धातुवाद

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धातुवाद चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। पीतल, स्वर्ण आदि धातुओं को मिलाना, शुद्ध करना आदि की कला है।[१][२][३] प्राचीन युग में बौद्धाचार्य श्रीनागार्जुन ने नुतन अविष्कार कर रसरसायन के विशेष प्रयोग कर धातुवाद की सरल विधि का निर्माण किया था। श्रीनार्गाजुन जी ने सैकड़ो शिष्य-प्रशिष्य को रस क्रिया की दीक्षा दी और अनेकों को विज्ञान विद बनाया। इसके बाद उन्हें विदेशों में इसके प्रचार के लिए भेजा।[४]

इतिहास

जब इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, प्रोटान आदि के बारे में इंसानों को पता भी नहीं था, तब भी प्राचीन युग में भारत में इस प्रकार के धातु को नए रूप देने और अन्य धातु को मिलने या शुद्ध करने का कार्य किया जाता था।साँचा:cn प्राचीन काल में जब सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पास सेना को देने के लिए अधिक धन नहीं था तो उन्होनें धातुवाद या धातुकर्म या खनिकर्म की कला के द्वारा धन एकत्रित किया। नंदों से युद्ध के समय इसी धन से उनका खर्च उठाया था।[५]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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