बिजनौर
बिजनौर | |
— शहर — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | साँचा:flag |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
(श्री मलूक नागर) | |
जनसंख्या • घनत्व |
३६८३८९६ (साँचा:as of) • ८०८ |
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
६५६१ कि.मी² • २२५ मीटर |
साँचा:collapsible list |
साँचा:coord बिजनौर भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। हिमालय की उपत्यका में स्थित बिजनौर को जहाँ एक ओर महाराजा दुष्यन्त, परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आर्य जगत के प्रकाश स्तम्भ स्वामी श्रद्धानन्द, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ॰ आत्माराम, भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वालाप्रसाद आदि की जन्मभूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। इसी जिला बिजनौर ने भारतीय राजनीति एवं आजादी की लड़ाई को हाफिज मोहम्मद इब्राहिम और मोलाना हिफजुर रहमान जैसे कर्म योद्धा दिये
साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं। कालिदास का जन्म भले ही कहीं और हुआ हो, किंतु उन्होंने इस जनपद में बहने वाली मालिनी नदी को अपने प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' का आधार बनाया। अकबर के नवरत्नों में अबुल फ़जल और फैज़ी का पालन-पोषण बास्टा के पास हुआ। उर्दू साहित्य में भी जनपद बिजनौर का गौरवशाली स्थान रहा है। क़ायम चाँदपुरी को मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी उस्ताद शायरों में शामिल किया है। नूर बिजनौरी, रिफत सरोश,कौसर चांदपुरी,डिप्टी नजीर अहमद,अख्तर उल इमान,निश्तर खानकाही, कयाम बिजनौरी, अफसर जमशेद,सज्जाद हैदर यलदरम,शेख़ नगीनवी विश्वप्रसिद्ध शायर व लेखक इसी मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर,बिजनौर के निवासी थे, जिन्होंने महारानी को फ़ारसी की पढ़ाया। संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं. पद्मसिंह शर्मा और हिंदी-ग़ज़लों के शहंशाह दुष्यंत कुमार, विख्यात क्रांतिकारी चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी, पैजनियां- भी बिजनौर की धरती की देन हैं। इसी धरती ने भारतीय फिल्म जगत को न सिर्फ प्रकाश मेहरा जेसे निर्माता एवं शाहिद बिजनौरी सरीखे कलाकार दिये बल्कि वर्तमान में फिल्म एवं धारावाहिक के मशहूर लेखक एवं निर्माता दानिश जावेद जैसे साहित्यकार आज भी मुम्बई से बिजनौर का नाम रोशन कर रहे हैं, वर्तमान में महेन्द्र अश्क देश विदेश में उर्दू शायरी के लिए विख्यात हैं। धामपुर तहसील के अन्तर्गत ग्राम किवाड में पैदा हुए महेन्द्र अश्क आजकल नजीबाबाद में निवास कर रहे हैं । अमन कुुुुमार त्यागी रेेडियो रूपक, कहानी आदि के माध्यम से अपनी पहचान बना चुके हैं.
