दरिया खाँ रुहेला
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दरिया खाँ रुहेला पहले मुर्तज़ा खाँ शेख फरीद का नौकर था। शाहजादा शाहजहाँ की सेवा में आकर इसने धौलपुर, बंगाल तथा बिहार के युद्धों में अपने रणकौशल का परिचय दिया। शाहजादा ने दरिया खाँ को पुरस्कार देकर सम्मानित किया और इलाहाबाद भेजा। वहाँ अब्दुल्ला खाँ से अनवन हो जाने के फलस्वरूप शत्रु को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया। विवश होकर दरिया खाँ और अब्दुल्ला खाँ जौनपुर होते हुए बनारस पहुँच गए जहाँ शाहजादा ठहरा हुआ था। फिर युद्ध की तैयारी की गई किन्तु दरिया खाँ के सैनिक बिना लड़े ही भाग निकले और विजय न हो सकी। वह भी शाहजादा को छोड़कर दक्षिण के सूबेदार खानजहाँ लोदी के पास चला गया। किन्तु फिर क्षमा किया गया और कासिमखाँ लोदी के साथ बंगाल भेजा गया। तत्पश्चात् खानदेश भेजा गया। इसी समय इसने साहू भोंसला के विद्रोह का दमन किया। जब शाहजहाँ खानजहाँ लोदी से युद्ध करने गया तो दरियाखाँ पुनः खानजहाँ लोदी से मिल गया। खानजहाँ परास्त हुआ। दरिया खाँ प्राण बचाकर भागा और मालवा तक पहुँचा, किन्तु बादशाही सेना निरन्तर पीछा कर रही थी अतः इसे फिर बुन्देलों के राज्य की ओर भागना पड़ा। इस अवसर पर जुझारसिंह के पुत्र विक्रमाजीत ने इसपर आक्रमण कर दिया। यह इसी युद्ध में मारा गया।