ददरी मेला (बलिया)

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बलिया का ददरी मेला हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ होता है। इसमें मुख्यतः पशुओं का ,दैनिक उपयोग की वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है। मेले की ऐतिहासिकता इस मेले की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीनी यात्री फाह्यान तक ने इस मेले का अपनी पुस्तक में जिक्र किया है। गुलाम भारत की बदहाली को लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक बेहद मार्मिक निबंध लिखा है- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है- इस निबंध को उन्होंने पहली बार बलिया के इसी ददरी मेले के मंच पर १८८४ में पेश किया था। इस मेले में लोग प्रकृति के समूचे नजदीक आते हैं। अपने इस भागमभाग की जिंदगी में अपने लिए कुछ समय निकालते हैं। लोगों की प्रगाढ़ आस्थाएं इस मेले से जुड़ी है।

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