पीली-चोंच वाला बैबलर

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Yellow-billed Babbler
Yellow-billed Babbler (Turdoides affinis) at Hyderabad, AP W 001.jpg
in Hyderabad, भारत.
Scientific classification
Binomial name
Turdoides affinis
(Jerdon, 1845)

पीली-चोंच वाला बैबलर अथवा श्वेत सर वाला बैबलर (टर्डॉइडस एफिनिस) एक प्राचीन विश्व का बैबलर है जो की दक्षिण भारत तथा श्रीलंका में स्थानीय रूप से पाया जाता है। पीली-चोंच वाला बैबलर दक्षिणी भारत और श्रीलंका का आम निवासी प्रजनन करने वाला पक्षी है। इसके प्राकृतिक निवास झाड़ियाँ, कृषि एवं बगीचों की भूमि हैं। अन्य बैबलरों की तरह यह प्रजाति अप्रवासी नहीं है, इसके पंख छोटे तथा गोल होते हैं, जिससे इसकी उड़ान कमज़ोर होती है तथा इसे आमतौर पर समूह में चहचहाते तथा चारा खोजते देखा जाता है। इसके अक्सर जंगल बैबलर के रूप में पहचाना जाता है, जिसका क्षेत्र भी दक्षिणी भारत के भागों में ही होता है, हालाँकि इसकी चहचहाहट अलग होती है तथा यह अधिक वनस्पति आच्छादित क्षेत्रों में रहता है।[१]

विवरण

हैदराबाद, भारत में.

इन पक्षियों के शरीर का ऊपरी भाग धूसर भूरा, गला तथा छाती चित्तीदार सलेटी, तथा सफ़ेद-बादामी पेट होता है। सिर और गर्दन के पीछे का भाग सलेटी होते हैं। श्रीलानाका में पायी जाने वाली प्रजाति टी.ए. टेप्रोबैनस फीके पीले-सलेटी रंग की होती है। दक्षिणी भारत की नामांकित जाति में सफ़ेद टोपी तथा गर्दन के पीछे का भाग गहरे रंग से आच्छादित होता है। पिछला हिस्सा पीलापन लिए हुए तथा पूंछ के सिरा चौड़ा गहरा होता है। भारत के चरम दक्षिण में पक्षी श्रीलंका की उप-प्रजातियों के समान होता है जिसमें टोपी तथा पीछे का भाग अधिक सलेटी होता है। आँख का रंग सफेद-नीला सा होता है। भारतीय स्वरुप में गले तथा छाती धारीदार होती हैं।[२] श्रीलंका की उप-प्रजातियाँ जंगल बैबलर, टर्डॉइडस स्ट्रियेटस, से मिलती जुलती होती हैं, हालाँकि यह प्रजाति इस द्वीप पर नहीं पाई जाती है।[३]

इस प्रजाति में सात विशिष्ट स्वरोच्चारणों का उल्लेख किया गया है और इस प्रजाति का स्वर जंगल बैबलर की तुलना में उच्च स्वर का होता है। जंगल बैबलर की आवाज अधिक कर्कश तथा नासिका गुण वाली होती है।[४]

वितरण और आवास

इस प्रजाति को दक्षिणी भारत और श्रीलंका में समूहों में वितरित किया जाता है। इसी नाम की एक उप-प्रजाति आंध्र प्रदेश में, गोदावरी नदी के दक्षिण तथा कर्नाटक के बेलगाम के दक्षिण एवं तमिलनाडु में पायी जाती है। यह जंगल बैबलर की तुलना में कम ऊँचाई और सूखे आवास में रहना पसंद करती है, परन्तु कई बार यह इसके साथ भी पायी जाती है। श्रीलंका की उप-प्रजाति निचली भूमि तथा 1500 मीटर तक की पहाड़ियों में घने वन से अलग रहती है।[३]

व्यवहार व पारिस्थितिकी

पीने का पानी (शमिर्पेट, भारत)

पीली-चोंच वाला बैबलर सात से दस या अधिक के झुंड में रहता है। यह एक शोर करने वाला पक्षी है और एक झुंड की उपस्थिति का आभास कुछ दूरी तक लगातार चहचहाने, शोर करने तथा बात करने से हो जाता है। एक सदस्य अक्सर एक ऊँचे स्थान पर बैठ कर प्रहरी की भूमिका निभाता है जबकि अन्य सदस्य भूमि के निकट अथवा भूमि पर चारा खोजते रहते हैं। मुख्यतः वे कीड़े खाते हैं परन्तु फल, रस तथा मानवों द्वारा छोड़ा गया भोजन भी खा लेते हैं।[५] इन्हें कैलोटेस वर्सिकलर छिपकली तथा व्हिप-बिच्छुओं को खा लेने के लिए जाना जाता है।[३] वे लंबी दूरी तक उड़ नहीं पाते हैं, अधिकतम बिना रुके उड़ान दूरी लगभग 180 मीटर और उड़ान के पूर्व वे आम तौर पर एक लंबे पेड़ या झाड़ी पर जाकर ऊँचाई प्राप्त करते हैं। काला ड्रोंगो, रुफोस ट्रीपाई और भारतीय पाम गिलहरी को अक्सर इन बैबलरों के निकट ही चारा खोजते देखा जाता है।[६][७]