लेखन के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा के साथ उभरते हुए नए लेखक कवि फिल्म निर्देशक गीतकार वह शायर [हिमांकर अजनबी]
https://www.imdb.com/name/nm11363066/ ]नाम भी शामिल है जो अपनी प्रतिभा से उत्तर प्रदेश का नाम रोशन करते हुए अपने लेखन में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक द गेम्स ऑफ लाइफ युवाओं को प्रेरित करती हैं तथा इनके द्वारा लिखे गए गीत भी सभी लोगो को भाते हैं हिंदी व उर्दू भाषा के अतिरिक्त पंजाबी भाषा के क्षेत्र में भी इन्होंने बहुत काम किया है जो सराहनीय है। उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में जन्मे मोहित कुमार उर्फ हिमांकर अजनबी ने बहुत ही कम आयु से लिखना आरंभ कर दिया था जिसके बाद इन्होंने कई काव्य मंच पर अपनी कविताओं द्वारा युवाओं का दिल जीता तथा अपने लेखन के सफर को आगे बढ़ाते हुए इन्होंने पुस्तके लिखना आरंभ किया उसके बाद कई टीवी सीरियल और फिल्मों का सिलसिला जारी हुआ जिसमें यह बतौर स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले राइटर काम कर चुके हैं इसके साथ ही हिंदी में पंजाबी भाषा में बहुत से गीतों के गीतकार रहे हैं।
वर्तमान में बिजनौर लोकसभा से श्री मलूक नागर सांसद हैं (निजी सचिव श्री सी॰ एल॰ मौर्य)
भारतीय फिल्म जगत के जाने माने निर्माता, निर्देशक, संगीतकार विशाल भारद्वाज का गृहजिला भी बिजनौर ही है! सन 1817 से 1824 तक जिले का मुख्यालय नगीना शहर था।
इतिहास
बिजनौर जनपद के प्राचीन इतिहास को स्पष्ट करने के लिए अधिक प्रमाणों का अभाव है। लेकिन सबसे पहले बिजनोर का संदर्भ रामायण काल में आता है । वाल्मीकि रामायण में इस क्षेत्र को प्रलंब तथा उत्तरी कारापथ कहा गया है । भगवान श्रीराम जी के छोटे भाई शेषावतार भगवान लक्ष्मण जी के पुत्रों में एक परम् प्रतापी चन्द्रकेतु को इसी उत्तरापथ का राज्य सौंपा गया था। उत्तरी कारापथ बिजनोर के मैदानों से लेकर श्रीनगर गढ़वाल तक का सम्पूर्ण क्षेत्र प्राचीन काल में लक्ष्मण जी के पुत्रों के अधिकार में रहा था । वैसे तो बिजनोर में क्षत्रिय वर्ण के कई वंश अलग - अलग छोटी बड़ी रियासतों पर अधिकार में रहें हैं जिनमे से अधिकांश 10वीं सताब्दी के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आये थे, लेकिन यह क्षेत्र भगवान लक्ष्मण जी के वंशज तथा कौशल अथवा कौशल्य गोत्र के रघुवंशी राजपूतो का मूल स्थान है । कौशल अथवा कौशल्य गोत्र के रघुवंशी क्षत्रिय आज भी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र के अनेक गाँव तथा कस्बों में रहते हैं । ऐसा माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी भी रघुवंशियों की भगवान लक्ष्मण वाली शाखा के वंशज ही हैं । मध्यकाल तक यहां दारानगर में विदुरकुटी के गंगा तट पर युद्ध प्रदर्शन के रूप में क्षत्रियों का मेला भी लगता था, जिसे अपभ्रंश रूप में छड़ियों का मेला भी कहा जाता है । इस मेले में युद्ध एवं मल्ल युद्ध के प्रदर्शन हेतु देशभर के क्षत्रिय राजा भाग लिया करते थे । बाद में महाभारत तथा महाजनपद काल में भी यह