सिग्मंड फ्रायड

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सिग्मंड फ्रायड
मैक्स हैलबर्स्टाट द्वारा, सिगमंड फ्रायड, साँचा:circa 1921[१]
मैक्स हैलबर्स्टाट द्वारा, सिगमंड फ्रायड, साँचा:circa 1921[१]
जन्म सिगिस्मंड श्लोमो फ्रायड
साँचा:birth date
माहरेन में फ्रीबर्ग, मोराविया, ऑस्ट्रियाई साम्राज्य
(अब प्रिबोर, चेक गणराज्य)
मृत्यु साँचा:death date and age
हैम्पस्टीड, लंदन, यूनाइटेड किंगडम
क्षेत्र तंत्रिकाविज्ञान, मनोचिकित्सा, मनोविश्लेषण
संस्थान विएना विश्वविद्यालय
शिक्षा विएना विश्वविद्यालय (MD)
अकादमी सलाहकार
प्रसिद्धि मनोविश्लेषण
प्रभाव साँचा:hlist
प्रभावित
उल्लेखनीय सम्मान

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सिग्मंड फ्रायड ( 6 मई 1856 -- 23 सितम्बर 1939 ) आस्ट्रिया के तंत्रिकाविज्ञानी (neurologist) तथा मनोविश्लेषण के संस्थापक थे।

जीवन परिचय

सिग्मुण्ड फ्रायड का जन्म आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के फ्रीबर्ग (Freiberg) शहर में हुआ। उनके माता-पिता यहूदी थे। फ्रायड के पिता ऊन के व्यापारी थे और माता इनके पिता की तीसरी पत्नी थीं। फ्रायड अपने सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। 3 साल की उम्र में फ्रायड के पिता लाइपत्सिग (Leipzig) आ गए और उसके एक साल बाद वियना चले गए, जहाँ वे करीब 80 सालों तक रहे। फ्रायड ने वियना विश्वविद्यालय से १८८१ में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन किया। सन् 1938 में हिटलर के नाजी विद्रोह के कारण फ्रायड भागकर लन्दन चले गए। लन्दन में ही सन् 1939 के सितम्बर महीने में उनकी मृत्‍यु हो गई।

उन्नीसवीं सदी के आरम्भ के कुछ समय पहले मनोविज्ञान एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित हुआ। इससे पहले मनोविज्ञान को दर्शन के अंतर्गत पढ़ा जाता था। उस वक्त मनोविज्ञान का उद्देश्य वयस्क मानव की चेतना का विश्लेषण और अध्ययन करना था। फ्रायड ने इस परम्परागत "चेतना के मनोविज्ञान " का विरोध किया और मनोविश्लेषण सम्बन्धी कई नई संकल्पनाओं का प्रतिपादन किया जिसपर हमारा आधुनिक मनोविज्ञान टिका हुआ है।

फ्रायड के प्रारम्भिक जीवन को देखने पर हम पाते हैं कि आरम्भ से ही उनका झुकाव तंत्रिका विज्ञान की ओर था। सन् 1873 से 1881 के बीच उनका संपर्क उस समय के मशहूर तंत्रिका विज्ञानी अर्नस्ट ब्रुकी (Ernst Brucke) से हुआ। फ्रायड, अर्नस्ट ब्रुकी से प्रभावित हुए और उनकी प्रयोगशाला में कार्य प्रारम्भ किया। शरीर विज्ञान और तंत्रिका विज्ञान में कई शोध पत्र प्रकाशित करने के बाद फ्रायड अर्नस्ट ब्रुकी से अलग हुए और उन्होंने अपना निजी व्यवसाय चिकित्सक के रूप में प्रारम्भ किया। सन् 1881 में फ्रायड ने वियना विश्वविद्यालय से एम.डी (M.D) की उपाधि प्राप्त की। इससे ठीक थोड़े से वक्त पहले फ्रायड का संपर्क जोसेफ ब्रियुवर (Joseph Breuer) से हुआ। फ्रायड ने जोसेफ ब्रियुवर के साथ शोधपत्र "स्टडीज इन हिस्टीरिया" लिखा। "स्टडीज इन हिस्टीरिया" एक रोगी के विश्लेषण पर आधारित था, जिसका काल्पनिक नाम "अन्ना ओ" था। यह माना जाता है कि इसी शोधपत्र में मनोविश्लेषणवाद के बीज छिपे हुए थे। यह शोध बहुत मशहूर हुआ। सन् 1896 में ब्रियुवर तथा फ्रायड में पेशेवर असहमति हुई और वे अलग हो गये।

