पितृसत्ता

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पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमे पुरुषों की प्राथमिक सत्ता होती हैं यानी उन्हें समाज में उच्च माना जाता हैं। राजनैतिक नेतृत्व, नैतिक अधिकार, सामाजिक सम्मान, सम्पत्ति का नियंत्रण की भूमिकाओं में प्रबल होते हैं। परिवार के क्षेत्र में पिता या अन्य पुरुष महिलाओं और बच्चों के ऊपर अधिकार जमाते है। इस व्यवस्था में स्त्री तथा पुरुष को समाज द्वारा दिए गए कार्यो के अनुसार चलना पढता है। धर्म, समाज व रूढ़िवादी परम्पराएं पितृसत्ता को अधिक ताक़तवर बनाती हैं। सदियों से महिलाएं पितृसत्ता के कारण उत्पीड़ित हो रही हैं। पिता ही घर के ठेकेदार होते है पिता से ही घर होता है

परिवारों में पितृसत्ता

परिवार के अलग अलग प्रकार होते हैं पर सभी प्रकार के परिवारों में पित्रसत्ता प्रचिलित होती है। परिवार में वयस्कों के यौनिक संबंधों को एक सामाजिक रूप से स्वीकार कर लिया जाता है। १. कुटुम्बों के प्रकार: एकल परिवार और संयुक्त परिवार एकल परिवार वह परिवार होता हैं जिनमे ज़यादातर केवल तीन या चार लोग होते हैं, माता-पिता और उनके बच्चे। यह विवाहित जोड़ों पर केंद्रित होता है। आज कल एकल अभिभावक भी एकल परिवार माना जाता है। अवधि एकल परिवार यह शब्द सब से पहली बार 20 वीं सदी में दिखाई दिया। संयुक्त परिवार सदियों से प्रचलित हैं। कई व्यक्ति अपने जीवन में दो एकल परिवारों का हिस्सा होते हैं, एक एकल परिवार जिसमे वो पैदा होते हैं और दूसरा वो जिसमे शादी करके अपना घर बसाते हैं। [2] आद्य औद्योगीकरण और जल्दी पूंजीवाद के उद्भव के साथ , एकल परिवार एक आर्थिक रूप से व्यवहार्य सामाजिक इकाई बन गया [2] १.२ संयुक्त परिवार वह होता हैं जिनमे साधनो का सांप्रदायिक प्रयोग करते है, जैसे एक विवाहित जोड़ा जब अपने माता-पिता और कभी कभी भाई बहेनो के साथ रहते हैं। भारत में संयुक्त परिवार एक परंपरा है। अभी भी देश के बहुत जगहों में संयुक्त परिवार मौजूद है। बड़े बड़े शहरों को छोड़ के सारे गांवों में और सारे छोटे शहरों में संयुक्त परिवार ही मौजूद है। ऐसे परिवार एक कुलपति के नेतृत्व में होते हैं। वो पुरुष सभी निर्णय करता है। पारिवारिक आय उनकी नियंत्रण में हैं। कुलपति की धर्मपत्नी पारिवारिक निर्णय लेने मैं सक्षम होती है। शहरीकरण और आर्थिक विकास के कारण भारत में संयुक्त परिवारों कम होते जा रहें है। [3] कभी कभी एक ही कुटुंब मैं कई पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते पाये जाते हैं। कुछ समाजों में संयुक्त परिवारों को एकल परिवारों से बेहतर माना जाता है क्योंकि इन परिवारों में एकजुटता का भाव ज़्यादा होता है, और साथ ही साथ सांस्कृतिक नियमो और मूल्यों का बेहतर तरीके से प्रचरन होता है। संयुक्त परिवारों में परिवार के संबंधों को वैवाहिक संबंधों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता हैं।

एक संयुक्त परिवार में आम तौर पर एक कुलपति (सबसे बुज़ुर्ग नर) का नेतृत्व होता है। इस व्यवस्था को पितृसत्ता कहते हैं। ऐसे घरों में पुरुष प्रधान होता है, वो परिवार का पालन पोषण करता है। संयुक्त परिवारों के मुकाबले में एकल परिवारों में पित्तृसत्ता की अभिव्यक्त्ति जोड़े कम पाए जाते हैं। [4]

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता

स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व को धर्म और धर्म की व्याख्या करने वाले ब्राह्मण स्वीकार नहीं करते। लड़की को पहले पिता, फिर पति और बाद में बेटों के संरक्षण में रहना चाहिए। [१] लेखिका उमा चक्रवर्ती अपने लेख 'Conceptualizing Brahmanical Patriarchy in India' में ऊंची जातियों में मौजूद तमाम मान्यताओं और परंपराओं के ज़रिए महिलाओं और उनकी सेक्शुअलिटी पर काबू करने की प्रथा को 'ब्राह्मणवादी पितृसत्ता' बताती हैं।

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सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

  • Collins, Jordan, Coleman, Donald, Catheleen, Heather (2009). An Introduction to Family Social Work (3 ed.). Cengage Learning. p. 27. ISBN ISBN 0-495-60188-8. Check |isbn= value (help).
  • Sinha, Raghuvir (1993). "Dynamics of Change in the Modern Hindu Family.". South Asia Books. ISBN 978-81-7022-448-8.
  • Traditions and Encounters: A Brief Global History. New York: McGraw Hill. 2008.