फर्श
फर्श भवन का वह अंग है जो चलने-फिरने के काम आता है। कच्ची मिट्टी के फर्श से लेकर आधुनिक तकनीक से बने बहु-स्तरीय फर्श तक अनेकों प्रकार के फर्श होते हैं। अच्छे फर्श से भवन की शोभा ही नहीं बढ़ती वरन् उसे आसानी से साफ सुथरा रखा जा सकता है। फर्श पत्थर, लकड़ी, बाँस, धातु या कंक्रीट आदि की हो सकती है। प्रायः फर्श के दो भाग होते हैं- नीचे का भाग, जो लोड सहन करने के ध्येय से बनाया जाता है, तथा ऊपरी फर्श जो चलने के लिये अच्छा हो और सुन्दर दिखे। आधुनिक भवनों में फर्श के नीचे ही बिजली के तार, पानी के पाइप आदि बिछाये गये होते हैं।
प्रकार
फर्श कई प्रकार के होते हैं तथा इनके निर्माण के मूल्य में भी बहुत अंतर होता है, जैसे कच्चे फर्श और संगमरमर के फर्श के निर्माणमूल्य में। निम्नलिखित प्रकार के फर्श भारत में अधिकतर उपयोग में आते हैं :
- (१) सीमेंट कंक्रीट के फर्श -- जिनमें सीमेंट टाइल तथा मोज़ैइक के फर्श भी शामिल हैं।
- (२) काचित टाइल (glazed tiles) के फर्श,
- (३) पत्थर के फर्श,
- (४) संगमरमर के फर्श,
- (५) लकड़ी के फर्श, तथा
- (६) ईंट और चूने की गिट्टी के फर्श।
फर्श भूमि से थोड़ी ऊँचाई पर, अर्थात् भवन की कुरसी की ऊँचाई पर, बनाए जाते हैं, जिससे भूमि की नमी से तथा वर्षा में पानी से बचाव हो। कुरसी में मिट्टी की भराई खूब ठोस होनी चाहिए। जिससे बाद में यह मिट्टी बोझ पाकर धँस न जाए, नहीं तो फर्श टूट जाएगा तथा उसमें दरारें पड़ जाएँगी।
सीमेंट कंक्रीट का फर्श
इस प्रकार के फर्श सबसे अधिक प्रचलित हैं तथा सुंदर, चिकने और स्वच्छ होते हैं तथा आसानी से धोए जा सकते हैं। रंगीन सीमेंट तथा काली और सफेद संगमरमर की बजरी डालकर मोज़ोइक या टराज़ो (Mosaic or Terrazo) फर्श बनते हैं। रंग तथा विभिन्न तरह की बजरी के सम्मिश्रण से बड़े सुंदर तथा कई अभिकल्प के फर्श बनाए जा सकते हैं। जिनपर पॉलिश कर देने से खूब चिकनाई तथा चमक आ जाती है। आजकल अच्छे मकानों में इस तरह के फर्श का उपयोग बहुत बढ़ गया है।
सीमेंट का फर्श अधिकतर १ इंच से डेढ इंच तक मोटा होता है और इसके नीचे ३ इंच मोटी तह चूने की गिट्टी की दी जाती है, जिसे दुरमुट इत्यादि से भली भाँति कूटकर ठोस कर देना चाहिए। चूने की गिट्टी के नीचे भी अगर बालू या राख (cinder) की ६ इंच मोटी तह बिछा दी जाए, तो यह नमी को रोकने में काफी सहायक होती है। जहाँ सीलन का बहुत भय हो वहाँ सीमेंट में उचित मात्रा में पडलो (Pudlo), चीको (Checko), अथवा अन्य नमी रोकनेवाले पेटेंट मसालों का प्रयोग किया जा सकता है।
सीमेंट का फर्श पूरे कमरे में एक साथ न डालकर लगभग ४ फुट x ४ फुट की पट्टियों के रूप में डालने से कंक्रीट सूखने के समय फर्श के फटने का भय नहीं रहता।
सीमेंट कंक्रीट का पानी जब सूखता है, तब कंक्रीट थोड़ा सा सिकुड़ता है, जिससे जगह जगह फर्श् के फट जाने की आशंका रहती है। अगर चार पाँच फुट पर फर्श में जोड़ (joints) दे दिए जाएँ, तो न जोड़ों में थोड़ी सी झिरी बढ़ जाएगी और टेढ़ी मेढ़ी दरारें नहीं पड़ेंगी।