पक्षी उषाकाल में 6 बजे की आसपास जाग कर चारा खोजना प्रारंभ कर देते हैं। वे दिन के अपेक्षाकृत गर्म समय 1330 से 1630 के बीच निष्क्रिय रहते हैं। वे 1900 बजे के आसपास समूहों में इकट्ठा होकर अपने को साफ़ करती हैं और फिर अपने बसेरों में चली जाती हैं। एक समूह के सदस्य आसपास ही बसेरा बनाते हैं तथा कुछ कम आयु के सदस्य समूह के बीच में ही रहते हैं। जब समूह चारा खोजता है, तब प्रहरी पर फड़फड़ाते हुए कूदती रहती है। स्वयं को सजाना विशेष रूप से सर्दियों में, एक सामान्य कार्य है,[६] तथा सदस्य दूसरे सदस्यों से खाना माँगते रहते हैं।[४] पीली-चोंच वाला बैबलर विशेष रूप से नहाना पसंद करता है तथा अक्सर दोपहर के बाद व शाम को सामन्य क्षेत्र में चिड़ियों के नहाने के स्थल पर जाता है। कभी-कभी इन पक्षियों 18:30 के आसपास चिड़ियों के नहाने के स्थल पर सूर्यास्त के बाद भी देखा जाता है, जब अंधेरा होने लगता है।

घर के बगीचे में पक्षियों के स्नान के स्थान पर बैठा हुआ पीली-चोंच वाले बैबलर का एक समूह (कोलंबो, श्रीलंका) में.जुलाई 2010

सिवाकासी के मैदानों में किये गए एक अध्ययन में कहा गया कि समूहों की परास 0.4 कि॰मी॰2 के आसपास होती है तथा लगभग 55 पक्षी कि॰मी॰2 में पाए जाते हैं।[६]

प्रजनन

संपर्क पुकार

प्रजाति के घोंसले पूरे वर्ष देखे जाते हैं परन्तु प्रजनन का मौसम चरम पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने से पहले पहुँचता है। यह अपना घोंसला किसी पेड़ में, पत्ते के घने झुरमुट में छुपा कर बनाता है। अधिकांश घोंसले चार मीटर से कम की ऊँचाई में देखे जाते हैं। घोंसला एक छोटे से कप के रूप में होता है, जिसे किसी शाखा में अटका कर रखा जाता है। यह एक बार में सामान्य रूप से दो से चार फिरोजी नीले रंग के अंडे देती है, हालाँकि श्रीलंका की पहाड़ियों में पाँच तक अंडे देखे गए हैं। अंडे को 14 से 16 दिनों तक सेया जाता है।[१] माता-पिता पक्षी अक्सर बच्चों पर बैठने के स्थान पर घोंसले के रिम पर खड़े रहते हैं। भारतीय तथा श्रीलंका क्षेत्रों में ज्ञात रूप से पाइड कुकू (क्लैमैटर जैकोबिनस) इनके साथ ब्रूड पैरासाइटिज्म (दूसरे पक्षी के घोंसले में अंडे दे जाना) प्रदर्शित करता है।[८][९][१०] सामान्य हॉक-कुकू भी इनके साथ ब्रूड पैरासाइटिज्म प्रदर्शित करने के लिए ज्ञात है।[१][११] असाधारण मामलों में, जंगल बैबलर को पीली-चोंच वाले बैबलर के बच्चों को भोजन खिलाते देखा गया है।[१२] चूजों को मुख्य रूप से कीड़े और कभी-कभी छिपकली खिलाई जाती है। अधिकांश बैठे हुए पक्षियों की तरह माता-पिता घोंसले की साफ़-सफाई, बच्चों की मल-विष्ठा को हटाना, मुख्य रूप से उन्हें खाकर, करते रहते हैं।[१३][१४] सहायकों को घोंसला बनाने में माता-पिता की सहायता[१] करने के साथ ही बच्चों को खिलाते हुए भी देखा गया है।[१५]

मृत्युदर

अंडे के शिकारियों में नेवला, कौवे और ग्रेटर कौकल शामिल हैं। इनके द्वारा बच्चों को खाते भी देखा गया है तथा रैट सर्प ट्यास म्युकोकस द्वारा शिकार भी दर्ज किया गया है।[१]

संस्कृति में

श्रीलंका में सिंहली भाषा में इस पक्षी को देमालिच्चा के रूप में जाना जाता है।[१६]

सन्दर्भ

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अन्य स्रोत

बाहरी कड़ियाँ