क्षेत्र बहुत प्रसिद्ध रहा है । बुद्धकालीन भारत में भी चीनी यात्री ह्वेनसांग ने छह महीने मतिपुरा (मंडावर) में व्यतीत किए। हर्षवर्धन के बाद राजपूत राजाओं ने इस पर अपना अधिकार किया। पृथ्वीराज और जयचंद की पराजय के बाद भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना हुई। उस समय यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा रहा। तब इसका नाम 'कटेहर क्षेत्र' था। कहा जाता है कि सुल्तान इल्तुतमिश स्वयं साम्राज्य-विरोधियों को दंडित करने के लिए यहाँ आया था। मंडावर में उसके द्वारा बनाई गई मस्ज़िद आज तक भी है। औरंगजेब के शासनकाल में जनपद पर अफ़गानों का अधिकार था। ये अफ़गानिस्तान के 'रोह' कस्बे से संबंधित थे अत: ये अफ़गान रोहेले कहलाए और उनका शासित क्षेत्र रुहेलखंड कहलाया। नजीबुद्दौला प्रसिद्ध रोहेला शासक था, जिसने 'पत्थरगढ़ का किला' को अपनी राजधानी बनाया। बाद में इसके आसपास की आबादी इसी शासक के नाम पर नजीबाबाद कहलाई। इस क्षेत्र में कई राजपूत रियासतें भी रही जिसमें हल्दौर, राजा का ताजपुर, शेरकोट आदि प्रमुख थी वहीं साहनपुर जाट रियासत थी। रोहेलों से यह क्षेत्र अवध के नवाब के पास आया, जिसे सन् 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ले लिया। भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम में जनपद ने अविस्मरणीय योग दिया। आज़ादी की लड़ाई के समय सर सैय्यद अहमद खाँ यहीं पर कार्यरत थे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'तारीक सरकशी-ए-बिजनौर' उस समय के इतिहास पर लिखा गया महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। ग्राम पैजनियां के , चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी (1896-1985) के माध्यम से, उनके यहां ,प्रसिद्ध क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद, पं॰ रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह खाँ, ठाकुर रोशन सिंह ने पैजनिया में शरण लेकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रान्ति की ज्वाला को जलाये रखा। चौधरी चरण सिंह के साथ शिक्षा ग्रहण करने वाले बाबू लाखन सिंह ढाका ने आजादी की लड़ाई में अपनी आखिरी साँस तक लगा दी l जन्म माहेश्वरी-जट नामक एक गांव में हुआ था।सुंगरपुर बेहडा के अमीर सिंह बाबू जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए नेता जी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में हिस्सा लिया तथा देश की आजादी में अपना योगदान दिया।
भूगोल तथा जलवायु
बिजनौर का भौगोलिक क्षेत्रफल ६५६१ वर्ग कि॰मी॰ है। उत्तर से दक्षिण इसकी लंबाई लगभग ९९.२ किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम चौड़ाई ८९.६ किलोमीटर है। संपूर्ण जिला 5 तहसीलों में बँटा हुआ है-चाँदपुर बिजनोर,नगीना,धामपुर,नजीबाबाद` तथा चांदपुर के पास में एक महाभारत काल से झारखंडी मंदिर हे जहा पर शिव मंदिर स्थित हे और प्राचीन मंदिर हे
- पर्वतीय भाग : उत्तरी भाग पहाड़ी है तथा भूमि पथरीली है।
