दुर्गाचरण महान्ति
दुर्गाचरण महान्ति | |
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जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | धार्मिक लेखक |
भाषा | ओडिया |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | मट्रिक |
उल्लेखनीय कार्यs | लेखक : श्री श्री ठाकुर निगमानंद ; संसार पथे (५ खंड) भाष्यकार : योगिगुरु, ज्ञानिगुरु, तंत्रिक्गुरु, प्रेमिकगुरु, ब्रहमचर्य साधन |
उल्लेखनीय सम्मान | ओडिया साहित्य अकादेमी प्रथम पुरस्कार (१९५६-५८) |
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दुर्गाचरण महान्ति (१९१२-१९८५) ओडिशा, कोणार्क, पूरी जिले गोप थाने के अंतर्गत बीरतुंग ग्राम में १९१२ की कार्तिक त्रयोदशी तिथि में जन्म ग्रहण केए थे | उनके द्वारा लिखित भगवान् शंकराचार्य पुस्तक को ओडिशा साहित्य अकादमी की और से, १९५७-५८, में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था | सदगुरू निगमानंद के एकनिष्ठ भक्त के रूप में बे सुपरिचित | ठाकुर निगमानंद के प्रतिष्ठान नीलाचल सारस्वत संघ का बे संपादक/परिचालक थे | दुर्गाचरण महान्ति ठाकुर निगमानंद के स्वचरित योगी गुरु, तांत्रिक गुरु, ज्ञानी गुरु, प्रेमिक गुरु, ब्रहमचर्य साधन पुश्तोकों का बंगला भाषा से ओडिया भाषा में अनुबाद किया है | उसके अलाबा बे अपनी ग्राम बीरतुंग के भोलुन्टर आसोसियन का सवापति थे | उनके प्रयास से सत् शिखया के बिस्तार के लिए बीरतुंग गाबं में सारस्वत बिद्यापिठ की स्थापना हुई |
परिवार ओर शिक्षा
उनके पिता का नाम गुणनिधि महान्ति ओर माता का नाम सुन्दरमणि देबी था। ओडिशा के गोप थाना अन्त्रर्गत मदरंग ग्राम मे उनके पिता तहसिलदार नौकरी कर रहे थे। माता नीलाचल सारस्बत महिला संघ का सभानेत्रि थे। १९२९ मे दुर्गाचरण पुरी जिल्ला स्कुल का नौंबी कक्षा का छात्र थे।
आध्यात्मिक विकास
१९२९ मे श्रिश्रि ठाकुर निगमानन्द का उनको पहला दर्शन हुआ था। उन्होने ५ जून १९३४ को नीलाचल कुटिर मे ठाकुर निगमानन्द से दिक्षा ली थी। प्रारम्भ से ही वे उत्कल (ऑडिशा) मे ठाकुर निगमानन्द की भावधारा के प्रचार केलिए चेष्टा करते आये हें। सद्गुरु निगामानन्द के प्रतिष्ठत नीलाचल सारस्वत संघ के संपादक/परिचालक थे। फिलाल वे नीलाचल सारस्वत संघ के परिचालक के रूप से माना जाता हे।