भारत में स्वास्थ्य सेवा
भारत में सभी नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप जी क्षेत्र देश में प्रमुख स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बन गया हैं। विषय वस्तु [छिपाएं][१]
स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली
भारत में स्वास्थ्य सेवा के लिए निजी स्वास्थ्य क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाता हैं। यहाँ अधिकांश स्वास्थ्य खर्च बीमा के माध्यम से होने के बजाय रोगियों और उनके परिवारों द्वारा उनकी जेब भुगतान किया जाता हैं। इसके चलते स्वास्थ्य खर्चों पर बहुत ही असामान्य व्यय करना पड़ता हैं एवं परिणामस्वरूप किसी भी परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाती हैं। यहाँ तक की जीने का एक बुनियादी मानको को बनाये रखने में परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। [२]
सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3 के अनुसार, निजी चिकित्सा क्षेत्र शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के 70% और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के 63% के लिए स्वास्थ्य देखभाल के प्राथमिक स्रोत है। [३] विभिव्न राज्यों के बीच सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल में काफी अंतर हैं।कई कारणों से निजी स्वास्थ्य क्षेत्र पर निर्भरता बडी हैं जिनमे से एक प्रमुख कारण सार्वजनिक क्षेत्र में देखभाल की खराब गुणवत्ता का होना है। [४] 57% से अधिक परिवारों ने सर्वक्षण के दौरान यही कारण बताया। लोक स्वास्थ्य की ज्यादातर सेवाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की और केन्द्रित हैं एवं अनुभवी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा नहीं करने के कारण सेवाओं में गुणवता गिर जाती हैं।
2014 के चुनाव में जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय सँभालने के बाद उनकी सरकार ने एक राष्ट्रव्यापी सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का अनावरण किया जिसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य गारंटी मिशन के नाम से जाना जाता हैं जिसका मुख्य लक्ष्य प्रत्येक नागरिक को मुफ्त दवाएं, नैदानिक उपचार और गंभीर बीमारियों के लिए बीमा उपलब्ध कराना हैं। [५] लेकिन सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के कार्यान्वयन के वित्तीय कारणों से देरी हुई।[६]
ग्रामीण स्वास्थ्य
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) अप्रैल 2005 में शुरू किया गया था। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना हैं एवं इसमें उन 18 राज्यों में ज्यादा ध्यान दिया गया था जहा स्वास्थ्य सेवा के संकेतक काफी निम्न थे।
डॉक्टरों की आबादी का केवल 2% ग्रामीण क्षेत्रों में रहता हैं जहा भारत की 68% जनसख्या रहती हैं।
शहरी स्वास्थ्य
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की एक सहायक मिशन के रूप में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन को कैबिनेट के द्वारा 1मई 2013 को मंजूर किया गया था। इसका लक्ष्य शहरी आबादी के स्वास्थ्य की देखभाल जरूरतों को पूरा करना था एवं इसका मुख्य फोकस शहरी गरीबों पर था एवं उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य उपलब्ध कराना था।
शहरीकरण और शहरी भारत में असमानता:
भारत की शहरी आबादी 2001 में 285 मिलियन थी एवं 2011 में 377 मिलियन हो गयी इसमें 31% की वृद्धि हुई हैं एवं 2026 में इसके से 535 मिलियन (38% की वृद्धि) होने की संभावना है।
बाल स्वास्थ्य, शहरी भारत में जीवन रक्षा में असामान्यताएँ
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2005-06 (विश्लेषण के लिए सबसे हाल ही में उपलब्ध डाटासेट) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत की शहरी आबादी के लिए उपलब्ध शिशु (बाल) स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं।
शहरी भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल में असामान्यताएँ
भारत की शहरी आबादी के बीच मातृत्व स्वास्थ्य की देखभाल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं हैं यहाँ ध्यान देने की बात हैं ऐसे महिलाओं का अनुपात काफी निम्न हैं जो अपने के मातृत्व दौरान स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठाती हैं।
स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता
भारत के प्रमुख शहरी क्षेत्रों में चिकित्सीय देखभाल की गुणवत्ता प्रथम विश्व के मानकों के काफी करीब है और कभी-कभी उनसे भी अधिक है। [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] भारतीय स्वास्थ्य पेशेवरों एक बहुत ही जैविक रूप से सक्रिय वातावरण में काम करने का फायदा है। जिससे उन्हें विभिन्न प्रकार के उपचार माध्यमो को प्रकाश में लाने का फायदा मिलता है। [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] गुणवत्ता और विशाल अनुभव यकीनन अधिकांश अन्य देशों की अपेक्षा में काफी बेमिसाल है। [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] नैदानिक उपकरणों की अनुपलब्धता, योग्य और अनुभवी स्वास्थ्य पेशेवरों की उन ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने की अनिच्छा जो आर्थिक रूप से कम आकर्षक हैं एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। [७]