- तराई का भाग : पर्वतीय भाग के दक्षिण में पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ वन- भाग तराई के नाम से जाना जाता है। यह पहाड़ की तलहटी भी कहलाता है।
- खादर का भाग : गंगा तथा रामगंगा आदि बड़ी-बड़ी नदियों का तटीय भाग 'खादर' कहलाता है। यह आर्द्र भाग है।
- बाँगर भाग : यह जनपद का चौरस या खुला मैदानी भाग है, इसे बाँगर भी कहते हैं। इसमें गेंहूँ, चावल, गन्ना, कपास की अच्छी खेती होती है।
- भूड़ भाग : जनपद का दक्षिणी भाग रेतीला है। इसमें भूड़ और सवाई भूड़ दो प्रकार की मिट्टी पाई जाती है।
यहाँ की जलवायु मानसूनी और स्वास्थ्यप्रद है। वर्षा, शीत तथा ग्रीष्म तीन ऋतुएँ होती हैं।
यातायात और परिवहन
गंगा नदी के समीप स्थित बिजनौर सड़क और रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है।
कृषि और खनिज
बिजनौर में कृषि प्रमुख है। यहाँ पर रबी, ख़रीफ़, ज़ायद आदि की प्रमुख फ़सलें होती हैं, जिनमें गन्ना, गेहूँ, चावल, मूँगफली की मुख्य उपज होती हैं।
संस्कृति
बिजनौर जनपद में हिंदू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि धर्मावलंबी रहते हैं। हिंदुओं में रवां राजपूत, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अनेक जाति-उपजातियाँ हैं। प्रमुख रूप से भुइयार (हिन्दु जुलाहा), ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गूजर, अहीर, त्यागी, रवा राजपूत, बनिया (वैश्य), चमार, कायस्थ, खत्री आदि उपजातियाँ हैं। कार्य एवं व्यवसाय के आधार पर भी अनेक उपजातियों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। भुइयार (हिन्दु जुलाहा), बढ़ई, कुम्हार, लुहार, सुनार, रंगरेज (छीपी), तेली, गडरिया, धींवर, नाई, धोबी, माली, बागवान, भड़भूजा, खुमरा, धुना, सिंगाडि़या, कंजर, मनिहार आदि प्रमुख हैं। मुसलमानों में शेख, सैयद, मुग़ल, पठान, अंसारी, सक्का, रांघड़, कज्जाड़, तुर्क (झोझा) आदि उपजातियाँ हैं। सिक्खों व जैनियों में भी इसी प्रकार की उपजातियाँ हैं। भारत-विभाजन से अनेक पंजाबी, पाकिस्तानी और बंगाली भी यहाँ आ बसे हैं। संपूर्ण क्षेत्र में हिंदू तथा मुसलमानों का बाहुल्य है। यहाँ की भाषा हिन्दी है किंतु बोलचाल में हिन्दी की अनेक बोलियों के शब्द मिलते हैं।
प्रसिद्ध व्यक्ति - बिजनौर जनपद का साहित्यिक इतिहास बहुत संपन्न है। साहित्य के क्षेत्र में जनपद को मान्यता प्रदान करने में जिन साहित्यकारों ने मुख्य भूमिका निभाई है, उनमें प्रमुख हैं संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, समीक्षक एवं संस्मरण लेखक पं. पद्मसिंह शर्मा, ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार, कुर्रत उल ऐन हैदर, निश्तर ख़ानक़ाही, रामगोपाल विद्यालंकार, हरिदत्त शर्मा, फतहचंद शर्मा आराधक, पत्रकार बाबूसिंह चौहान,राजेंद्र पाल सिंह कश्यप संपादक उत्तर भारत टाइम्स, शायर चंद्रप्रकाश जौहर, महेंंद्र अश्क, व्यंग्यकार रवींद्रनाथ त्यागी, साहित्यकार डॉ भोलानाथ त्यागी तथा डॉ उषा त्यागी, प्रकाशक, संपादक, कहानीकार, रूपककार अमन कुमार त्यागी, कथाकार एवं पत्रकार डॉ॰ महावीर अधिकारी, डॉ॰ गिरिराजशरण अग्रवाल, शायर व लेखक रिफत सरोश,अख्तर उल इमान,दबिस्तान ए बिजनौर के लेखक शेख़ नगीनवी,अब्दुल रहमान बिजनौरी,कौसर चांदपुरी, खालिद अल्वी, स्थानीय इतिहास तथा तकनीकी लेखन में ग्राम फीना के हेमन्त कुमार, इनके अतिरिक्त फ़िल्म निर्माता प्रकाश मेहरा, राजनीतिज्ञ चरन सिंह, अभिनेता विशाल भारद्वाज, फुटबॉल खिलाड़ी हरपाल सिंह और स्वतंत्रता सेनानी बख़्तखान रुहेला मुशी सिंह Dhali Aheer और DMRC के MD मंगू सिंह का जन्म भी बिजनौर में हुआ था।