फर्श को फटने से बचाने के लिए कंक्रीट की पकाई (curing) बहुत आवश्यक है। फर्श डालने के कुछ घंटे के बाद छोटी छोटी मेड़ें बनाकर फर्श के ऊपर पानी भर कर, कम से कम ८-१० दिन तक पकाई करनी चाहिए। अगर संभव हो तो पकाई १५ दिन तक करते रहना चाहिए।
फर्श में जो जोड़ बनाए जाते हैं, उनके बीच ऐल्यूमिनियम या एवोनाइट की पट्टी फर्श की मोटाई के बराबर लगा देने से जोड़ बहुत साफ और सीधे बनते हैं।
मोज़ैइक या टराज़ो के फर्श के बनाने में, चूने की मिट्टी की तीन इंच मोटी तह के ऊपर सीमेंट कंक्रीट की तह डालनी चाहिए, इसके ऊपर १:३ सीमेंट तथा संगमरमर की बजरी की मिलावट के मसाले की तह समतल रूप से बिछाई जाती है। तीन दिन बाद फर्श की रगड़ाई कार्बोरंडम (carborundum) पत्थर की बटिया से की जाती है। घिसाई पूरी हो जाने के बाद बारीक कार्बोरंडम की बटिया से रगड़कर पालिश की जाती है। रंगीन फर्श के लिए बने बनाए रंगीन सीमेंट बाजार में मिलते हैं।
सीमेंट की टाइल बहुत सी फैक्ट्रियाँ बनाती हैं। यह अधिकतर ८ इंच x ८ इंच होती है। चूने की गिट्टीवाले फर्श पर टाइलों को सीमेंट के मसाले द्वारा जड़ दिया जाता है। फिर रगड़ाई और पालिश उसी प्रकार होती है, जैसे मोज़ैइक के फर्श पर।
काचित टाइल का फर्श
पोर्सिलेन (porcelain) मिट्टी को तेज आँच की भट्ठी में पकाकर फिर उस पर विशेष रासायनिक क्रिया द्वारा ग्लेज़ करने से इस प्रकार के टाइल बनते हैं। ये सफेद अथवा रंगीन अभिकल्प के भी होते हैं। सफेद टाइल अधिकतर स्नानागार इत्यादि में लगाए जाते हैं। मोज़ैइक का उपयोग बढ़ने से इस प्रकार के टाइलों का उपयोग कम होता जा रहा है।
संगमरमर के फर्श
संगमरमर प्राचीन काल से फर्श के लिए उपयोग में आ रहा है। मुख्यत: मुगल काल में फर्श तथा भवननिर्माण में इसका प्रयोग बहुत होने लगा था। इटली में भी इसका प्रयोग काफी मात्रा में हुआ है।
संगमरमर की चौड़ी चौड़ी पटियों को विभिन्न नापों में तराशकर, जमीन में चूने या सीमेंट की गिट्टी के ऊपर जड़कर, फर्श बनाया जाता है। काले तथा सफेद संगमरमर की पट्टियाँ एक के बाद एक जड़कर, बड़े सुंदर नमूने के शतरंजी फर्श बनाए जाते हैं। बड़े बड़े महल, मूल्यवान् भवन तथा अस्पतालों के शल्यकक्षों में संगमरमर का विशेषकर उपयोग किया जाता है।
पत्थर का फर्श
बलुआ पत्थर (sandstone), ग्रैनाइट (granite) तथा स्लेट (slate) का उपयोग फर्श बनाने के लिए किया जाता है। बलुआ पत्थर का मुख्य उदाहरण आगरे का लाल पत्थर है जो आगरे, दिल्ली इत्यादि के किलों में मुगलकाल में, प्रचुर मात्रा में इस्तेमाल किया गया। इसपर अच्छा पॉलिश नहीं हो सकता। भारत के दक्षिणी प्रदेशों में ग्रैनाइट खूब मिलता है। यह बहुत कठोर पत्थर है तथा इसको तराशना कठिन और महँगा भी है। यदि ग्रैनाइट पर पॉलिश किया जाए तो यह खूब चिकना तथा चमकदार बनाया जा सकता है। ग्रैनाइट चितकबरा तथा भिन्न भिन्न रंगों का होता है। अत: दक्षिण भारत में अच्छे फर्श के लिए इसका उपयोग करते हैं। ग्रैनाइट की मजबूती तथा कठोरता के कारण भारी कारखानों में भी इसका उपयोग करते हैं, जहाँ सीमेंट इत्यादि के फर्श बहुत टिकाऊ नहीं होते। शाहाबादी पत्थर के चौके का फर्श भी काफी प्रसिद्ध है।
