परशुराम महादेव मन्दिर
परशुराम :- परशुराम महान तपस्वी और भगवान विष्णू के अवतार हैं। परशुराम जी के बाल्यकाल से ही भगवान शिव को गुरु बनाया था। 5 वर्ष की आयु में ही हिमालय चले गये थे। और जब उनके पिताजी तीन ताली बजाते तो वे आ जाते थे। पिता के कहने पर अपनी माता की हत्या कर दी। परशुराम जी को मातृ हत्या का अपराध था। वे सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वे आज भी इसी पृथ्वी पर तपस्या में लीन हैं।
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मंदिर :- राजस्थान राज्य की अरावली पर्वतमाला के मध्य स्थान में पुर्ण रुप से प्राकर्तिक बना हैं, परशुराम महादेव मंदिर। माना जाता हैं की "‘परशुराम‘ ने फरसे के प्रहार से बनाया शिव मन्दिर"। परशुराम जी लाखो साल पहले त्रेता युग में मंदिर में बनी गुफा के रास्ते से यहाँ आये थे। यहाँ बैठकर भगवान शिव की गुप्त आराधना की। भगवान शिव को प्रसन्न करके उन्होनें अर्मतत्व का वरदान और इसके साथ ही कई दिव्यास्त्र एवं अस्त्र-शस्त्र भी प्राप्त किए। फरसे को भी यही से प्राप्त किया। आगे चलकर इस मंदिर का नाम परशुराम महादेव मन्दिर पड़ गया। उन्होनें जगह-जगह तप किया पर उनको अपने गुरु शिव के दर्शन नहीं हुए। ऋसी-मुनियों ने बताया की उन्हें मातृहत्या का अपराध है। तो ऋसी-मुनियों के कहने पर मातृ हत्या के दोष के निवारण के लिए यहाँ आये। ऋसी-मुनियों के अनुसार उनको अरावली पवर्तमालाओ मातृकुंडया नदी ( राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले में) मे स्नान करके शिव की आराधना करनी थी। तो वो स्नान करके गुफा के रास्ते आये थे। कुदरत ने अब गुफा बंद करदी। अब गुफा (180 किलोमीटर लम्बी गुफा जिसका दुसरा छोर नदी पर था) में 5-7 मीटर तक अन्दर जा सकते हैं। ऊपर हनुमान जी का प्राचीन मन्दिर भी हैं। यह मन्दिर दो जिलों ( राजसमंद व पाली ) की सीमाओं के बीच स्थित हैं। इस मन्दिर का परिसर 3 किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। कई वर्षों तक यहां भगवान परशुरामजी ने तपस्या की थी। पहाड़ी पर बसे इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 600 के आस-पास सीढ़ियों हैं। निचे 3 कुण्ड हैं, जो 12 महिने भरा रहता हैं। यहाँ मन्दिर आने के दो रास्ते हैं एक मारवाड़ वालो के लिये जो 1600 मीटर का है इसमे चड़ाई कम हैं और दुसरा मेवाड़ से आने वालो के लिए 1200 मीटर का हैं पर इसमें चडाई अधिक हैं। यह मन्दिर समुंद्र से 3955 फिट तो करीब 4000 फिट की उंचाई पर हैं। बारिश के दिनो मे स्वर्ग से भी सुन्दर माहौल बन जाता है। यहाँ कुम्भलगढ राष्ट्रीय उद्यान हैं। यह कुम्भलगढ दुर्ग से 10 किलोमीटर, पाली से करीब 120 और रणकपुर से 7 किलोमीटर दूर हैं। राजस्थान का अमरनाथ धाम कहते हैं।
मेरे द्वारा शिक्षा के उद्देश्य से समान्य जानकारिया दी जाती है हमारा ब्लोग General Information पर दी जाती है और अधिक परशुराम महादेेव के बारे मेें जानने के लिए हमारे ब्लोग पर आये निचेे दिये लिक से पर जाए हर हर महादेव गिरधारीलाल बाना
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करीब 300 साल गोविंदा स्वामी (टाटा कम्पनी में मैनेजर थे उस समय) यहाँ पर्यटन के लिए आये थे परंतु यहाँ आकर उनका मन भक्तिमय हो गये और यहाँ ही निवास करने लगे और भगवान की आराधना में लाग गये। भोजन में सिर्फ़ बेल पत्र ग्रहण करते थे। उनके पास में कई खुँखार जंगली जानवर रहते बैठे रहते थे।
पर्यटन का समय :- भाद्रपद एवं श्रावण मास में यहाँ बहोत ही सुन्दर माहौल बन जाता है चारों दिशाओं में हरियाली छा जाती हैं और झरने और भी सुन्दर हो जाते हैं। यहाँ मेला श्रावण सूदी छ्ट को भरा जाता हैं। यूँ 2 मास तो मेला ही रहता हैं 2 मास तक प्रतिदिन 30 हज़ार के आस-पास श्रदालू आते हैं अच्छे से दर्शन नहीं हो पाता हैं अगर आप दर्शन करना चाहते है अच्छे से तो गर्मी या सर्दी के मौसम में आये।
ठहरने के लिए :- दो धर्मशालाएं बनी हुई हैं एक ऊपर 500 लोग के ठहरने की व्यवस्था है। और नीचे 1000 लोग के ठहरने की व्यवस्था है।
यातायात के साधन :- आपको अपने स्तर पर साधन की व्यवस्था करनी होगी।
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आगे भी हम आपको यूँ जानकारी देते रहेंगे। मेरे पर्सनल ब्लोग General Information पर आके और भी रोचक जानकारियाँ पर्यटन एवं शिक्षा के बारे में प्राप्त कर सकते हो। स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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"General Information स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।". अभिगमन तिथि 2020-06-12.
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हर हर महादेव
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