साहित्य के क्षेत्र में पुरस्कार -बिजनौर के गाँव फीना के इंजीनियर हेमंत कुमार द्वारा लिखी गयी पुस्तक 'विविध प्रकार के भवनों का परिचय एवं नक़्शे' को उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा 2019 का सम्पूर्णानन्द पुरस्कार दिया गया। इस पुरस्कार में सम्मान पत्र और 75 हजार की धनराशि दी गयी[१][२][३]। प्रविधि /तकनीकी वर्ग में यह राज्य स्तर का सबसे बड़ा पुरस्कार है। हेमन्त कुमार शोध, नवाचार, हरियाली विस्तार और स्थानीय इतिहास लेखन में भी कार्य कर रहे हैं। आपके द्वारा किये गये controlled water and air dispenser for indoor and outdoor plants नामक आविष्कार को भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है।
शिक्षा संस्थान - प्रमुख स्कूल व इंटर कालेज हैं- M.D.International School,मॉडर्न इरा पब्लिक स्कूल,ए.एन.इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल, के.पी.एस. बालिका इंटर कॉलेज, गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, बिजनौर इंटर कालेज, राजा ज्वाला प्रसाद आर्य इंटर कॉलेज और सेंट मेरी कॉन्वेंट। इसके अतिरिक्त दो स्नातकोत्तर महाविद्यालय वर्धमान कॉलेज और आर.बी.डी. स्नातकोत्तर कन्या विद्यालय, एक इंजीनियरिंग कॉलेज वीरा इंजीनियरिंग कॉलेज, एक फ़ारमेसी कॉलेज विवेक कॉलेज ऑफ़ टेकनिकल एजुकेशन, दो कानून विद्यालय विवेक कॉलेज ऑफ़ लॉ और कृष्णा कॉलेज ऑफ़ लॉ, Vivek College of Ayurveda, श्रीराम गंभीर कस्तूरी लाल अब्बी ग्रुप ऑफ़ कॉलेज यहॉ की प्रमुख शिक्षा संस्थाएँ हैं।
अर्थ व्यवस्था
जिले में कृषि उद्योग प्रमुख उद्योग है। ३३ प्रतिशत जनसंख्या इसी में कार्यरत है। रबी, ख़रीफ़, ज़ायद आदि प्रमुख फ़सलें होती हैं, जिनमें गन्ना, गेहूँ, चावल, मूँगफली की मुख्य उपज हैं। २५ प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं। इस प्रकार ५८ प्रतिशत जनसंख्या कृषि उद्योग से संबंधित है। अन्य कर्मकार ३७ प्रतिशत तथा पारिवारिक उद्योग में ५ प्रतिशत हैं। जिले का उत्तरी क्षेत्र सघन वनों से आच्छादित होने के कारण काष्ठ उद्योग विकसित अवस्था में मिलता है। नजीबाबाद, नहटौर, माहेश्वरी, धामपुर आदि स्थानों पर काष्ठ मंडिया हैं। करघा उद्योग यहाँ का तीसरा महत्त्वपूर्ण ग्रामोद्योग है। हथकरघे से बुने हुए कपड़े नहटौर के बाज़ार में बिकते हैं। यहाँ के बने कपड़े अन्यत्र भी निर्यात किए जाते हैं। पशुओं की अधिकता के कारण चर्म उद्योग में भी बहुत से लोग लगे हुए हैं। चमड़े एवं उससे निर्मित वस्तुओं के क्रय-विक्रय से अनेक व्यक्ति जीविकोपार्जन करते हैं। बिजनौर क्षेत्र की ११४८ हेक्टेयर भूमि स्थायी चरागाह