दिव्य प्रेम सेवा मिशन
दिव्य प्रेम सेवा मिशन हरिद्वार स्थित कुष्ट रोगियों की सेवा करने वाली एक संस्था है। इसकी स्थापना सन् १९९७ में श्री आशीष गौतम ने की। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के निवादा ग्राम में जन्मे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा ग्रहण करने वाले इस नौजवान साधक आशीष के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानन्द हैं। अब "सेवा कुंज" नाम से विख्यात इस स्थान पर अपने कुछ नौजवान कर्मठ सहयोगियों के साथ श्री आशीष अपने इस मिशन द्वारा कुष्ठ रोगियों व उनके बच्चों के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा-संस्कार, स्वावलम्बन के कार्यक्रमों से उन्हें नवजीवन प्रदान कर उनमें जीवन के प्रति आशा व उल्लास का संचार तो कर ही रहे हैं, साथ ही वे तथाकथित सभ्य समाज में ई संवेदना को भी जगाने के प्रयास में निरंतर जुटे हैं।
परिचय एवं कार्यकलाप
हरिद्वार में चण्डीघाट सेतु से बिजनौर जाते समय लगभग आधा पुल ही पार करें तो बाईं ओर एक पर्णकुटी में "दिव्य प्रेम सेवा मिशन" दिखेगी।
चण्डीघाट पर ही सेवा कुंजज नामक परिसर में इस मिशन का अपना एक चिकित्सालय है, जिसे समिधा सेवार्थ चिकित्सालय के नाम से जाना जाता है। यहां पर प्रतिदिन झुग्गी-झोपड़ी, वनगुर्जरों के लगभग 70-80 सामान्य रोगी चिकित्सा का लाभ उठाते हैं। इस चिकित्सालय की एक शाखा सुश्रुत अल्सर केयर सेन्टर भी है, जिसमें हर रोज लगभग 40-50 कुष्ठरोगियों के घावों की सफाई, आपरेशन व मरहमपट्टी सेवाव्रती कार्यकर्ताओं द्वारा नि:शुल्क की जाती है। यहीं पर इसके माध्यम से महिलाओं को हस्तनिर्मित कागज के विविध उत्पादों जैसे डायरी, फोल्डर, कैरी बेग, ग्रीटिंग कार्ड, मोबाइल स्टैण्ड सहित लगभग 80 प्रकार के उत्पादों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। समाज में सेवा की भावना को जन-जन तक पहुंचाने तथा सेवा मिशन के अपने कार्यों को मिशन के सदस्यों तक पहुंचाने हेतु द्विमासिक पत्रिका सेवा ज्योति का प्रकाशन किया जा रहा है।
जहां एक तरफ लगभग 200 बच्चे प्रदीप वाटिका छात्रावास में स्वच्छ, स्वस्थ एवं अनुशासित जीवन जीते हैं, वहीं दूसरी तरफ दिव्य भारत शिक्षा मन्दिर में उन्हें भारतीय संस्कृति पर आधारित आध्यात्मिक एवं साथ ही व्यावहारिक शिक्षा संस्कार द्वारा भी उनके व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास का भगीरथ प्रयास किया जाता है। इस विद्यालय में किताबी ज्ञान के साथ ही कढ़ाई, स्क्रीन प्रिÏन्टग, अगरबत्ती बनाना, गुलाब की खेती आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है तथा स्वस्थ मस्तिष्क से स्वस्थ मन का निर्माण होता है। इस प्रेरणा से मिशन ने वन्देमातरम् कुंज परिसर में एक आदर्श गोशाला की स्थापना की है। यहां वर्तमान में लगभग 30 गायों का पालन हो रहा है। गाय के गोबर द्वारा जैविक खाद, गोमूत्र का प्रयोग जैविक कृषि एवं बागवानी आदि के लिए किया जाता है। इसी परिसर में संजीव गुलाटी स्मृति चिकित्सालय एवं शोध केन्द्र की स्थापना भी की गयी है। परिसर से लगभग 25 किलोमीटर के आस-पास कोई चिकित्सालय न होने के कारण यहां के ग्रामवासियों को अपनी प्राथमिक चिकित्सा के लिए भी ऋषिकेश या हरिद्वार जाना पड़ता था, जिसे ध्यान में रखते हुए इस चिकित्सालय में एलोपैथी, आयुर्वेद तथा पंचकर्म चिकित्सा उपलब्ध है। समय-समय पर आंख, कान, नाक, गला आदि अनेक रोगों के परीक्षण तथा चिकित्सकों द्वारा मासिक शिविरों का आयोजन भी किया जाता है जिससे आस-पास के ग्रामीणों को स्वास्थ्य लाभ होता है। कुल मिलाकर संस्था का प्रयास यह है कि ये बच्चे कहीं से भी हीन मनोदशा से ग्रस्त न होकर एक स्वाभिमानी व स्वावलम्बी जीवन जीते हुए समाज के बीच स्वयं को सम्मानित महसूस कर सकें।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यह संस्था किसी भी सरकारी अनुदान की मोहताज नहीं है, बल्कि यह पवित्र सामाजिक मिशन, शुद्ध रूप से आम लोगों के ही सहयोग के बल पर चल रहा है। "दिव्य प्रेम सेवा मिशन" बगैर सरकारी सहयोग के समाज सेवा करने का अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है।