पार्श्व न्यूमोनिया

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पार्श्व न्युमोनिया या प्लूरोन्युमोनिया (Pleuro-pneumonia) ढोरों (cattle) में अधिक होने वाला उग्र स्पर्शज जीवाणु रोग है, जो मुख्यतः फुफ्फुस (lungs) तथा वक्ष की अस्तर कला (lining membrane) को आक्रांत करता है। यह भैंस, जेबू और याक को भी होता है। इसे सामान्यतः फुफ्फुस ताऊन (Lung Plague) भी कहते हैं। इसके फलस्वरूप एक विशेष प्रकार का खंड एवं खंडशोथ (lobar and lobular pneumonia) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गोजातीय पशु (bovine animals) के अतिरिक्त यह रोग अन्य पशुओं में प्रसारित नहीं होता।

यह रोग अनेक देशों में, जैसे भारत, चीन, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा यूरोप के बहुत से देशों में भी होता है। मनुष्यों को जब होता है तब शरीर-विकृति-विज्ञान (pathology) के अंतर्गत होनेवाले मुख्य परिवर्तनों में फुफ्फुस की आकृति संगमरमर के समान हो जाती है तथा फुफ्फुसावरण (pleura) में फाइब्रिनस विक्षेप (fibrinous deposit) हो जाता है। कभी-कभी वक्षगुहा (cavity of thorax) में अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थों का भी संचय हो जाता है।

लक्षण

प्लूरोन्युमोनिया के प्रमुख लक्षणों में रोगी को ज्वर आता है, भूख न लगना, विशेष प्रकार की खाँसी का रुक रुककर आना, श्वास कष्ट (dyspnoea), नाड़ी एवं श्वासगति में तीव्रता, इत्यादि लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। ये सभी लक्षण दो या तीन सप्ताह से लेकर कई मास तक विद्यमान रहते हैं। ऐसी स्थिति में इन रोगियों की परीक्षा करने पर रोगी अत्यधिक कृष एवं कमजोर दिखाई देता है। होंठ और हाथ पैरों में नीलिमा (cynosis) दिखाई देती है। परिश्रवण (auscultation) परीक्षा से फुफ्फुस के सभी स्थानों में सीटी के समान ध्वनि राल्स (rales) सुनाई देती है तथा कुछ स्थानों पर श्वसनी श्वसन (bronchial breathing) मिलती है। रोगी को कष्ट के साथ पतला, गुलाबी तथा लाल रंग का बलगम निकलता है। यह अधिक चिपचिपा नहीं होता तथा सूक्ष्मदर्शक से परीक्षा करने पर इसमें प्लेग के कीड़े (Past. pestis) मिलते हैं।

जब रोगी को अत्यधिक कंपन के साथ तीव्र ज्वर होता है तब उसकी मृत्यु की अधिक संभावना हो जाती है।

उपचार

इसकी उपयुक्त चिकित्सा प्लेग की चिकित्सा के समान होती है।