पेंट

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हरा पेंट

पेंट (Paint) या प्रलेप तरल या अर्धतरल पदार्थ होता है जो बहुत पतली परत के रूप में विभिन्न वस्तुओं के तल पर चढ़ाया जाता है। बाद में यह ठोस आवरण के रूप में तल पर चिपक जाता है। ठोस में बदलने का कारण विलायक का वाष्पीकरण, या रासायनिक क्रियाएँ, या दोनों ही हो सकते हैं।

वर्णक और वाहक चक्कियों में पीसकर मिलाए जाते हैं। इस काम के लिये अनेक प्रकार की पीसनेवाली चक्कियाँ प्रयुक्त होती हैं। जिन पात्रों में वे मिश्रित किए जाते है, वे या तो जंगरोधी इस्पात के बने होते हैं, अथवा उनका भीतरी भाग पत्थर, या पोर्सिलेन, का बना होता है। उसे ठंडा रखने के लिये निचोल (jacket) लगा होता है अथवा फुहारे देने की व्यवस्था रहती है।

तल पर पेंट चढ़ाने की रीतियाँ विभिन्न हैं, जैसे फुहारा द्वारा, तल को पेंट में निमज्जित करके, अथवा बरुश द्वारा लेप से। सभी परिस्थितियों में तल स्वच्छ रहना चाहिए। लकड़ी के सामनों या फर्नीचर के लिये जो पेंट प्रयुक्त होता है, व साधारणतया उच्च कोटि का होता है। ऐसे पेंट का कार्य तल की रक्षा करना और उसे आकर्षक बनाना होता है।

संरचना

प्रलेप में साधारणत: वर्णक, वर्णकों को बाँधनेवाला कोई वाहक (vehicle) तथा गाढ़ता (consistency) या स्निग्धता को नियंत्रित करनेवाला कोई तरलक (thinner) रहता है। इनके अतिरिक्त कुछ पेंटों में विस्तारक (extenders) तथा अल्प मात्रा में शोषक (driers) भी मिलाए जाते हैं। शोषक का कार्य प्रधानतया पेंट के सूखने में सहायक होना होता है, पर कुछ शोषक विशेष कार्यो का संपादन भी करते हैं।

वर्णक

सामान्यत: अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। यदि उनमें कार्बनिक रंजक निलंबित हों, तो उन्हें "लेक" (lake) कहा जाता है। वर्णक साधारणतया ऐसा होना चाहिए कि उसकी आच्छादन क्षमता ऊँची हो, वह तल पर शीघ्रता से चिपक जाय ओर उसका रंग आकर्षक हो। यदि वह रंगीन है, तो उसका रंग प्रकाश के प्रति स्थायी और ऋतुसह्य होना चाहिए। सामान्यत: वह विषैला नहीं होना चाहिए। रसायनत: वह निष्क्रिय और सस्ता होना चाहिए। अधिक महत्व के वर्णक निम्नलिखित है :

श्वेत वर्णक - जिंक ऑक्साइड, लेडयुक्त जिंक ऑक्साइड, जिंक सल्फाइड, लिथोपोन (बेरियम सल्फेट और जिंक सल्फाइड का मिश्रण) टाइटेनियम ऑक्साइड, एंटिमनी ऑक्साइड, सफेदा (क्षारक सीस कार्बोनेट), क्षारक सीस सल्फेट इत्यादि।

काला वर्णक - कार्बन के विभिन्न रूप, कार्बनकाल, कजली, अस्थिकाल, काला ग्रैफाइट, लोहे के काले ऑक्साइड इत्यादि।

नील वर्णक - अल्ट्रारमेरिन, प्रशियन ब्लू, चाइनीज ब्लू, मेलोरी ब्लू, टर्नबुल, कोबाल्ट ऑक्साइड, थैलोसायनिन ब्लू इत्यादि हैं।

पीत वर्णक - क्रीम पीत (क्षारक लेड क्रोमेट), जिंक क्रीम, कैडमियम पीत (कैडमियम सल्फाइड), हाँसा पीत (Hansa yellow)।

हरा वर्णक - क्रीम ग्रीन, क्रोमियम ऑक्साइड ग्रीन, क्रोमियम हाइड्रॉक्साइड ग्रीन, फास्फोटंगिस्टक ग्रीन, थैनोसायनिन ग्रीन इत्यादि।

लाल वर्णक - आयरन ऑक्साइड, गेरू, जला हुआ सियेना, लाल सीस, कैडमियम सेलेनाइट, बेनेशियम रेड, मुरदासंख (litharge) इत्यादि।