ईंट तथा चूने की गिट्टी का फर्श
ईंट का प्रयोग सस्ता फर्श बनाने के लिए किया जाता है। ईंट की पट या खड़ी जुड़ाई की जाती है। ईंट का फर्श सीमेंट की तरह चिकना तथा समतल और साफ नहीं होता है, पर काफी सस्ता होता है।
चूने की गिट्टी का फर्श पहले बहुत बनता था, पर जैसे जैसे सीमेंट का उपयोग बढ़ता गया, चूने की गिट्टी का फर्श बनना कम होता गया। यह सीमेंट के फर्श की तरह चिकना तथा कड़ा नहीं होता और पानी भी काफी सोख सकता है, अत: इसके फटने का भय कम होता है। इसलिए प्राय: इसका उपयोग खुली छत पर फर्श डालने के लिए किया जाता है।
लकड़ी का फर्श
लकड़ी के पटरों या तख्तों को लकड़ी की धरन या लोहे के गर्डर पर जड़कर लकड़ी का फर्श बनाया जात है। ऐसे फर्श अधिकतर पहाड़ पर, या ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहाँ लकड़ी सस्ती और अधिक मिलती है। लकड़ी का फर्श सीमेंट या पत्थर इत्यादि के फर्श की तरह ठंढा नहीं होता, अत: इसका उपयोग शीतप्रधान इलाके में प्रचुरता से होता है। ऐसे स्थान पर ठंढी जलवायु के कारण लकड़ी जल्दी सड़ती भी नहीं।
लकड़ी के फर्श के लिए यह आवश्यक है कि उसके नीचे मिट्टी न भरी हो, नहीं तो सीलन से लकड़ी शीघ्र ही सड़ जाएगी। धरन के नीचे की जमीन खाली रखी जाती है, जिससे सूखी हवा का संवातन (ventilation) हो सके। लकड़ी को रंदा करके, वार्निश या मोम का पालिश कर देने से लकड़ी के फर्श की आयु, सुंदरता तथा सफाई बढ़ जाती है।
पारकेट फर्श (parquet flooring) लकड़ी के ही फर्श की एक किस्म है, जो बहुत सुंदर लगती है। नाचघरों में लकड़ी के फर्श के नीचे लोहे के स्प्रिंग लगाकर फर्श को थोड़ा लचकदार बनाया जाता है। इस प्रकार के फर्श भी काफी महँगे पड़ते हैं।
कच्चे फर्श
गाँवों में जहाँ कच्चे मकान बनते हैं, अधिकांश फर्श भी कच्चे ही, अर्थात् मिट्टी के, होते हैं। कच्चे फर्श के बनाने में चिकनी मिट्टी, भूसा तथा गोबर का उपयोग किया जाता है।
कारखानों में फर्श
कारखानों के फर्श मामूली भवन के फर्श की अपेक्षा मजबूत बनाने पड़ते हैं। आवश्यकतानुसार सीमेंट कंक्रीट की तह को कम से कमश् इंच से ३ इंच तक मोटा रखना पड़ता है। जहाँ फर्श पर बहुत भारी बोझ पड़े या भारी लोहे के पहियों की गाड़ियाँ चलें, वहाँ ग्रैनाइट के ब्लॉकों (block) का उपयोग भी किया जाता है, यद्यपि इनपर गाड़ी के चलने से खड़खड़ाहट तथा शोर बहुत बढ़ जाता है तथा फर्श की अच्छी सफाई भी नहीं हो पाती। जहाँ अधिक शोर हो वहाँ बिटूमेन (bitumen) का फर्श भी बनाया जा सकता है।
कुछ स्थानों में लिनोलियम का उपयोग भी फर्श के लिए किया जाता है, जैसे रसोई, गैलरी अथवा अन्य स्थानों में। इसके उपयोग से आवाज भी कम होती है। हमारे देश में रेलगाड़ियों के डिब्बों के फर्श बनाने में अधिकतर लिनोलियम का ही उपयोग होता है।
सन्दर्भ
[१] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। टाइल चिपकाने वाला