भारत में गन्ने की खेती
गन्ना, भारत की महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों में से एक है और इसका नकदी फसल के रूप में एक प्रमुख स्थान है। चीनी का मुख्य स्रोत गन्ना है। भारत दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। गन्ने की खेती बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देती है और विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
गन्ने की प्रमुख किस्में
गन्ने की प्रमुख किस्में निम्नानुसार हैं-
अनुमोदित किस्में
शीघ्र (9 से 10 माह) में पकने वाली वाली – को. 7314 (उपज प्रति एकड़ – 320-360 क्विं.), को. 64 (उपज प्रति एकड़ – 320-360 क्विं.) को.सी. 671 (उपज प्रति एकड़ – 320-360 क्विं.)
मध्य से देर से (12-14 माह) में पकने वाली – को. 6304 (उपज प्रति एकड़ – 380-400 क्विं.), को.7318 (उपज प्रति एकड़ – 400-440 क्विं.), को. 6217 (उपज प्रति एकड़ – 360-400 क्विं.)
नई उन्नत किस्में
शीघ्र (9 -10 माह ) में पकने वाली – को. 8209 (उपज प्रति एकड़ -360-400 क्विं.), को. 7704 (उपज प्रति एकड़ -320-360 क्विं.), को. 87008 (उपज प्रति एकड़ -320-360 क्विं.), को. 87010 (उपज प्रति एकड़ -320-360 क्विं.), को. जवाहर 86-141 (उपज प्रति एकड़ -360-400 क्विं.), को. जवाहर 86-572 (उपज प्रति एकड़ -360-400 क्विं.)
मध्यम से देर (12-14 माह ) में पकने वाली – को. जवाहर 94-141 (उपज प्रति एकड़ -400-600 क्विं.), को. जवाहर 86-600 (उपज प्रति एकड़ -400-600 क्विं.), को.जवाहर 86-2087 (उपज प्रति एकड़ -400-600 क्विं.)
गन्ने की बुवाई
गन्ना बोने का समय – गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है । बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए ।
भूमि का चुनाव एवं तैयारी : गन्ने के लिए काली भारी मिट्टी, पीली मिट्टी, तथा रेतेली मिट्टी जिसमें पानी का अच्छा निकास हो गन्ने हेतु सर्वोत्तम होती है।
खेत की तैयारी- गन्ना बहुवर्षीय फसल है, इसके लिए खेत की गहरी जुताई के पश्चात् 2 बार कल्टीवेटर व आवश्यकता अनुसार रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत तैयार करें, मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए इससे गन्ने की जड़े गहराई तक जाएगी और पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलेंगे।
गन्ना बीज का चुनाव– गन्ना बीज 9 से 10 माह के उम्र का गन्ना बीज के लिए उपयोग करे, गन्ना बीज उन्नत जाति, मोटा, ठोस, शुद्ध व रोग रहित होना चाहिए. जिस गन्ने की छोटी पोर हो फूल आ गये हो, ऑंखे अंकुरित हो या जड़े निकल आई हो ऐसा गन्ना बीज के लिये उपयोग न करें।
बीज की मात्रा- एक ऑख का टुकड़ा लगाने पर प्रति एकड़ 10 क्विंटल बीज लगेगा, 2 ऑख के टुकड़े लगाने पर 20 क्विंटल बीज लगेगा, पॉली बैग, पॉली ट्रे के उपयोग से बीज की बचत होगी तथा अधिक उत्पादन प्राप्त होगा.
बीज की कटाई- तेज धार वाले ओजार से गन्ना की कटाई करते समय ध्यान रखें कि ऑख के ऊपर वाला भाग 1/3 तथा निचला हिस्सा 2/3 भाग रहे.
नाली से नाली की दूरी (घार की दूरी) – नालियों के बीच की दुरी 4 से 4.5 या 5 फिट रखें इसके निम्न लाभ होगे-
- सूर्यप्रकास, हवा अधिक मिलने से गन्ना अधिक होता हे, तथा अधिक गन्ना उत्पादन प्राप्त होता हे बीज की मात्रा कम लगती है.
- अन्तरवर्तीय फसल या यंत्रीकरण हेतु सुलभ.
- हार्वेस्टर द्वारा गन्ना कटाई में सुविधा.
बुवाई विधि – माध्यम से भारी मिट्टी में सुखी बुवाई करें नालियों में गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद, डाले. नालियों में गन्ने के टुकड़े को कातार में जमा दें. गन्ने की आंखे आजू-बाजू में हो ऐसा रखें (दोनों आंखे नाली की बगल की तरफ हो) इसके बाद 2-3 इंच मिट्टी से टुकडो को दबा दे.