बादामी या भूरा - जला हुआ अंबर, लोहे का ऑक्साइड, सियेना, जला हुआ गेरू इत्यादि।

धातु वर्णक - ऐल्यूमिनियम, ताँबे, कांसे तथा सीस के चूर्ण। ऐल्यूमिनियम का चूर्ण बहुत समय से प्रयुक्त होता आ रहा है। तेल में निलंबित ऐल्यूमिनियम की धूल तल का अच्छा संरक्षण करती है। इससे चमक भी अच्छी आती है। धातुएँ चूर्ण, धूल या फलक, के रूप में प्रयुक्त होती हैं। धातुओं के फलकों का उपयोग अनेक वर्षो से होता आ रहा है और अब उनका उपयोग दिन-दिन बढ़ता जा रहा है।

रंगक (Toners)

वर्णकों के रंगों को उन्नत करने तथा उनमें चमक लाने के लिये आज अनेक पदार्थ उनमें मिलाए जाते हें। ऐसे पदार्थो को रंगक (Toners) कहते हैं। ये सब ही कृत्रिम रीति से प्रस्तुत पदार्थ होते हैं। साधारणतया से डायजो रंजक होते हैं जो डायजो यौगिकों के फिनोल के संयोग से बनते हैं। ये सुंदर रंगों में प्राप्त होते हैं। इन्हें अकार्बनिक विस्तारों (extenders) पर अवक्षिप्त कराया जा सकता है। इस प्रकार के अवक्षेपण से "लेक" प्राप्त होते है। रंगक विस्तारकों पर सामान्यत: अवशोषित हो जाते हैं।

विस्तारक (extenders)

पेंट में प्रयुक्त होनेवाले विस्तारक रसायनत: निष्क्रिय होते हैं। वर्णक में इन्हें मिलाने का उद्देश्य वर्णक में अपमिश्रण (adulteration) करना नहीं होता। ये पेंट को तल पर बाँध रखने में सहायक होते हैं। इनसे चिमड़ापन, गाढ़ापन और आच्छादन क्षमता बहुत कुछ बढ़ जाती है। इनसे पेंट के मूल्य में कमी भी हो जाती है, क्योंकि ये विस्तारक अपेक्षया सस्ते होते हैं। इनको 20 प्रतिशत वर्णक में मिलाया जा सकता है। अधिक महत्व के विस्तारक हैं, बेराइटा या अवक्षिप्त बेरियम सल्फेट, कैल्साइट या कैल्सियम कार्बोनेट, जिप्सम या कैल्सियम सल्फेट, सोपस्टोन या मैग्नीशियम सिलिकेठ, चीनी मिट्टी या सफेद मिट्टी। पेंट में मिलने के पहले इन्हें पीसकर आवश्यकतानुसार महीन बना लेते हैं।

पेंटवाहक

ठोस वर्णकों को किसी तरल वाहक में निलंबित करने की आवश्यकता पड़ती है, ताकि तलों पर उनको सरलता से फैलाया जा सके, अथवा फुहारा के रूप में उन्हें कणित (atomise) किया जा सके। इसके लिये जो द्रव प्रयुक्त होते हैं, वे शोषक तेल होते हैं। इस रूप में तीसी का तेल सबसे अधिक मात्रा में प्रयुक्त होता है, क्योंकि यह सस्ता होताहै और शीघ्रता से उपलब्ध है। तीसी के तेल के स्थान पर कुछ अन्य तेलों, जैसे तुंग तेल, सोयाबीन तेल इत्यादि का भी प्रयोग होता है। ये सभी ही तेल गाढ़े होते हैं। इन्हें पतला करने के लिये अनेक द्रव विलायकों और तनुकारकों का व्यवहार होता है। ऐसे द्रव हैं तारपीन का तेल, पेट्रोलियम स्पिरिट, विलायक नैफ्था, अनेक सौरभिक हाइड्रोकार्बन, एथिल ऐल्कोहल और विशेष विशेष अवस्थाओं में व्युटेनोल, ब्युटिल ऐसीटेट, एमिल ऐसीटेट, ऐसीटोन इत्यादि। कुछ क्लोरीन युक्त विलायक भी इस कार्य के लिये अच्छे सिद्ध हुए है। विलायकों का प्रयोग बहुत कुछ उनके रंग, गंध विषालुती, वाष्पन गति, सस्तापन आदि पर निर्भर करता है।

शोषक (Driers)

