बाल-विहीनता सिद्धांत

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खगोलभौतिकी में बाल-विहीनता सिद्धांत (no-hair theorem) कहता है कि कालेछिद्रों के सम्बन्ध में [भौतिकी]] के आइनस्टाइन-मक्सवेल समीकरणों को सुलझाने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि किसी भी कालेछिद्र के केवल तीन ही भौतिक गुण उसके बाहर के ब्रह्माण्ड में देखे व परखे जा सकते हैं: उसका द्रव्यमान, उसका विद्युत आवेश (चार्ज) और उसका कोणीय संवेग। आइनस्टाइन-मक्सवेल समीकरणों का प्रयोग सामान्य आपेक्षिकता में गुरुत्वाकर्षणविद्युत्चुम्बकत्व प्रभावों को ज्ञात करने के लिए करा जाता है। बाल-विहीनता सिद्धांत का दावा है कि इन तीन गुणों (द्रव्यमान, आवेश और कोणीय संवेग) के अलावा कालेछिद्र में सम्मिलित व उसमें गिर जाने वाले पदार्थ के अन्य सभी भौतिक गुण उसके घटना क्षितिज के पीछे छुप जाते हैं और उनकी जानकारी कालेछिद्र के बाहर स्थिति किसी भी निरीक्षक या निरीक्षण यंत्र तक कभी नहीं पहुँच सकती। इस सिद्धांत के अनुसार अगर दस कालेछिद्र हों और वे बिलकुल ही अलग-अलग परिस्थितिओं में अलग-अलग प्रकार के पदार्थों से बने हों, तो भी अगर उनके यह तीन गुण (द्रव्यमान, आवेश और कोणीय संवेग) एक जैसे हैं तो, जहाँ तक हमारे ब्रह्माण्ड में भौतिक वास्तविकता का प्रश्न है, यह दस वस्तुएँ एक-दूसरे से भौतिक गुणों में अभिन्न हैं।[१][२]

नामोत्पत्ति

अनौपचारिक अंग्रेज़ी कठबोली में किसी परिस्थिति के "बाल" (hair) उसके जटिल आयाम (उलझी हुई कठिनाईयाँ) होते हैं। जब यह लगने लगा कि कालेछिद्रों में इन तीन गुणों के अतिरिक्त कुछ भी ज्ञात करने को नहीं है, तो भौतिकशास्त्री जॉन व्हीलर ने इस बात को प्रकट करते हुए कहा कि "कालेछिद्रों के बाल नहीं होते।" इस से इस अवधारणा का नाम "बाल-विहीन सिद्धांत" से प्रसिद्ध हो गया। बाद में दिए एक साक्षात्कार में व्हीलर ने कहा कि इस नाम का पहला प्रयोग वास्तव में सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री जेकब बेकेनस्टाइन ने किया था।[३]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