के लिए है। इसलिए पशुपालन-उद्योग विकसित अवस्था में है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग जिसे कुम्हारगीरी का व्यवसाय भी कहते हैं, यहाँ एक प्रचलित व्यवसाय है।। लगभग सभी ग्राम-नगरों में मिट्टी के बर्तन बनानेवाले रहते हैं। अनेक लोग तेल उद्योग में लगे हुए हैं। तेली उपजाति के व्यक्तियों के अतिरिक्त भी इस उद्योग को करनेवाले पाए जाते हैं। नगरों में एक्सपेलर तथा ग्रामों में परंपरागत तेल कोल्हू से तेल निकालने का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त बाग़वानी जिसमें माली, कुँजड़े और बाग़बान (सानी) आदि उपजातियों के लोग कार्यरत हैं तथा मत्स्योद्योग अर्थात् मछली पकड़ने का कार्य-व्यवसाय करनेवाले हैं जिसमें धींवर तुरकिये आदि उपजातियों के लोग हैं। इन्हें मछियारा तथा माहेगीर भी कहते हैं। अन्य प्रमुख लघु उद्योग हैं- बढ़ईगीरी, लुहारगीरी, सुनारगीरी, रँगाई-छपाई, राजगीरी, मल्लाहगीरी, ठठेरे का व्यवसाय, वस्त्र सिलाई का काम, हलवाईगीरी, दुकानदारी, बाँस की लकड़ी से संबंधित उद्योग, गुड़-खाँडसारी उद्योग, बटाई, बुनाई का काम, वनौषधि-संग्रह आदि।
दर्शनीय स्थल
कण्व आश्रम बिजनौर जनपद में अनेक ऐसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल हैं जो इस जनपद की महत्ता को प्रतिपादित करते हैं। इनमें महत्त्वपूर्ण स्थल है 'कण्व आश्रम'। अर्वाचीन काल में यह क्षेत्र वनों से आच्छादित था। मालिनी और गंगा के संधिस्थल पर रावली के समीप कण्व मुनि का आश्रम था, जहाँ शिकार के लिए आए राजा दुष्यंत ने शकंुतला के साथ गांधर्व विवाह किया था। रावली के पास अब भी कण्व आश्रम के स्मृति-चिह्न शेष हैं।
विदुरकुटी महाभारत काल का एक प्रसिद्ध स्थल है 'विदुरकुटी'। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण जब हस्तिनापुर में कौरवों को समझाने-बुझाने में असफल रहे थे तो वे कौरवों के छप्पन भोगों को ठुकराकर गंगा पार करके महात्मा विदुर के आश्रम में आए थे और उन्होंने यहाँ बथुए का साग खाया था। आज भी मंदिर के समीप बथुए का साग हर ऋतु में उपलब्ध हो जाता है।
दारानगर महाभारत का युद्ध आरंभ होनेवाला था, तभी कौरव और पांडवों के सेनापतियों ने महात्मा विदुर से प्रार्थना की कि वे उनकी पत्नियों और बच्चों को अपने आश्रम में शरण प्रदान करें। अपने आश्रम में स्थान के अभाव के कारण विदुर जी ने अपने आश्रम के निकट उन सबके लिए आवास की व्यवस्था की। आज यह स्थल 'दारानगर' के नाम से जाना जाता है। संभवत: महिलाओं की बस्ती होने के कारण इसका नाम दारानगर पड़ गया।
सेंदवार चाँदपुर के निकट स्थित गाँव 'सेंदवार' का संबंध भी महाभारतकाल से जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ है सेना का द्वार। जनश्रुति है कि महाभारत के समय पांडवों ने अपनी छावनी यही बनाई थी। गाँव में इस समय भी द्रोणाचार्य का मंदिर विद्यमान है।
पारसनाथ का किला बढ़ापुर से लगभग चार किलोमीटर पूर्व में लगभग पच्चीस एकड़ क्षेत्र में 'पारसनाथ का किला' के खंडहर विद्यमान हैं। टीलों पर उगे वृक्षों और झाड़ों के बीच आज भी सुंदर नक़्क़ाशीदार शिलाएँ उपलब्ध होती हैं। इस स्थान को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसके चारों ओर द्वार रहे होंगे। चारो ओर बनी हुई खाई कुछ स्थानों पर अब भी दिखाई देती है।