कुछ पेंट जल्द सूखते नहीं। ऐसे पेंटों को जल्द सुखाने के लिये कुछ पदार्थ मिलाए जाते हैं जिन्हें शोषक कहते हैं। शोषकों की बड़ी अल्प मात्रा ही पर्याप्त होती है। ये पेंट के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में परिवर्तन लाकर उन्हें जल्द सुखा देते हें। इनकी क्रिया वस्तुत: उत्प्रेरक होती है। इसी से इनकी अल्प मात्रा ही आवश्यक होती है। शोषक सामान्य धातुओं, जैसे सीसा, मैंगनीज, कोबाल्ट इत्यादि, के साबुन या रोजिनेट या कार्बनिक लवण (Carboxylate) होते हैं। ये पेंट को सुखाने के अतिरिक्त उसे गाढ़ा भी बनाते हैं और उसमें चमक भी लाते हैं। कुछ शोषक कक्कनाशी और दुर्गंधनाशी भी होते हें1 ऐसे ही पेंटों का प्रयोग मछली के जालों पर लेप चढ़ाने में होता है।

पेंटों का वर्गीकरण

विशेष विशेष पात्रों पर लेप चढ़ाने के लिये विशेष प्रकार के पेंट तैयार होते हैं। यह बहुत कुछ तल की प्रकृति और लेप चढ़ाने के उद्देश्य पर निर्भर करता है। कुछ पेंट जल में घुल जाते और कुछ जल में घुलते नहीं हैं। विशेष प्रयोजनों की दृष्टि से पेंटों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है :

1. राजपथ एवं मार्ग पेंट - राजपथों या सड़कों पर यातायात को नियंत्रित करने में पेंट द्वारा चिह्नविशेष या प्रयोग होता है। ऐसे पेंट जल्द सूखनेवाले और स्थायी होने चाहिए।

2.उष्मावरोधी पेंट - ये पेंट उष्मा से वस्तुओं की सुरक्षा करते हैं। ऐसे पेंट में साधारणतया ऐल्यूमिनियम रहता है।

3. संक्षारणबरोधी पेंट - रासायनिक कारखानों और विशेष परिस्थितियों में ये प्रयुक्त होते हैं। ऐसे पेंट में रबर, या रबर सदृश अन्य पदार्थ, रेज़िन तथा तारकोल से बने उत्पाद प्रयुक्त होते हैं।

4. दीप्त पेंट - इसमें ऐसे वर्णक प्रयुक्त होते हैं, जो पराबैंगनी प्रकाश में प्रदीप्त होते हैं। स्फुरदीप्त पेंट प्रकीर्ण प्रकाश के हटा देने पर भी कुछ समय तक चमकते रहते हैं। ऐसे पेंट सजावट में काम आते हैं। पेंट में प्रकीर्णं विकिरण प्रभावशाली हो, इसके लिये पेंट का पराबैंगनी प्रकाश के प्रति पारदर्शक होना आवश्यक है।

5. कारखानों में प्रयुक्त होनेवाले पेंट- मीटरकार, घोड़ा गाड़ियों, फर्नीचर आदि के लिये कारखानों में विशेष प्रकार के पेंट आजकल प्रयुक्त होते हैं : मोटर कार के लिये लेकर एल्किडरेज़िन, एक्रिलिक रेजिन तथा यूरियावाले पेंट प्रयुक्त होते है : फर्निचर के लिये लैकर या वार्निश प्रयुक्त होते हैं। यूरियावाले पेंट स्नानगृह और पाकाशाला के फनर्चिरों के लिये प्रयुक्त होते हैं। ईपोक्सी तथ्ज्ञा असंतृप्त पोलिएस्टरवाले पेंट भी अब प्रयुक्त होने लगे हैं। इनसे एनामेल सा लेप प्राप्त होता है।

6. अन्य पेंट - भवननिर्माण में प्रयुक्त होनेवाले पेंट, तैल या वार्निश पर आधारित, अथवा आक्षीर किस्म के होते हैं। गृह के बाह्य भागों पर प्रयुक्त होनेवाले पेंट अनेक प्रकार के होते हैं, पर सामान्यत: ये तीसी के तेल पर आधारित पेंट होते हैं। अब ऐल्किड या आक्षीर भी प्रयुक्त होने लगे हैं। पेंट के आवरण में कठिनता, चमकीलापन इत्यादि गुण लाने के लिये पेंट में आज अनेक अन्य पदार्थ, गोंद, ऐल्यूमेन, पायसीकृत केसीन इत्यादि अल्प मात्रा में डाले जाते हैं।

बाहरी कड़ियाँ