नूहानी वंश
नूहानी वंश (1495 - 1530) बिहार के मध्यकालीन इतिहास में एक राजवंश था।[१] सिकन्दर लोदी (1489-1517) ने बिहार में दरिया ख़ाँ नूहानी को गवर्नर नियुक्त किया था। दरिया ख़ाँ, कड़ा और मानिकपुर क्षेत्रों के प्रशासक मसनद-ए-अली मुबारक़ ख़ाँ[२] का दूसरा बेटा था।[१][३] उसने बिहार में स्थानीय सामंतों के विद्रोह का सफलता पूर्वक दमन किया और जौनपुर के तत्कालीन शासक सुल्तान हुसैन शर्की के आक्रमण के समय भी बिहार में अफ़गान शासन की रक्षा की।[१] 1523 में दरिया खाँ नूहानी की मृत्यु हुई और इसके बाद उसका पुत्र बिहार बहार ख़ाँ बिहार के सरदारों द्वारा यहाँ का प्रशासक स्वीकृत हुआ।[४] पानीपत के प्रथम युद्ध (1526) में बाबर के हाथों इब्राहिम लोदी की हार का लाभ उठाकर बहार खां ने स्वयं को सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी के नाम से स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित कर लिया।[५] हालाँकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बिहार के सरदारों ने दरिया खां के नेतृत्व में ही अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी।[६]
सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी वही राजा था जिसकी शेर से लड़कर रक्षा करने के कारण फ़रीद खां को शेर खां की उपाधि मिली और बाद में जो शेर शाह सूरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[७] सुल्तान मोहम्मद शाह ने धीरे-धीरे अपनी सेना की संख्या एक लाख कर ली और बिहार से संभल तक उसका कब्जा हो गया था। हालाँकि पानीपत के युद्ध के कुछ ही दिनों बाद इसकी मृत्यु हो गयी। सुल्तान मोहम्मद शाह की मृत्यु के बाद नोहानी वंश का प्रभाव लगभग समाप्त हो गया।[८]
1529 में घाघरा के युद्ध में बाबर ने बिहार के अफगानों को पराजित करके मोहम्मद शाह नूहानी के पुत्र जलाल खान को बिहार का अधीनस्थ प्रशासक नियुक्त किया[९] और शेर खाँ (फरीद खाँ) को उसका संरक्षक नियुक्त किया था।[५]