सन् 1900 फ्रायड के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष था। इसी वर्ष उनकी बहुचर्चित पुस्तक "इंटरप्रटेशन ऑफ़ ड्रीम" का प्रकाशन हुआ, जो उनके और उनके रोगियों के स्वप्‍नों के विश्लेषण के आधार पर लिखी गई थी। इसमें उन्होंने बताया कि सपने हमारी अतृप्त इच्छाओं का प्रतिबिम्ब होते हैं। इस पुस्तक ने उन्हें प्रसिद्ध बना दिया। कई समकालीन बुद्धिजीवी और मनोविज्ञानी उनकी ओर आकर्षित हुए। इनमें कार्ल जुंग, अल्फ्रेड एडलर, ओटो रैंक और सैनडोर फ्रैन्क्जी के नाम प्रमुख है। इन सभी व्यक्तियों से फ्रायड का अच्छा संपर्क था, पर बाद में मतभिन्नता हुई और लोग उनसे अलग होते गये।

सन् 1909 में क्लार्क विश्व विद्यालय के मशहूर मनोविज्ञानी जी.एस. हाल द्वारा फ्रायड को मनोविश्लेषण पर व्याख्यान देने का निमंत्रण प्राप्त हुआ, जो उनकी प्रसिद्धि में मील का पत्थर साबित हुआ. इसमें फ्रायड के अलावा युंग, व्रील, जोन्स, फेरेन्कजी तथा कई अन्य मशहूर मनोविज्ञानी उपस्थित थे। यहॉं से फ्रायड जल्द ही वापस लौट गए, क्योंकि अमेरिका का वातावरण उन्हें अच्छा नही लगा. यहाँ फ्रायड को पेट में गड़बड़ी की शिकायत रहने लगी थी, जिसका कारण उन्होंने विविध अमेरिकी खाद्य सामग्री को बताया।

जुंग और एडलर, फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद के कई बिन्दुओं से सहमत थे। परन्तु फ्रायड द्वारा सेक्स पर अत्‍यधिक बल दिए जाने को उन्होंने अस्वीकृत कर दिया। इससे अलग-अलग समय में वे दोनों भी इनसे अलग हो गए। जुंग ने मनोविश्लेषण में सांस्कृतिक विरासत के दखल पर और एडलर ने सामाजिकता पर बल दिया। यद्यपि यह सही है की पेशेवर सहकर्मी उनसे एक-एक कर अलग हो रहे थे फिर भी उनकी प्रसिद्धि को इससे कोई फर्क नही पड़ा। सन् 1923 में फ्रायड के मुह में कैंसर का पता चला जिसका कारण उनका जरुरत से ज्यादा सिगार पीना बताया गया। सन् 1933 में हिटलर ने जर्मनी की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। उसने साफ कहा कि फ्रायड वाद के लिए उसकी सत्ता में कोई जगह नही है। हिटलर ने फ्रायड की सारी पुस्तकों और हस्तलिपियों को जला दिया। वह शायद इससे भी अधिक बुरा व्यवहार करता लेकिन राजनीतिक दबाव और तत्कालीन अमेरिकन राजदूत के हस्‍तक्षेप के बाद हिटलर ने फ्रायड से जबर्दस्‍ती एक कागज पर हस्ताक्षर करवाया कि सैनिकों ने उनके साथ कोई बुरा व्यवहार नही किया है। इसके बाद उन्हें वियना छोड़कर लन्दन जाने का आदेश दिया। लन्दन में उनका भव्य स्वागत हुआ। उन्हें तुरंत ही रायल सोसाइटी का सदस्य बना लिया गया। यहाँ उन्होंने अपनी अंतिम पुस्तक "मोजेज एंड मोनेथिज्म" का प्रकाशन करवाया।

