलियो) हैं। इनके अतिरिक्त भारतीय सर्वेक्षण विभाग (सर्वे ऑफ इंडिया) से 11,500 पांडुलिपि मानचित्र और विभिन्न अभिकरणों के 4,150 मुद्रित मानचित्र प्राप्त हुए हैं। मुख्य अभिलेखमाला सन्‌ 1748 से आरंभ होती है। इससे पूर्व के वर्षो के भी हितकारी अभिलेखसंग्रहों की प्रतिलिपियाँ इंडिया आफिस, लंदन से मँगाकर रखी गई हैं। इन जिल्दों में सन्‌ 1707 और 1748 में ईस्ट इंडिया कंपनी और उसके कर्मचारियों के बीच किए गए पत्रव्यवहार यहाँ पर मूल में एक अटूट माला के रूप में मिलते हैं और वह ब्रिटिश भारत के इतिहास का एक अनुपम स्रोत है। इसी प्रकार मूल कंसल्टेशंस भी बहुत महत्वूपर्ण हैं। इनमें ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासकों द्वारा लिखे गए वृत्त (मिनिट्स), ज्ञापन (मेमोरंडा), प्रस्ताव और सारे देश में विद्यमान कंपनी के अभिकर्ताओं (एजेंटों) के साथ किया गया पत्रव्यवहार है। इस देश की रहन-सहन और प्रशासन का लगभग प्रत्येक पहलू इनमें मिलता है। अभिलेखों में विदेशी हित ही सामग्री और पूर्वी चिट्ठियों का एक संग्रह भी है। इन चिट्ठियों में अधिकतर चिट्ठियाँ फारसी भाषा में हैं। परंतु बहुत सी संस्कृत, अरबी, हिंदी, बांग्ला, उड़िया, मराटी, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बर्मी, चीनी, स्यामी और तिब्बती भाषाओं में भी हैं। हाल के वर्षो में इंग्लैंड, फ्रांस, हालैंड, डेनमार्क और अमरीका से भारत के लिए हितकारी सामग्रियों की अणचित्र-प्रति-लिपियाँ (माइक्रोफ़िल्म कापीज़) भी प्राप्त की गई हैं।

माँगे जाने पर सुगमता से निकालकर देने के लिए इन अभिलेखों को बहुत सावधानी से ताकों पर वर्गीकरण, परीक्षण और क्रमबद्ध करके रखा जाता है और उनकी सूचियाँ तैयार की जाती हैं।

जो कार्यालय अपने अभिलेख यहाँ भेजते हैं वे पहले उनमें से अनुपयोगी अभिलेखों को निकालकर नष्ट कर देते हैं। नष्ट करते समय कहीं वे प्रशासनिक और ऐतिहासिक मूल्य के अभिलेखों को भी न नष्ट कर दें इसलिए यह अभिलेखागार उनको अभिलेखसंचयन के संबंध में सलाह देता है और इस काम में उनका पथप्रदर्शन करता है। संचयन के संबंध में विषमता दूर करने के लिए इस अभिलेखागार ने विभिन्न मंत्रालयों से आए हुए प्रतिवेदनों के आधार पर अभिलेखसंचयन का एकविध (यूनिफ़ार्म) नियम तैयार किया है। बाहर से आने वाले अभिलेखों का पहले वायुशोधन (एअर क्लीनिग) तथा धूमन (फ़्यूमिगेशन) किया जाता है। वायु शोधन के द्वारा अभिलेखों में से धूल हटा दी जाती है और धूमन के द्वारा हानिकारक कीड़ों को नष्ट कर दिया जाता है।

अभिलेखों का परिरक्षण (सँभाल) इस अभिलेखागार के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। यह काम अभिलेख प्रतिसंस्कार (मरम्मत) की विभिन्न विधाओं द्वारा प्रलेखों, उनके कागजों तथा स्याहियों आदि की अवस्थाओं को ध्यान में रखकर यथोचित रीति से किया जाता है। इस काम को सुचारू रूप से करने के लिए अभिलेखागार ने अपनी ही शोध प्रयोगशाला बना रखी है। इसमें कागजों तथा स्याहियों आदि के नमूनों का, अभिलेख-प्रतिसंस्कार के लिए उनकी उपयुक्तता आदि जानने के संबंध में परीक्षणकार्य किया जाता है। प्रयोगशाला में ऐसे साधनों तथा रीतियों आदि की खोज भी की जाती है जिससे अभिलखों को अधिक से अधिक दीर्घजीवी बनाया जा सके।

अभिलेख परिरक्षण (सँभाल में भा-प्रतिलिपिकरण) (फोटोडुप्लिकेशन) विधा से भी सहायता ली जाती है। अणुचित्रण विधा (माइक्रोफिल्मिंग प्रोसेस) द्वारा पुराने और भिदुर अभिलेख का लगातार अणचित्रण किया जा रहा है ताकि यदि कभी मूल अभिलेख अपहत या नष्ट हो जाएँ तो उनकी प्रतिलिपियाँ सँभालकर रखी जा सकें। इसके अतिरिक्त अणुचित्र प्रतिलिपियों को उपयोग में लाने से जहाँ मूल अभिलेखों की आयु अधिक लंबी हो सकती है वहाँ भारत के विभिन्न भागों में स्थित शोधार्थियों को शोधार्थ सस्ते मूल्य पर अभिलेखों की प्रतिलिपियाँ मिल सकती हैं।

यह अभिलेखागार इस समय संसार के सबसे बड़े अभिलेखागारों में से एक है। इसके कार्यकलापों के प्रशासन, अभिलेख, प्रकाशन, प्राच्य अभिलेख और शैक्षणिक अभिलेख तथा परिरक्षण आदि नामों से छह संभाग (डिवीज़न) हैं। प्रत्येक शाखा अपने शाखाप्रभारी तथा संभाग अधिकारी (डिवीज़न आफ़िसर) के द्वारा अपना कार्यकलाप निर्देशक को भेजती है।

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