गन्ने की देखभाल
गोबर खाद या कम्पोस्ट- गन्ना फसल के लिये लगभग 50 कुन्टल गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद का उपयोग गन्ना बुवाई के समय नालियों में डालकर करना चाहिए. गोबर खाद के कारण जमीन में हवा व पानी का संतुलन बना रहता है. मिट्टी की जलधारण क्षमता बढती हें जीवाणओ की संख्या में वृद्धि होती हें हरी खाद प्रेसमड मुर्गी खाद बायोकम्पोस्ट, गन्ने की सुखी पत्तियां अन्य घासफूस की पलटवार कर भूमि में कार्बनिक पदार्थ मिलायें जा सकते हैं.
रसायनिक उर्वरको का प्रयोग – फसलो की सही बढ़बार, उपज और गुणवत्ता के लिये पोषक तत्वों का सही अनुपात और जरुरी मात्रा में मिट्टी परिक्षण प्रतिवेदन (रिपोर्ट) के अनुसार ही प्रोयोग करें जहाँ तक संभव हो सरल खाद जैसे यूरिया, सुपरफास्फेट, व म्यूरेट ऑफ़ पोटाश जैसे उर्वरको अनुशासित मात्रा में फसल को दें.
गन्ने की नालियों पर हल्की एवँ भारी मिट्टी चढ़ाना – गन्ना फसल में जरुरी कांसे / कल्ले आने के लिये डेढ़ से दो माह की समयावधि में हल्की मिट्टी चढ़ाना चाहिए तथा जब कांसे / कल्ले जरुरत के मुताबिक निकल आये तव भारी मिट्टी चढ़ाना चाहिए इससे नये कांसे / कल्ले निकलना बन्द हो जायेगे.
खरपतवार नियंत्रण – गन्ना बुवाई के पश्चात् पहले 4 माह तक नींदा नियंत्रण नहीं करने पर गन्ना उत्पादन में 50 प्रतिशत तक कमी हो सकती हैं इसके लिए 3-4 बार निंदाई गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई- सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी व जलवायु पर निर्भर करती हैं . मिट्टी में रेत की मात्रा अधिक होने पर सिंचाई की मांग अधिक होगी . भारी मिट्टी में सिंचाई अवधि बढ़ाई जा सकती है. मिट्टी में जीवांश की मात्रा अधिक होने से जलग्रहण की क्षमता बढ़ती है .
टपक (ड्राप) सिंचाई पद्धति- उन्नत सिंचाई पद्धतियो में टपक (ड्राप) सिंचाई पद्धति से फसल के लिये आवश्यकता अनुसार उचित मात्रा में द्रव रूप रसायनिक उर्वरक सीधे जड़ो तक पहुचाये जा सकते हैं. यह (ड्राप) सिंचाई पद्धति अपनाने पानी की 50 से 60 प्रतिशत तक तथा उर्वरको की 20 से 35 प्रतिशत तक की बचत की जा सकती है. बिजली की बचात के साथ सिंचाई के लिए मजदूरो की आवश्यकता नहीं होती हैं खरपतवार पर पूर्ण नियंत्रण होता हें. गन्ना उत्पादन में 30 से 35 प्रतिशत बढ़त होती हैं.
गन्ने में अंतरवर्ती (सह) फसल – अंतरवर्ती (सह) फसल हेतु इस तरह की फसल का चुनाव जो की गन्ने की फसल से प्रतिस्पर्धा ना करें. प्याज, आलू, राजमा, धनिया, मूंग, उड़द तथा सब्जियां लगायें.
गन्ने की पेंड़ी अधिक लाभकारी
इसकी उपज कम प्राप्त होती है । यदि पेड़ी फसल में भी योजनाबध्द तरीके से कृषि कार्य किये जावें तो इसकी उपज भी मुख्य फसल के बराबर प्राप्त की जा सकती है । मुख्य गन्ना फसल के बाद बीज टुकड़ों से ही पुन: पौधे विकसित होते हैं जिससे दूसरे वर्ष फसल प्राप्त होती है । इसी प्रकार तीसरे साल भी फसल ली जा सकती है । इसके बाद पेड़ी फसल लेना लाभप्रद नहीं होता । यहां यह उल्लेखनीय है कि रोग कीट रहित मुख्य फसल से ही भविष्य की पेड़ी फसल से अधिक उपज ली जा सकती है । चूंकि पेड़ी फसल बिना बीज की व्यवस्था तथा बिना विशेष खेत की तैयारी के ही प्राप्त होती है, इसलिए इसमें लागत कम लगती है । साथ ही पेड़ी की फसल मुख्य फसल अपेक्षा जल्द पक कर तैयार हो जाती है । इसके गन्ने के रस में मिठास भी अधिक होती है।