प्रेम लता शर्मा
प्रेम लता शर्मा (10 मई 1927 -- १९९८) भारतीय संगीत शास्त्र की प्रमुख विदुषी थीं। उन्होंने संगीत शास्त्र के कई मूल ग्रन्थों का अनुवाद किया। इन ग्रन्थों में संगीत रत्नाकर, बृहद्देशी, रसविलास तथा संगीतराज हैं।
प्रेम लता शर्मा का जन्म पंजाब के नकोदर में हुआ था। वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के अध्यक्ष ओंकारनाथ ठाकुर की शिष्या थीं। बनारस में रहते हुए उन्होने हिन्दी और संस्कृत में परास्नातक तथा संस्कृत में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उसके पश्चात वे भारतीय संगीत के सैद्धान्तिक पक्षों के अध्ययन में लग गयीं और उन्होने विशेष रूप से संगीत के सिद्धान्तों को संस्कृत ग्रन्थों में खोजने के ऊपर अपने को केन्द्रित रखा। श्रीमती शर्मा ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में लगभग ३० वर्ष तक अपनी सेवाएँ दीं। वे एक अच्छी अध्यापिका और विदुषी थीं। वहाँ से वे परफॉर्मिंग आर्ट्स विभाग के डीन पद से सेवानिवृत हुईं। सन १९८३ से १९८८ तक उन्होने उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष का पद संभाला। १९८५-१९८८ में वह इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ की उप-कुलपति रहीं।
प्रेमलता शर्मा की प्रकाशित कृतियों की संख्या बहुत बड़ी है, जिनमें से नाट्यशास्त्र के आथ अध्यायों का अनुवाद तथा संगीत एवं नृत्य से सम्बन्धित बृहद शब्दावली का संकलन सम्मिलित है। द्रुपद को पुनर्जीवन देने में उनका बड़ा योगदान है। उन्होने अनेकों शोधकर्ताओं का मार्गदर्शन किया है। उन्हें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी का फेलोशिप प्रदान की गयी है।
कृतियाँ
- क्रिटिकल ऐडीशन आफ रसविलास
- संगीतराज आफ कुम्भकरण
- बृहद्देशी आफ मतंग
- चित्रकाव्यकौतुकम्
- सहस्ररसा
- एकलिंगमहात्म्य
- भक्तिरसअमृतसिन्धु
- महामरम