प्रथम रुहेला युद्ध

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प्रथम रुहेला युद्ध
रुहेला युद्ध का भाग
Rohilla Horsemen.jpg
रुहेला घुड़सवार
तिथि १७७३-१७७४
स्थान रुहेलखण्ड
परिणाम रुहेला पराजय। लालढांग की सन्धि
क्षेत्रीय
बदलाव
रुहेलखण्ड राज्य का पतन तथा रामपुर रियासत का निर्माण।
योद्धा
Flag of the Rampur State.svg रुहेलखण्ड राज्य साँचा:flagcountry
सेनानायक
Flag of the Rampur State.svg फैजुल्ला खान

Flag of the Rampur State.svg हाफिज रहमत खान  

Flag of the Rampur State.svg मुहम्मद यार खान  

Flag of the United Kingdom.svg वारेन हेस्टिंग्स

Flag of the British East India Company (1707).svg कर्नल एलेग्जेंडर चैंपियन

Flag of Awadh.svg शुजाउद्दौला

प्रथम रुहेला युद्ध १७७३-१७७४ में मुगल सम्राट का प्रतिनिधित्व करते हुए अवध के नवाब, शुजा-उद-दौला द्वारा अफगान पहाड़ियों से उत्तर भारत के रुहेलखण्ड में आकर बसे रुहेलाओं के विरुद्ध एक दंडात्मक अभियान था। कर्ज में डूबे रुहेलाओं के विरुद्ध छेड़े गए इस सफल अभियान में नवाब को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी समर्थन दिया था।

पृष्ठभूमि

मराठों द्वारा पहाड़ों में धकेल दिए जाने से कुछ वर्ष पूर्व रुहेलाओं ने शुजा-उद-दौला से, जो उस समय अंग्रेजों के सहयोगी थे, सहायता का अनुरोध किया था। युद्ध के बाद जब नवाब ने रुहेलाओं से सोने की ४० छड़ें वापस करने की मांग की, तो रुहेला प्रमुखों ने भुगतान करने से मना कर दिया। नवाब ने तब उनका राज्य हड़पने का निर्णय लिया, और सहायता के लिए वारेन हेस्टिंग्स से अनुरोध किया, जो चालीस लाख रुपये की राशि के भुगतान के बदले में सहायता के लिए मान गए।[१]

हेस्टिंग्स ने इस आधार पर अपनी कार्रवाई को उचित ठहराया कि रुहेला अंग्रेजों के लिए एक खतरा थे, क्योंकि वह अवध के एक हिस्से से लगे हुए थे।[१]

युद्ध

हाफिज रहमत खान[२] की अगुवाई वाली रुहेला सेना को २३ अप्रैल १७७४ को मीरांपुर कटरा की लड़ाई में कर्नल अलेक्जेंडर चैंपियन के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था। इस निर्णायक युद्ध में हाफिज रहमत खान की मृत्यु हो गई, और बची-खुची रुहेला सेना लालढांग के पास की पहाड़ियों में भाग गयी।[३]

गुरिल्ला युद्ध तथा घेराबंदी

शेष बचे वफादार रुहेलाओं के साथ फैजुल्ला खान लालढांग की पहाड़ियों के जंगलों में चले गए। अंग्रेजों और अवध की संयुक्त सेनाओं ने उसी वर्ष अगस्त १७७४ के अंत से इस क्षेत्र की घेराबंदी की। अंततः दोनों पक्ष थक गए और शांति की कामना करने लगे।

शाह शुजा, जो अपने पैर में कैंसर से पीड़ित थे, तुरन्त शांति चाहते थे और इस कारण रुहेला एकता को तोड़ने के कई प्रयासों के बाद, उन्होंने अंततः फैजुल्ला खान के अधिकार को कम करने के प्रयास में हाफिज रहमत खान के बेटे मुहब्बत खान को रिहा करने का फैसला किया, जबकि उसी समय उन्होंने फैजुल्ला के साथ भी निरंतर संचार बनाए रखा। उनकी रणनीति काम कर गई और ७ अक्टूबर १७७४ को फैजुल्ला ने लालढांग की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके अनुसार उन्हें अपने चयन के क्षेत्र में एक रियासत दी गई, जिससे रामपुर रियासत का निर्माण हुआ।[४]

परिणाम

रुहेलखण्ड का पतन हो गया और इसे अवध द्वारा लूट और कब्जा लिया गया। अधिकांश रुहेला राज्य से निकल गए, एवं एक और गुरिल्ला युद्ध शुरू करने की इच्छा से गंगा के पार चले गए। ब्रिटिश सुरक्षा के तहत एक रुहेला रियासत रामपुर में स्थापित की गयी और फैजुल्ला खान इस नव निर्मित रामपुर रियासत के प्रथम नवाब बनने में सफल रहे। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद अली खान रामपुर के नवाब हुए जिन्हें उनके छोटे भाई और फैजुल्ला खान के दूसरे बेटे गुलाम मुहम्मद खान बहादुर ने अपदस्थ कर दिया। गुलाम मुहमद के अधीन अफगान रुहेलाओं की आकांक्षाओं ने उन्हें १७९४ में द्वितीय रुहेला युद्ध में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, जिसका मूल उद्देश्य रुहेलाओं के पूर्ववर्ती क्षेत्रों को फिर से प्राप्त करना था।[५]

हालांकि, गुलाम मुहम्मद का अपने भाई के विरुद्ध षड्यंत्र कर सिंहासन पर पहुंचना अंग्रेजों को पसंद नहीं आया, जिन्होंने उन्हें रामपुर रियासत के शासक के रूप में मान्यता नहीं दी। तब बड़ी संख्या में अफगान सैनिकों को लेकर उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया, जिसमें उनकी पराजय हुई और रामपुर को अंग्रेजों द्वारा मुहम्मद अली खान के नवजात पुत्र को सौंप दिया गया।[६]

यह युद्ध वॉरेन हेस्टिंग्स के महाभियोग के समय वेस्टमिंस्टर की राजनीति का एक विषय भी रहा था। एडमंड बर्क और बाद में थॉमस मैकाले द्वारा हेस्टिंग्स पर एक राष्ट्र को नष्ट करने के आरोप लगाए गए थे।[१]

संदर्भ

टिप्पणियाँ

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  2. Miranpur Katra in India
  3. Prasad, Alok (2012). "Rohilla Resistance Against Colonial Intervention Under Nawab Faizullah Khan of Rampur (1774-1794)". Proceedings of the Indian History Congress. 73: 563–572. JSTOR 44156249.
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बाहरी कड़ियाँ