आजमपुर की पाठशाला चाँदपुर के पास बास्टा से लगभग चार किलोमीटर दूर आजमपुर गाँव में अकबर के नवरत्नों में से दो अबुल फ़जल और फैज़ी का जन्म हुआ था। उन्होंने इसी गाँव की पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की थी। अबुल फ़जल और फैज़ी की बुद्धिमत्ता के कारण लोग आज भी पाठशाला के भवन की मिट्टी को अपने साथ ले जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस स्कूल की मिट्टी चाटने से मंदबुद्धि बालक भी बुद्धिमान हो जाते हैं।
मयूर ध्वज दुर्ग चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार जनपद में बौद्ध धर्म का भी प्रभाव था। इसका प्रमाण 'मयूर ध्वज दुर्ग' की खुदाई से मिला है। ये दुर्ग भगवान कृष्ण के समकालीन सम्राट मयूर ध्वज ने नजीबाबाद तहसील के अंतर्गत जाफरा गाँव के पास बनवाया था। गढ़वाल विश्वविद्यालय के पुरातत्त्व विभाग ने भी इस दुर्ग की खुदाई की थी।
फुलसन्दा आश्रम- "एक तू सच्चा तेरा नाम सच्चा" मंत्र के गुरु जी का जन्म जिला बिजनौर में हुआ जिनका आश्रम बिजनौर के फुलसन्दा गांव में है
हनुमान धाम- "बिजनोर शहर के पास स्थित किरतपुर शहर में हनुमान जी की ९० फुट ऊँची प्रतिमा है साथ में अन्य देवी देवताओ के मंदिर भी है जिनकी आस पास के छेत्रो में काफी श्रद्धा है।
सन्दर्भ
बिजनोर का ग्राम पंचायत केलनपुर राजनीती के क्षेत्र में बहुत महशूर माना जाता है यहाँ पर हर 5 बर्षो के उपरांत दो प्रधान पद के उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं
संदर्भ ग्रंथ
- बिजनौर गजेटियर, पृ. 179, वर्धमान पत्रिका 1995-96 में प्रकाशित डॉ॰ शिवसेवक अवस्थी का लेख।
- बिजनौर जनपद-ऐतिहासिक विवरण-डॉ॰ चंद्रपाल शर्मा 'मधु' का लेख।
- आगरा विश्वविद्यालय, शोध-पत्र जुलाई 1972, डॉ॰ बीना त्यागी।
- शोध-पत्र जनवरी 1973, डॉ॰ बीना त्यागी
- बिजनौर गजेटियर, पृ. 183
- डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा, मध्यदेश, पृ. 16 प्रथम संस्करण
- वर्धमान पत्रिका, संपादक डा गिरिराजशरण अग्रवाल, 1975-76, पृ. 37
- बिजनौर जनपद-ऐतिहासिक विवरण, डॉ॰ चंद्रपाल शर्मा 'मधु' का लेख
- भारत का भाषा सर्वेक्षण भाग-9, सर जार्ज अब्राहम गि्रर्यसन, पृ. 145
- डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा, हिंदी भाषा का इतिहास, 1949, पृ. 60
- डॉ॰ अंबाप्रसाद 'सुमन', हिंदी भाषा : अतीत और वर्तमान, पृ. 1
- डॉ॰ अंबाप्रसाद 'सुमन', हिंदी भाषा, पृ. 2
- हिंदी भाषा का उद्भव और विकास, पृ. 179
- वही, पृ. 28
- नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग 18, सन् 1944, पृ. 283
- डॉ॰ धीरंेद्र वर्मा, हिंदी भाषा का इतिहास 1949, पृ. 60
- हिंदी शब्दानुशासन (सं. 2014, वि.), पृ. 15
- ग्रामीण हिंदी बोलियाँ (सन् 1966), पृ. 40-41
- छोटे-छोटे सवाल, श्री दुष्यंत कुमार, पृ. 15
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