चित्र:Théorie de Freud.svg
फ्रॉइड के अनुसार मन के तीन 'छिपे हुए' तत्व ; हिमखण्ड, मन के तीन भागों को इंगित करता है जो जो चेतन में नहीं आ पाते

फ्रायड ने मन या व्यक्तित्व के स्वरुप को गत्यात्मक माना है। उनके अनुसार व्यक्तित्व हमारे मस्तिष्क एवं शरीर की क्रियाओं का नाम है। फ्रायड के मानसिक तत्व होते हैं जो चेतन में नहीं आ पाते या सम्मोहन अथवा चेतना लोप की स्थिति में चेतन में आते हैं। इसमें बाल्यकाल की इच्छाएं, लैंगिक इच्छाएं और मानसिक संघर्ष आदि से सम्बंधित वे इच्छाएं होती हैं, जिनका ज्ञान स्वयं व्यक्ति को भी नहीं होता। इन्हें सामान्यतः व्यक्ति अपने प्रतिदिन की जिंदगी में पूरा नही कर पाता और ये विकृत रूप धारण करके या तो सपनों के रूप में या फिर उन्माद के दौरे के रूप में व्यक्ति के सामने उपस्थित होती हैं। फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व का गत्यात्मक पक्ष तीन अवस्थाओं द्वारा निर्मित होता है -

  • १. इदं (Id )
  • २. अहम् (ego)
  • ३. पराअहम् (super ego)

इदं की उत्पति मनुष्य के जन्म के साथ ही हो जाती है। फ्रायड इसे व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मानता था। इसकी विषयवस्तु वे इच्छाएं हैं जो लिबिडो (यौन मूल प्रवृति की ऊर्जा) से सम्बंधित हैं और तात्कालिक संतुष्टि चाहती हैं। ऊर्जा की वृद्धि इदं नहीं सहन कर पाता और अगर इसे सही ढंग से अभिव्यक्ति नही मिलती तब यह विकृत स्वरुप धारण करके व्यक्ति को प्रभावित करता है। अहम् (ego) फ्रायड के लिए स्व-चेतना की तरह थी जिसे उसने मानव के व्यवहार का द्वितीयक नियामक बताया। यह इदं का संगठित भाग है, इसका उद्देश्य इदं के लक्ष्यों को आगे बढ़ाना है। परा अहम् एक प्रकार का व्यवहार प्रतिमानक होता है, जिससे नैतिक व्यवहार नियोजित होते हैं। इसका विकास अपेक्षाकृत देर से होता है। फ्रायड के व्यक्तित्व सम्बन्धी विचारों को मनोलैंगिक विकास का सिद्धांत भी कहा जाता है। इसे फ्रायड ने 5 अवस्थाओं में बांटा है -

  • १. मौखिक अवस्था (oral stage) - जन्म से एक वर्ष
  • २. गुदा अवस्था (Anal stage ) - २ से ३ वर्ष
  • ३. लैंगिक अवस्था (Phallic stage) - ४ से ५ वर्ष
  • ४. सुषुप्ता वस्था (Latency stage) - ६ से १२ वर्ष
  • ५ जननिक अवस्था (Gental stage ) - १२ से २० वर्ष

