पक्षी इन्फ्लूएंजा
बर्ड फ़्लू या पक्षी इन्फ्लूएंजा या पक्षी फ़्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) एक विषाणु जनित रोग है। यह विषाणु जिसे इन्फ्लूएंजा ए या टाइप ए विषाणु कहते हैं, आम तौर मे पक्षियों में पाया जाता है, लेकिन कभी कभी यह मानव सहित अन्य कई स्तनधारिओं को भी संक्रमित कर सकता है, जब यह मानव को संक्रमित करता है तो इसे इन्फ्लूएंजा (श्लेष्मिक ज्वर) कहा जाता है।
प्रकार
इन्फ्लूएंजा ए के कई प्रकार होते हैं जिन्हे सबसे पहले 1878 मे इटली में एक पक्षी में पाया गया था। इस बीमारी को अलग से पहचानने के लिए कोई खास लक्षण नहीं होते हैं और इसके अधिकतर प्रकारो मे कई कमजोर लक्षण जैसे सांस लेने मे कठिनाई, जो आम जुकाम का भी एक लक्षण है, पाये जाते हैं। कुछ प्रकार के इन्फ्लूएंजा ए का संक्रमण पक्षियों को और कुछ का मनुष्य और अन्य स्तनधारियों को मारने मे सक्षम होता है। 1918/1919 मे फैला इन्फ्लूएंजा जिसे स्पैनिश फ़्लू कहा गया था, लगभग 5 से 10 करोड़ लोगों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी था।[१] एक और प्रकार, जो एशियाई फ़्लू के नाम से जाना जाता है, 1957 में लगभग 10 लाख लोगों की मौत का जिम्मेदार बना और दूसरे एक हांगकांग फ़्लू ने भी 1968 में दस लाख लोगों को मार की नींद सुला दिया।
इन्फ्लूएंजा ए का एक उपप्रकार H5N1 (एच5एन1) ने 1997 में हांगकांग में छह लोगों को मार डाला, पर 2003 के बाद से चीन में इसका प्रकोप नहीं देखा गया। 2005 के मध्य तक, यह मुख्य रूप से दक्षिण पूर्वी एशिया में व्याप्त था, लेकिन तब से यह अफ्रीका और यूरोप के कुछ हिस्सों में फैल गया है। यह अब तक लाखों पक्षियों को मार चुका है और इसके प्रसार को सीमित करने के लिए करोड़ों अन्य पक्षियों को भी मारा जा चुका है। अब तक यह मुख्यत: एक पक्षी रोग है और बहुत कम इंसान ही इससे संक्रमित हुये हैं। H5N1 के बारे में यह चिंता का विषय यह है कि यह लगातार बहुत तेज गति से फैल रहा है और यह कभी भी एक महामारी का रूप धारण कर लाखों लोगों की जान ले सकता है। दुनिया भर की सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रही हैं। यह खर्च मुख्यत: H5N1 के अध्ययन, टीकों (वैक्सीनों) की खोज, फ़्लू प्रतिरोधी दवाओं का उत्पादन व भण्डारण, महामारी से निपटने के उपायों का अभ्यास आयोजित करना के साथ और भी कई अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियां शामिल है।
भारत मे
भारत मे यह विषाणु मुख्यत: बांग्लादेश से सटे असम और पश्चिम बंगाल मे पाया जाता है और हर 6 महीने के अंतराल पर इसके पुन: पाये जाने की खबर आती रहती है। अपनी लाख कोशिशों के बाद भी राज्य सरकारे इस पर काबू पाने मे असमर्थ हैं। वैज्ञानिक इसका मुख्य कारण इलाके मे स्वच्छ्ता की भयंकर कमी को मानते हैं।