इन्ही के आधार पर उसने विवादास्पद इलेक्ट्रा और ओडिपस काम्प्लेक्स की अवधारणा दी जिसके अनुसार शिशु की लैंगिक शक्ति प्रारंभ में खुद के लिए प्रभावी होती है, जो धीरे -धीरे दूसरे व्यक्तिओं की ओर उन्मुख होती है। इसी कारण पुत्र माता की ओर तथा पुत्री पिता की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। इसके कारण लड़कों में माता के प्रति प्रेम और पिता के प्रति प्रतिद्वंदिता उत्पन्न होती है, जिसे फ्रायड द्वारा ओडिपस काम्प्लेक्स का नाम दिया। यह बहुत विवादास्पद और चर्चित अवधारणा रही है। फ्रायड इन संकल्पनाओं की सत्यता साबित करने के लिए आंकड़े नही दे पाए. उन पर आलोचकों ने यह आरोप लगाया की उन्होंने अपने अनुभवों को इन प्रेक्षणों के साथ मिश्रित किया है और जो कुछ भी उनके रोगियों ने कहा उस पर उन्होंने आँख बंद कर विश्वास किया है। फ्रायड पर यह भी आरोप लगे कि वह मनोविज्ञान में जरुरत से अधिक कल्पनाशीलता और मिथकीय ग्रंथों का घालमेल कर रहे हैं, यौन आवश्यकताओं को जरुरत से अधिक स्थान दे रहे हैं।

फ्रायड के कार्य और उन पर आधारित उनकी मान्यताओं के देखने पर हम यह पाते हैं कि फ्रायड ने मानव की पाशविक प्रवृति पर जरुरत से अधिक बल डाला था। उन्होंने यह स्पष्‍ट किया कि निम्नतर पशुओं के बहुत सारे गुण और विशेषताएं मनुष्यों में भी दिखाई देती हैं। उनके द्वारा परिभाषित मूल प्रवृति की संकल्पना भी इसके अंतर्गत आती है।

फ्रायड का यह मत था कि वयस्क व्यक्ति के स्वभाव में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं लाया जा सकता क्योंकि उसके व्यक्तित्व की नींव बचपन में ही पड़ जाती है, जिसे किसी भी तरीके से बदला नही जा सकता. हालाँकि बाद के शोधों से यह साबित हो चुका है कि मनुष्य मूलतः भविष्य उन्मुख होता है। एक शैक्षिक (अकादमिक) मनोविज्ञानी के समान फ्रायड के मनोविज्ञान में क्रमबद्धता नहीं दिखाई देती परन्तु उन्होंने मनोविज्ञान को एक नई परिभाषा दी जिसके आधार पर हम आधुनिक मनोविश्लेषानात्मक मनोविज्ञान को खड़ा पाते हैं और तमाम आलोचनाओं के बाद भी असामान्य मनोविज्ञान और नैदानिक मनोविज्ञान में फ्रायड के योगदान को अनदेखा नही किया जा सकाता.

फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोविश्लेषण का संप्रदाय अपनी लोकप्रियता के करण बहुत चर्चित रहा. फ्रायड ने कई पुस्तके लिखीं जिनमें से "इंटर प्रटेशन ऑफ़ ड्रीम्स", "ग्रुप साइकोलोजी एंड द एनेलेसिस ऑफ़ दि इगो ", "टोटेम एंड टैबू " और "सिविलाईजेसन एंड इट्स डिसकानटेंट्स " प्रमुख हैं। 23 सितम्बर 1939 को लन्दन में इनकी मृत्यु हुई।

रचनाएँ

द इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स,"इंटर प्रटेशन ऑफ़ ड्रीम्स", "ग्रुप साइकोलोजी एंड द एनेलेसिस ऑफ़ दि इगो ", "टोटेम एंड टैबू " और "सिविलाईजेसन एंड इट्स डिसकानटेंट्स " " द इंट्रोडक्शन ऑफ साइकॉलजी 1893 "

इन्हें भी देखें

  1. साँचा:cite web
  2. Tansley, A.G. (1941). "Sigmund Freud. 1856–1939". Obituary Notices of Fellows of the Royal Society. 3 (9): 246–75. doi:10.1098/rsbm.1941.0002. JSTOR 768889.